मुस्लिम बच्चों को कुरान पढाती है ये हिंदू लड़की
नई दिल्ली: सांप्रदायिक दृष्टि से अशांत पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हर शाम कक्षा लगती है जहां एक हिंदू लड़की मुस्लिम बच्चों को कुरान की तालीम देती है। आगरा के संजय नगर स्थित एक मंदिर प्रांगण में खुले आसमान के नीचे चलनेवाली यह कक्षा प्रदेश की साझी संस्कृति का दुर्लभ दृश्य तो है ही, यह एक उम्मीद भी जगाती है।
– बारहवीं क्लास में पढ़नेवाली 18 साल की पूजा कुशवाहा शाम में शिक्षिका की भूमिका निभाती है और हर रोज इलाके के 35 मुस्लिम बच्चों को कुरान का पाठ पढ़ाती है। अरबी जुबान के कठिन शब्दों के स्पष्ट और सही-सही उच्चारण के साथ पूजा में ऐसे शिक्षक को देखा जा सकता है जिसकी चाहत हरेक बच्चे के माता-पिता को होती है।
– पूजा की एक स्टूडेंट पांच साल की बच्ची अलीशा की मां रेशमा बेगम ने कहा, ‘इतनी कम उम्र में इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल करते देख आश्चर्य होता है। वह मेरी बच्ची को पढ़ाती है, मैं बहुत खुश हूं। हमारी और हम जितने भी पैरंट्स को जानते हैं, उन सबकी नजर में उसका (पूजा का) धर्म सबसे आखिर में आता है।’
-पूजा ने कहा कि बहुत साल पहले साझी संस्कृति में विश्वास रखनेवाली एक और महिला हमारे इलाके में रहती थी। मुस्लिम पिता और हिंदू मां की बेटी संगीता बेगम बच्चों को कुरान पढ़ाती थीं। मैं भी इस धार्मिक ग्रंथ में दिलचस्पी लेने लगी और उनकी कक्षा में जाने लगी। मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ती गई और क्लास में सभी को पीछे छोड़ दिया। कुछ व्यक्तिगत कारणों से संगीता बेगम को क्लास छोड़नी पड़ी और उन्होंने पूजा से आग्रह किया कि वह इसे जारी रखे।
– पूजा ने कहा, ‘उन्होंने (संगीता बेगम ने) मुझे इस्लाम का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत सिखाया कि शिक्षा प्राप्त करने का कोई महत्व है, अगर आप इसे बांटते नहीं हैं। वह मुफ्त में क्लास लेती है। उसने कहा, ‘ज्यादातर बच्चे गरीब परिवारों से हैं। मुझे देने के लिए उनके पास पैसे होते नहीं हैं और मैं लेना भी नहीं चाहती।’ उसके पास पढ़ने वाले बच्चों की तादाद लगातार बढ़ते रहने से उसका घर छोटा पड़ गया। तब इलाके के बुजुर्गों ने तुरंत मंदिर प्रांगण में क्लास लेने को कहा।
– पूजा की बड़ी बहन नंदिनी ग्रैजुएट है और इलाके के बच्चों को हिंदी पढ़ाने के साथ-साथ उन्हें गीता का ज्ञान भी देती है। पूजा और नंदिनी की मां रानी कुशवाहा ने कहा, ‘ये बच्चे सुविधाहीन पृष्ठभूमि से आते हैं और इन्हें शिक्षा देना बड़ा काम है। मुझे अपनी बेटियों पर गर्व है।’
– शहर के प्रमुख मुस्लिम नेता 70 वर्षीय हाजी जमीलुद्दीन कुरैशी कई सामाजिक संगठन चलाते हैं और उनका अपना एक स्कूल भी है। वह कहते हैं, ‘यह जानकर खुशी होती है कि हमारे शहर में सांप्रदायिक सद्भाव का ऐसा दुर्लभ उदाहरण मौजूद है। शिक्षक सिर्फ और सिर्फ शिक्षक होता है और अगर वह पाक ग्रंथ को अच्छी तरह जानती है तो उसका धर्म क्या है, इससे कोई मतलब नहीं है। आखिरकार, इस्लाम भी किसी को अरबी सीखने या कुरान पढ़ने से मना नहीं करता।’