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राजस्थान में 200 विधानसभा क्षेत्रों को लेकर कम नहीं होने वाली हैं भाजपा की चुनौतियां

चार अगस्त को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह उदयपुर जाएंगे। वहां से 40 दिनों तक चलने वाली मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की गौरव सुराज यात्रा को हरी झंडी दिखाएंगे। यह यात्रा सभी 200 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरेगी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसके समापन तक राज्य की जनता को संबोधित करेंगे। यह सारी कवायद राज्य में भाजपा की विधानसभा चुनाव में वापसी के लिए है, लेकिन भाजपा की चुनौतियां लगातार बढ़ती जा रही हैं। राज्य  की वसुंधरा राजे अपना उत्तराधिकारी किसी को बनाने के लिए तैयार नहीं हैं और उनसे उत्तराधिकार पाने के लिए राजस्थान भाजपा के नेता कमर कसकर तैयार बैठे हैं।

भाजपा के एक केन्द्रीय मंत्री को लगातार अपने साथ हो रहे व्यवहार का दर्द सता रहा है। वह जमीनी नेता हैं और उनका कहना है कि पिछले पांच साल तक मुख्यमंत्री ने अकेले अपने चेहरे पर शासन किया है। राज्य में स्थानीय चेहरे और नेतृत्व को दबाने की कोशिश की है। राज्य सरकार के कार्यक्रमों में स्थानीय नेताओं को कोई जगह नहीं दी गई है। इसलिए मुख्यमंत्री से जनता और नेता दोनों नाराज हैं। वहीं भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व लगातार इस तरह के बगावती तेवर को अभी शांत करने के लिए हर संभव उपाय कर रहा है।

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने पिछले दौरे में पार्टी कार्यकर्ताओं, नेताओं को इस तरह की सभी नाराजगी भूल जाने का संदेश दिया था। सूत्र बताते हैं कि अमित शाह को खुलकर सत्ता में लौटने की अहमियत बतानी पड़ी थी। शाह ने लोगों को चेताया था कि सरकार रहेगी तभी ड्यूटी दे रहा हवलदार भी सल्यूट करेगा। इसलिए सब एकजुट होकर पार्टी प्रचार के हित में लग जाएं।

वसुंधरा खेमा सशंकित

राजस्थान में वसुंधरा राजे का एक बड़ा मजबूत खेमा है। यह खेमा मुख्यमंत्री की राजस्थान के लिहाज से राजनीतिक मजबूती पर पूरा भरोसा करता है, लेकिन सशंकित है। वह चुनाव प्रचार आरंभ होने से पहले चुनाव में सफलता मिलने के बाद वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री बनाए जाने की घोषणा चाहता है। वसुंधरा भी इसी मूड दिखाई देती हैं। यह खेमा प्रस्तावित राज्य विधानसभा चुनाव में प्रत्याशियों के टिकट वितरण, चुनाव प्रचार अभियान में टीम के सदस्यों की भागेदारी आदि को लेकर सशंकित है।

बताते हैं वसुंधरा राजे भी इस पर स्थिति साफ होने का इंतजार कर रही हैं। इस तरह की चुनौतियों से वसुंधरा वाकिफ भी हैं। बीकानेर में 27 जुलाई को उन्होंने राज्य सरकार की सत्ता में वापसी को लेकर दार्शनिक लहजा अपना लिया था। वसुंधरा ने राज्य की जनता को संबोधित करते हुए कहा था कि राजनीति होती रहेगी। यह स्विंग स्टेट है। सरकार आती-जाती रहेगी। उन्होंने अपनी सरकार की सफलता को बताते हुए सत्ता में वापसी के बीज भी बोए।

मुख्यमंत्री ने कहा कि पांच साल में उन्होंने राज्य को गड्ढे(बीमारु राज्य) से निकाला था। अपने पहले पांच साल के कार्यकाल में उन्होंने यही कोशिश शुरू की थी, लेकिन बीच में दूसरी सरकार(अशोक गहलोत) आ गई। उसने इसे फिर गडढे में ढकेल दिया था। वसुंधरा ने कहा कि एक बार फिर वह राज्य को गड्ढे से निकालकार लाई हैं और राज्य की जनता अब उनका साथ दे। वसुंधरा जब यह रही थी तब उनके चेहरे पर कुछ क्षण के लिए सभी चुनौतियों के भाव बझलक आए थे।

विरोधी खेमे की चिंता
वसुंधरा का विरोधी खेमा भी बड़ा है। सामने एक नहीं कई चेहरे हैं, लेकिन खुलकर सामने आने में सब हिचकते हैं। एक केन्द्रीय मंत्री तो काफी चिंतित हैं। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का भी मानना है कि सबकुछ मुख्यमंत्री ने हाईजैक कर रखा है। वह राज्य सरकार के जनता से जुड़े कार्यक्रम में भी अकेला चेहरा बनी रहती हैं। अधिकारी और उनकी टीम के लोग ही हाबी रहते हैं। स्थानीय विधायक, सांसद, मंत्री सब केवल शोभा बढ़ाने के लिए वहां होते हैं। किसी को कोई जिम्मेदारी नहीं दी जाती और न ही मंच से बोलने का अवसर दिया जाता है। न ही केन्द्र सरकार की जनता को योजना बताई जाती है। केवल वसुंधरा गुणगान होता है। सूत्र  का कहना है कि यही वजह है कि राज्य में कई चेहरे वसुंधरा के खिलाफ हैं।

नाकाफी है पहल
वसुंधरा का विरोधी खेमा भाजपा के केन्द्रीय नेताओं की पहल को नाकाफी मान रहा है। उसका कहना है कि भाजपा अध्यक्ष ने वसुंधरा को चेहरा घोषित करके राज्य विधानसभा चुनाव में जाने की पहल भले ही कर ली है, लेकिन इसका कोई खास जमीनी असर नहीं है। राजस्थान भाजपा के नए अध्यक्ष मदनलाल सैनी का वसुंधरा के मुकाबले कोई कद नहीं है। वह पहले भी पार्टी में किसी बड़े पद पर नहीं रहे हैं। सूत्र का कहना है कि वसुंधरा के पीठ पीछे कोई कुछ भी बोल सकता है, लेकिन सामने न तो मदन लाल सैनी में और न ही भूपेन्द्र यादव में कुछ बोल पाने की हिम्मत है। ऐसे में चुनाव के दौरान भाजपा के वसुंधरा मय हो जाने पर गुजबाजी बढऩे के साथ-साथ सफलता मिलने की संभावना सिमटती जाएगी।

सबकी निगाह भाजपा अध्यक्ष पर
वसुंधरा राजे की टीम जहां भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की चार अगस्त की यात्रा का इंतजार कर रही है, वहीं पार्टी के दोनों खेमों की निगाह अमित शाह के मूवमेंट पर टिकी है। अमित शाह ने वसुंधरा राजे के साथ अपने आवास पर दिल्ली में हुई बैठक में साफ कर दिया था कि राज्य में भाजपा का चेहरा वह होंगी, लेकिन चुनाव प्रचार अभियान आदि का संचालन केन्द्रीय ईकाई की मॉनिटरिंग में होगा। इसमें भूपेन्द्र यादव को भी अहम जिम्मेदारी दी गई है।

ऐसा इसलिए है ताकि भाजपा एकजुटता के साथ चुनाव में जा सके। इससे विरोधी खेमे को टिकट बंटवारे में वसुंधरा की कम चलने की उम्मीद है। उन्हें लग रहा है कि ऐसा हुआ तो चुनाव बाद मुख्यमंत्री के नाम पर पासा पलट सकता है। उनकी इसी उम्मीद को वसुंधरा खत्म करने के लिए हर दांव अजमाने को भी तैयार हैं। 28 जुलाई को जयपुर में गौरव सुराज यात्रा समेत आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बाबत बैठक भी हुई। इसमें केन्द्रीय जल संसाधन राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल समेत अन्य मौजूद थे। सभी ने यात्रा को सफल बनाने की दिशा में एकजुटता के साथ रणनीतिक निर्णय लिया है। राज्य में सत्ता में लौटने के लिए प्रचार-प्रसार की तैयारियां जोरों पर हैं। बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं से लेकर मतदाता सूची के पन्ना प्रमुख पार्टी को सत्ता में लाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। हालांकि राज्य सरकार के अधिकारी से लेकर प्रदेश भाजपा के कार्यकर्ता, पदाधिकारी तक मान रहे हैं कि सरकार विरोधी लहर ज्यादा है। चुनौती कड़ी है।

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