वन मैन आर्मी जैसा एक योगी
योगी राज के बदलावों को अगर सियासी चश्मा हटा कर देखा जाये तो काफी कुछ साफ-साफ नजर आने लगता है। अब आपराधिक प्रवृति के लोंगो में सरकार और पुलिस का भय का भाव है। गुंडे-माफियाआेंं को पता है कि अगर वह कानून को अपने हाथ लेंगे तो उनको कोई बचाने वाला नहीं मिलेगा। इसका अहसास जगह-जगह देखने को भी मिल रहा है। सलाखों के पीछे ऐशो-आराम की जिंदगी जीने वाले और जेल के भीतर से ही समाज में दहशत पैदा करने वाले तमाम बाहुबलियों को दूरदराज की ऐसी जेलों में भेज दिया गया है,जहां इनके साथ रहम की उम्मीद बेईमानी हो जाती है।
उत्तर प्रदेश में योगी राज का डंका बज रहा है। किसी भी सरकार के कामकाज की समीक्षा के लिये दो-ढाई महीने का समय काफी कम होता है। शुरुआत के दो-तीन महीने तो जीत की खुमारी में ही निकल जाते हैं। सरकार के लिये यह समय ‘हनीमून’ जैसा होता है। पिछली तमाम सरकारों का निचोड़ भी यही कहता है। इस दौरान तमाम स्वागत समारोहों में बड़ी-बड़ी मालाएं पहनकर मंत्री/नेता प्रफुल्लित नजर आते हैं, लेकिन योगी सरकार का मिजाज बदला हुआ है। पहले ही दिन से सरकार ने रफ्तार पकड़ ली है। मोदी की राह पर चलते हुए योगी भी अपने विधायकों और कैबिनेट के मित्रों को नसीहत दे रहे हैं कि वह स्वागत/सत्कार के कार्यक्रमों का हिस्सा बनने की बजाये जनता की सेवा करें। योगी केवल नसीहत नहीं दे रहे हैं, वह इस पर अमल भी कर रहे हैं। उनकी कथनी और करनी एक जैसी है। छोटे से कार्यकाल में योगी कई बड़े और अहम फैसले ले चुके हैं। बात फैसले लेने तक ही सीमित नहीं है। फैसले तो पूर्ववती सरकारें भी लेती थीं, लेकिन योगी सरकार फैसले लेने में तो तेजी दिखा ही रही है,इसके साथ-साथ इन फैसलों को अमली जामा पहनाने के लिये भी एड़ी-चोटी का जोर लगाया जा रहा है। शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र या समस्या बची होगी जिस ओर योगी का ध्यान नहीं गया हो। काम के मामले मेंं तो लगता है कि योगी और मोदी में स्पर्धा चल रही हो। मोदी 18 से 20 घंटे तक काम करते हैं तो योगी की दिनचर्या भी सुबह तीन बजे शुरू हो जाती है और देर रात्रि तक जारी रहती है। अगर अतीत पर नजर डाली जाये तो अल्पकाल में सबसे अधिक फैसले लेने का रिकार्ड योगी के नाम ही जायेगा।
योंगी की हर कैबिनेट बैठक महत्वपूर्ण हो गई है। यह सिलसिला पहली बैठक से शुरू हुआ था और आज तक बदस्तूर जारी है। पहली बैठक में कृषक लोन माफ करने के साथ गेहूं/आलू की सरकारी खरीद का मार्ग प्रशस्त करके योगी सरकार ने किसानों को बड़ी राहत प्रदान की। गन्ना किसानों के बकाये के लिये भी चीनी मिलों पर दबाव बनाया गया, जिसका नतीजा यह निकला किसानों का हजारों करोड़ का गन्ना बकाये पर कुंडली मारकर बैठे चीनी मिल मालिकों की तिजोरी खुल गई। चीनी मिल मालिकों ने पिछले कई वर्षों मेंं सरकार के साथ मिलकर खूब मनमानी की थी,लेकिन अब चीनी मिल मालिकों की हेकड़ी निकल गई है। वहीं मायावती के शासनकाल में औने-पौने दामों पर बेची गई चीनी मिलों की जांच बैठाकर सरकारी राजस्व को चूना लगाने वालों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। अखिलेश राज में सांठगांठ करके चीनी मिलों का ब्याज माफ किये जाने के प्रकरण की भी जांच हो रही है।
काम तो काफी हो रहे हैं, लेकिन योगी सरकार की प्राथमिकता में कानून व्यवस्था में सुधार प्रकिया सबसे ऊपर है। एंटी रोमियो अभियान चलाकर लड़कियों के साथ होने वाली छेड़छाड़ की घटनाओं पर लगाम लगाई गई है तो सरकारी जमीनों पर कब्जा जमाये बैठे दबंगों के खिलाफ एंंटी भू-माफिया बल का गठन किया गया है। कानून व्यवस्था सुधारने के लिये अपराधियों पर शिकंजा कसने का जमीनी प्रभाव दिखने लगा है। प्रदेश में अपराध का ग्राफ काफी कम हो गया है। सरकार का इकबाल बुलंद है। पूरे प्रदेश में तेजी के साथ माहौल बदल रहा है। भ्रष्टाचारी, कालाबाजारियों, खनन माफियाओं, सरकारी योजनाओं में सेंधमारी जैसे तमाम तरह के आर्थिक अपराध करने वालों की नींद उड़ी हुई है। कानून की धज्जियां उड़ाने वालों के हौसले पस्त हैं तो प्रदेश की अमन प्रिय जनता सुकून महसूस कर रही है। शहर की सड़कें और चौराहे इस बात के गवाह हैं। बात-बात पर मारपीट पर उतारू दबंग किस्म के लोग अब सड़क पर कहीं नहीं दिखाई देते हैं। अब धर्म की आड़ में सही को गलत और गलत को सही साबित करने की हठधर्मी दिखाने वाले उदंड नहीं दिखते हैं। बड़े-बड़े मॉल, पार्कों से लेकर खेतों की पगडंडियों तक पर अब शोहदे लफंगई करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। बात ज्यादा पुरानी नहीं है जब छोटी-छोटी बात पर लोग अपना आपा खो बैठते थे, मरने-मारने तक की नौबत पहुंच जाती थी। न खाकी वर्दी का डर रह गया था, न कानून की चिंता। महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं समाज को अभिशप्त करती जा रही थीं। जिसकी बेटी या बहन के साथ छेड़छाड़ होती थी, वह अपना मुंह नहीं खोल सकता था। अगर खोलता तो जान के लाले पड़ जाते। उल्टा उसी को किसी केस में फंसा दिया जाता। कदम-कदम पर सड़क पर दहशत का माहौल देखने को मिलता था। यह सब सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी की आड़ में चल रहा था, जिनका समाजवाद से दूर-दूर का नाता नहीं है, वह भी सपा राज में सपाई चोला ओढ़कर ‘कारनामें’ कर रहे थे। अवैध कब्जेदार, नकल और खनन माफिया, अवैध निर्माण, अवैध नर्सिग होम, खाद्य पदार्थो में मिलावट, कालाबाजारी से लेकर कोई भी क्षेत्र गलत काम करने वालों से अछूता नहीं रह गया था। सरकारी पैसों की बंदरबांट, थानों की नीलामी, ठेकेदारों कीामनमानी सब कुछ खुले आम चल रहा था। यादव और मुसलमान होने का मतलब सपा से गुंडई का सार्टिफिकेट मिलना जैसा हो गया था। संतरी से लेकर मंत्री तक यादव और मुसलमानों की हठधर्मी के सामने मुंह नहीं खोल सकते थे।
ऐसा नहीं है कि योगी राज में अब सब कुछ खत्म हो गया हो या फिर सब कुछ बदल गया हो, लेकिन कम से कम कोई यह तो नहीं कह सकता है कि यूपी में कानून व्यवस्था की धज्जियां सरकारी संरक्षण में उड़ाई जा रही हैं। आपराधिक वारदातें आज भी घटित हो रही हैं,लेकिन इसके अनुपात में कमी आई है। अब समाज विरोधी तत्व यह नहीं सोच सकते हैं कि उन्हें कहीं से संरक्षण मिल जायेगा, इसलिये अपराधी पकड़े भी जा रहे हैं ओर जेल की सलाखों के पीछे भी पहुंच रहे हैं। जिसके चलते ऐसा लगता है कि अपराध के लिये बदनाम यूपी की सड़कों पर खामोशी का पहरा बैठ गया हो। यह जरूर है कि सड़क पर अब पहले जैसा तांडव देखने को नहीं मिलता है, मगर चहारदीवारी के भीतर होने वाले अपराधों पर अभी नियंत्रण नहीं हो पाया है। इसके लिये जितना पुलिस जिम्मेदार है उतनी ही जिम्मेदारी समाज और हमारी न्यायिक प्रक्रिया में देरी होना भी है।
योगी राज के बदलावों को अगर सियासी चश्मा हटा कर देखा जाये तो काफी कुछ साफ-साफ नजर आने लगता है। अब आपराधिक प्रवृति के लोंगो में सरकार और पुलिस का भय का भाव है। गुंडे-माफियाआेंं को पता है कि अगर वह कानून को अपने हाथ लेंगे तो उनको कोई बचाने वाला नहीं मिलेगा। इसका अहसास जगह-जगह देखने को भी मिल रहा है। सलाखों के पीछे ऐशो-आराम की जिंदगी जीने वाले और जेल के भीतर से ही समाज में दहशत पैदा करने वाले तमाम बाहुबलियों को दूरदराज की ऐसी जेलों में भेज दिया गया है,जहां इनके साथ रहम की उम्मीद बेईमानी हो जाती है। पुलिस अब खुलकर काम कर रही है। लखनऊ में विधान भवन के समाने से अगर टै्रफिक पुलिस का सब इंस्पेक्टर एक मंत्री की नीली बत्ती लगी पुलिस स्क्वॉयड की गाड़ी को गलत पार्किंग के कारण क्रेन से उठाकर ले जा सकती है और यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से बीजेपी विधायक सुशील सिंह की हत्या आरोपियों को छुड़ाने की कोशिश को पुलिस नाकाम करके बीएसपी नेता की हत्या के आरोपियों को जेल भेज देती है तो इसका मतलब यही हुआ कि योगी सरकार की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं है। उनका ‘चाबुक’ अपने पराये में अंतर नहीं कर रहा है। सीएम योगी ने कानून व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त करने के लिये पुलिस को खुली छूट दे रखी है, जिसकी वजह से ही अपराध का ग्राफ घटा है। पुलिस अब बेजा दबाव बीजेपी नेताओं और विधायकों का भी नहीं मान रही है।
हां, इस बीच कई और तरह की समस्याओं ने जरूर जन्म लिया है,जिस कारण पुलिस को कानून व्यवस्था बनाये रखने में दिक्कत आ रही है। योगी के सत्ता संभालते ही सामाजिक आंदोलनों की बयार बहने लगी है। शराब बंदी के खिलाफ आंदोलन, प्राइवेट स्कूल मालिकों की मनमानी के खिलाफ आंदोलन, कट्टर हिन्दूवादी नेताओं की हठधर्मी के किस्से, अयोध्या में भगवान राम लला के मंदिर के निर्माण आदि तमाम तरह की मांगों का जोर पकड़ना योगी सरकार के लिये सिरदर्द साबित हो रहा है।
बात फैसलों की कि जाये तो इसकी लम्बी लिस्ट है। मोदी ने जो फैसले लिये हैं उस पर नजर डाली जाये तो अब ठेका प्रथा में होने वाली धांधली पर लगाम के लिये ई-टेंडरिग की प्रक्रिया अपनाई जायेगी। मंत्रियों और सरकारी अधिकारियों/कर्मचारियों को अपनी सम्पत्ति का ब्योरा देना अनिवार्य कर दिया गया है, जो अधिकारी जानकारी नहीं देंगे उनका पहले इंक्रीमेंट रोका जायेगा। इसके बाद आगे और भी सख्त कदम उठाये जायेंगे। मोबाइल सिम की तरह बिजली कनेक्शन बांटे जायेंगे। धार्मिक स्थलों पर 24 घंटे और जनता को 18 से 24 घंटे बिजली उपलब्ध कराई जा रही है। दिव्यांगों की पेंशन बढ़ा दी गई है। नई तबादला नीति बनाई गई है, जिसके अनुसार कोई भी अधिकारी तीन वर्ष से अधिक एक जिले में नहीं रह पायेगा। इससे उन अधिकारियों/कर्मचारियों पर लगाम लगाई जा सकेगी जो ‘पहुंच’ के बल पर लम्बे समय से एक ही पद पर कुंडली मारे बैठे हुए थे। गरीबों को दो जून की रोटी मिल सके, इसके लिये अन्नपूर्णा भोजनालय शुरू किया जा रहा है। जहां दस रुपये में गरीब को पेट भर खाना मिल जायेगा। बुंदेलखंड का विकास हो इसके लिये अन्य तमाम उपायों के अलावा बुंदेलखंड को जोड़ने के लिये सिक्स लेन रोड भी बनाई जा रही है। सबको स्वास्थ्य की सुविधा मिले इसके लिये खाली पड़े चिकित्सकों के पद भरे जा रहे हैं। जनता की परेशानियों को दूर करने के लिये जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों को सुबह 9 से 11 कार्यालय में मौजूद रहने का आदेश दिया गया है। यह अधिकारी इस दौरान इधर-उधर न जायें इसके लिये सीएम योगी किसी भी समय लैंडलाइन पर इन अधिकारियों से सम्पर्क कर सकते हैं। ब्लाक स्तर तक पर सरकारी कर्मचारियों की हाजिरी बायोमैट्रिक किये जाने पर भी काम चल रहा है। मोदी की महत्वाकांक्षी योजना जीएसटी को भी बिना देरी करे योगी सरकार ने हरी झंडी दिखा दी है। महापुरूषों के नाम पर होने वाली छुट्टियां खत्म कर दी गई हैं। काफी समय से चर्चा चल रही थी यूपी को 24 जनवरी को अपना स्थापना दिवस मनाना चाहिए। पूर्ववर्ती सरकारों ने इस पर कोई निर्णय नहीं लिया,लेकिन योगी ने आते ही इस पर फैसला ले लिया। वोट की राजनीति के तहत अखिलेश सरकार ने स्मार्ट फोन बांटने की योजना बनाई थी, इसे योगी सरकार ने बंद कर दिया है। शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिये प्राइवेट और सरकारी स्कूलों की नकेल कसी जा रही है। प्राइवेट स्कूलों से पूरा ब्योरा मांगा गया है। शिक्षा का अधिकार कानून को कड़ाई से लागू कराया जा रहा है। 120 दिन के विकास का एजेंडा बनाया गया है। अवैध बूचड़खाने तो सरकार बनते ही बंद करा दिये गये थे। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना के तहत बेटी होने पर उसके लिये 50 हजार रुपये को बांड सरकार देगी। इसी तरह से मां को 5100 रुपये दिये जायेंगे।
बात किसानों की कि जाये तो खेत-खलिहानों में खुशहाली आये इसके लिये अन्य तमाम फैसलों के अलावा 20 कृषि विज्ञान केन्द्र बनाने के लिये काम शुरू हो गया है। सिंचाई के लिये पर्याप्त बिजली की उपलब्धता बनाई जा रही है। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों की दशा सुधारी जा रही है। इसी प्रकार लखनऊ-आगरा एक्सपे्रस वे के लिये भूमि अधिग्रहण में मुआवजा बांटने के खेल का भी पर्दाफाश हुआ है। इसमें किसानों को काफी नुकसान हुआ था, सपा से जुड़े लोंगो ने जैसे ही एक्सपे्रस वे की योजना बनी आसपास की जमीन किसानों से औने-पौने दाम पर खरीद ली और फिर अपनी ही सरकार से मोटा मुआवजा लेकर जमीन एक्सपे्रस वे के लिये सरकार को सौंप दी थी। तीन तलाक को लेकर नरक भोग रहीं मुस्लिम महिलाओं की मदद के लिये भी योगी सरकार ने हाथ बढ़ाया है। ऐसी महिलाओं की सरकार आर्थिक और सामाजिक रूप से मदद करेगी। योगी ने दो टूक कह दिया है,‘तुष्टिकरण किसी का नहीं होगा, विकास सबका होगा।’
प्रदेश सरकार ने तमाम फैसले लिये हैं तो कई ऐसी जगहों की निगाहबानी भी बढ़ा दी है, जहां वर्षों से भ्रष्टाचार पल-बढ़ रहा था। पेट्रोल पम्पों पर तेल की घटतौली के खिलाफ सरकार ने बड़ा अभियान चला रखा है। कई ऐसे पेट्रोल पम्प सील कर दिये गये हैं, जहां चिप लगाकर घटतौली की जा रही थी, लेकिन दुख की बात यह है कि इतना बड़ा कारनामा करने वाले पेट्रोल पम्प मालिकों को जेल की सलाखों के पीछे नहीं पहुंचाया गया है, जबकि ऐसे ही मामलों में गैस सिंलेडर से चोरी के आरोपी को जेल भेज दिया जाता है। इसी तरह की सख्ती प्राइवेट टेलीफोन आपरेटरों के खिलाफ भी की जानी चाहिए जो प्रतिदिन लाखों रूपये का चूना ग्राहकों को लगाते हैं। एसटीवी के नाम पर खेल और कॉल ड्राप ऐसी ही समस्या है, जिससे ग्राहक लगातार ठगा जा रहा है। ऐसे ही टोल टैक्स के नाम पर सरकारी मिली भगत से यात्रियों को ठगा जा रहा है। वर्षों वर्ष तक टोल टैक्स लेने के बाद भी कंपनियां यही दर्शाती हैं कि उनकी लागत नहीं निकली है, इस खेल में इन कम्पनियों को सरकारी संरक्षण मिलता है और यात्री लुटते रहते हैं। निजी शिक्षण संस्थान भी राजनैतिक दलों की महत्वाकांक्षा को पूरा करते है। यही कारण है, इनको मनमानी करने की पूरी छूट मिलती है। ऐसा योगी सरकार में भी देखने को मिल रहा है। अभी तक तमाम दावों के बावजूद शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिये योगी सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया है, जिसके आधार पर कहा जा सके कि उनकी नियत साफ है। निजी शिक्षण संस्थाओं में शिक्षकों को न के बराबर वेतन देकर टार्चर किया जाता है। शिक्षक और अन्य स्टाफ का कोई रिकार्ड नहीं रखा जाता है। वर्षों काम करने के बाद भी शिक्षकों की स्थिति दिहाड़ी मजदूरों से भी बदतर बनी हुई है। मुंह खोलने पर हटा दिया जाता है। शिक्षकों को बैठने के लिये कुर्सी तक नहीं दी जाती है। लगातार आठ-आठ पीरियड तक पढ़वाया जाता है। स्कूल मालिकों ने हालात ऐसे बना दिये हैं कि खाता न बही जो स्कूल मालिक कहें,वह ही सही। कहा तो यह भी जाता है कि इस तरह के तमाम भ्रष्टाचारों की जननी सरकार ही होती है, इसके बदले में सत्तारूढ़ दल को फंडिंग मिलती है, जिसे कारपोरेट फंडिंग का नाम दिया जाता है।
लब्बोलुआब यह है कि योगी राज में उत्तर प्रदेश उम्मीदों का प्रदेश बन गया है। सीएम योगी आदित्यनाथ वन मैन आर्मी की तरह से काम कर रहे हैं। ऐसा लग रहा है पूर्ववर्ती सरकारों को लेकर प्रदेश की जनता में या तो विश्वास की कमी रही होगी अथवा जनता का मिजाज समझ पाने में यह सरकारें नाकाम रही होगी। योगी राज आते ही यूपी में सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई भी तेज हो गई है। चाहे तीन तलाक का मामला हो या फिर शराब जैसी बुराइयों के कारण बिगड़ता सामाजिक तानाबाना। महिलाओं से छेड़छाड़ का मसला हो अथवा उनको आगे बढ़ने देने का मौका मिलने की बातं। जनता को कम पैसे में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना, शिक्षा को व्यवसायीकरण से बचाना, सरकारी स्कूलों की स्थिति में सुधार से लेकर सड़क के गड्ढो,अतिक्रमण, सरकारी सम्पत्ति पर कब्जा करने वाले सभी पर योगी की नजरें जमी हैं। काम तो हो ही रहे हैं,इसके अलावा हिन्दुत्व की अलख जगाकर वोट बैंक को भी मजबूती प्रदान किये जाने का उपक्रम जारी है।