47 साल की सुधा वासन दिल्ली यूनिवर्सिटी में बतौर प्रोफेसर काम करती हैं। उनकी शादी को 20 साल हो चुके हैं और ज़िंदगी हंसी-खुशी कट रही है। कुछ लोगों को लगता है सुधा की ज़िंदगी में कुछ कमी है। कमी इसलिए क्योंकि उनके बच्चे नहीं हैं लेकिन सुधा को ऐसा नहीं लगता। वो बताती हैं,’जब लोग मुझसे पूछते हैं कि मैंने बच्चे क्यों नहीं पैदा किए तो मैं उनसे पूछती हूं कि उन्होंने बच्चे क्यों पैदा किए, फिर मुझे जो जवाब सुनने को मिलते हैं, मैं उनसे संतुष्ट नहीं होती’।
मां बने बिना औरत अधूरी?
‘कुछ-कुछ होता है’ फ़िल्म में रानी मुखर्जी कहती हैं-औरत जब तक मां न बने, उसका औरत होना पूरा ही नहीं होता, तो क्या इसका मतलब वो सभी औरतें जो किसी बच्चे की मां नहीं हैं, अधूरी हैं? मुंबई में रहने वाली इला जोशी ये सवाल सुनकर हंस पड़ती हैं। वो कहती हैं,’ये पितृसत्ता की साजिश है जो बड़ी चालाकी से औरतों को ब्लैकमेल कर लेती है।” 31 साल की इला, सेल्स के पेशे में हैं और उनकी शादी को चार साल हो चुके हैं। इला ने भी बच्चे पैदा न करने का फैसला किया है। वो कहती हैं,”मैं बच्चा तभी पैदा करूंगी जब मुझे लगेगा कि मेरा पार्टनर भी बच्चे की जिम्मेदारी उठाने के लिए उतना ही तैयार है, जितनी मैं।’इला का मानना है कि मां बनने के बाद औरत की ज़िंदगी पूरी तरह बदल जाती है। प्रेग्नेंसी से लेकर बच्चे के बड़े होने तक, उसका ध्यान सिर्फ अपने बच्चे पर अटक कर रह जाता है।
उन्होंने कहा,’आप देखेंगे कि सेल्स में बहुत कम महिला एक्जिक्यूटिव हैं। वजह, करियर में थोड़ा ऊपर आते-आते वो मां बन जाती हैं और उनकी प्राथमिकताएं बदल जाती हैं।’इला कहती हैं कि वो अगर बच्चा गोद लेने की भी सोचेंगी तो ये तभी होगा जब वो और उनके पति दोनों मानसिक तौर पर इसके लिए तैयार होंगे। कुछ दिनों पहले भारत की मानुषी छिल्लर ने मां की भूमिका को सबसे ज्यादा इज़्जत का हकदार बताकर मिस वर्ल्ड का ताज अपने नाम कर लिया।
बेशक मां की भूमिका बेहद चुनौतीपूर्ण है लेकिन उन तमाम औरतों का क्या जो मां बनना ही नहीं चाहतीं? इसके जवाब में इला बड़ी ही बेबाकी से कहती हैं,”लोग हमें स्वार्थी कहते हैं, महात्वाकांक्षी कहते हैं। मैं कहती हूं कि हां, मैं स्वार्थी हूं। महात्वाकांक्षी भी हूं। मैं मां नहीं बनना चाहती। इसमें क्या गलत है?’ वो कहती हैं, ‘मुझे नहीं लगता कि बच्चा न होने की वजह से मैं कुछ मिस कर रही हूं। मैं बेफिक्र होकर ट्रैवल कर पाती हूं, किताबें पढ़ पाती हूं और अपनी ज़िंदगी जी पाती हूं।’
अमृता नंदी अपनी किताब ‘मदरहुड ऐंड चॉइस: अनकॉमन मदर्स, चाइल्डफ़्री वुमेन’ में लिखती हैं कि भारत में औरतों की भूमिका मां बनने के बाद खत्म नहीं हो जाती। बच्चा होने के बाद उनके सामने ‘अच्छी मां’ बनने की चुनौती होती हैं। उनसे बच्चे के लिए पूरी तरह समर्पित होकर इस चुनौती पर खरा उतरने की उम्मीद की जाती है। शादी के 8 साल बाद तक मां न बनने वाली सुदीप्ति कहती हैं,”ऐसा नहीं है कि बच्चा न होने से औरत की ज़िंदगी पर कोई असर नहीं पड़ता। बिल्कुल पड़ता है। हमें और ज़्यादा मजबूत और सतर्क रहना पड़ता है।’
उन्होंने बताया, ‘दूसरे के बच्चों को दुलार करते वक़्त मेरे मन में हमेशा ये बात रहती है कि कहीं वो ये न सोचें कि मेरे अपने बच्चे नहीं हैं, इसलिए मैं ऐसा कर रही हूं’। अपनी मर्जी से मां न बनने का चलन धीरे-धीरे दुनिया भर में बढ़ रहा है। अमरीकी जनगणना की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2014 में 44 साल तक की 47.6% महिलाएं ऐसी थीं जिनके बच्चे नहीं थे। साल 2011 में यह 46.5% था. सर्वे में ये भी पाया गया कि 20-34 साल की 28.9% महिलाओं के बच्चे नहीं हैं तो क्या इन्हें बाद की ज़िंदगी के बारे में सोचकर डर नहीं लगता? इन्हें ये डर नहीं सताता कि बुढ़ापे में इनकी देखभाल कौन करेगा?
41 साल की लोकेश इसके जवाब में कहती हैं,”मुझे ये सही नहीं लगता कि हम अपनी देखभाल का बोझ अकेले बच्चों पर डाल दें। ये राज्य की जिम्मेदारी होनी चाहिए।” वो पूछती हैं कि जिनके बच्चे नहीं हैं या जिनकी शादी नहीं हुई है क्या उन्हें अकेले छोड़ दिया जाना चाहिए? लोकेश कहती हैं,”ऐसी औरतें भी हैं जिन्होंने अपना करियर और बच्चे साथ-साथ संभाला है लेकिन सब ऐसा कर पाएं, ऐसी उम्मीद करना बेमानी होगी। 23 साल की प्रज्ञा श्रीवास्तव कहती हैं,”मैं नहीं चाहूंगी कि बच्चे के लिए मेरी ज़िंदगी पहले नौ महीने और फ़िर उसके बाद सालों तक ठहर जाए। मैं अपने बच्चे को जन्म देने के बजाय बच्चा गोद लेना ज्यादा पसंद करूंगी।” प्रज्ञा चाहती हैं कि उनका होने वाला पार्टनर उनकी बात समझे और दोनों आपसी सहमति से बच्चा गोद लें।”