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असंगठित क्षेत्र के 10 करोड़ कामगारों को पेंशन की गारंटी देगी सरकार!


नई दिल्ली : सरकार देश के असंगठित क्षेत्र में सबसे कमजोर 25 प्रतिशत हिस्से के लिए एक फाइनैंशियल सिक्यॉरिटी स्कीम शुरू करने पर विचार कर रही है। इसके तहत असंगठित क्षेत्र के 10 करोड़ कामगारों को रिटायरमेंट के बाद एक न्यूनतम पेंशन की गारंटी दी जाएगी। यह पेंशन उन्हीं कामगारों को देने की योजना है जिनकी मंथली सैलरी 15000 रुपये से कम हो। इस कदम से घरेलू नौकरानियों, ड्राइवरों, प्लबंर, बिजली का काम करने वालों, नाइयों और उन दूसरे कामगारों को फायदा हो सकता है, जो इस स्कीम के तहत तय सैलरी से कम कमाई कर पाते हों। एक सीनियर सरकारी अधिकारी ने बताया कि लेबर मिनिस्ट्री ने यह प्रस्ताव फाइनेंस मिनिस्ट्री को दिया है। उन्होंने बताया, लेबर मिनिस्ट्री इस पर काफी जोर दे रही है। सरकार का मानना है कि वर्कफोर्स के इस हिस्से को कोई सोशल सिक्यॉरिटी दी जानी चाहिए क्योंकि रिटायरमेंट की उम्र के आसपास पहुंचने पर वे अपनी आजीविका का इंतजाम नहीं कर सकते। अधिकारी ने कहा कि इस प्रस्ताव को फाइनैंस मिनिस्ट्री जल्द मंजूरी दे सकती है। यह स्कीम लागू होने पर सालाना 1200 करोड़ रुपये की जरूरत होगी और यह देश के 50 करोड़ वर्कर्स को यूनिवर्सल सोशल सिक्यॉरिटी देने के सरकार के विजन की दिशा में एक कदम हो सकता है। अभी न्यूनतम पेंशन 1000 रुपये महीने की है। इस स्कीम की जानकारी रखने वाले अधिकारियों के अनुसार, 18 साल की उम्र से काम शुरू करने वाले किसी वर्कर को 20-25 साल के काम के दौरान मामूली मासिक अंशदान करना होगा और इस स्कीम के लिए उतना ही अंशदान केंद्र की ओर से आएगा। अधिकारी ने बताया, यह स्कीम कई चरणों में लागू की जाएगी और इसके पहले चरण के तहत आंशिक कवरेज दी जाएगी। भारत में करीब 50 करोड़ की वर्कफोर्स है, जिसमें से 90 प्रतिशत हिस्सा असंगठित क्षेत्र में काम करता है। ऐसे वर्कर्स को प्राय: सरकारों की ओर से तय न्यूनतम वेतन भी नहीं मिलता और न ही पेंशन या हेल्थ इंश्योरेंस जैसी सोशल सिक्यॉरिटी मिल पाती है। 15000 रुपये महीने से ज्यादा सैलरी वाले एंप्लॉयीज प्रॉविडेंट फंड ऑर्गनाइजेशन या एंप्लॉयीज स्टेट इंश्योरेंस कॉरपोरेशन के तहत कवर्ड हैं, लिहाजा पहले चरण में उन्हें प्रस्तावित स्कीम के दायरे से बाहर रखा जाएगा। आरएसएस से जुड़ी ट्रेड यूनियन भारतीय मजदूर संघ के महासचिव वृजेश उपाध्याय ने कहा कि कैबिनेट मिनिस्टर अरुण जेटली ने जनवरी के पहले सप्ताह में बीएमएस के साथ बैठक में ऐसे कामगारों के लिए सोशल सिक्योरिटी की मांग पर सैद्धांतिक सहमति जताई थी। यह स्कीम एक व्यापक यूनिवर्सल सोशल सिक्यॉरिटी सिस्टम बनाने की लेबर मिनिस्ट्री की पहले की कोशिशों से कुछ अलग है जिसमें 50 करोड़ वर्कर्स को एसईसीसी डेटा के आधार पर चार स्तरों में बांटा गया था और सबसे नीचे वाले 25 प्रतिशत वर्कर्स के लिए अंशदान सरकार को ही करना था, उसके ऊपर के 25 प्रतिशत हिस्से के लिए सब्सिडी दी जानी थी जबकि इससे ऊपर के स्तरों वालों को या तो खुद अंशदान करना था या उनके एंप्लॉयर्स को इसमें हाथ बंटाना था।

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