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आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने कहा- रुपये पर हायतौबा न मचाएं, 68-70 का लेवल सही


नई दिल्ली : आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने कहा कि डॉलर के मुकाबले भारतीय करेंसी के लिए 68-70 का लेवल ठीक है। दीपशिखा सिकरवार को दिए इंटरव्यू में गर्ग ने करंसी, कच्चे तेल, इकनॉमी की चुनौतियों पर बात की। डॉलर के मुकाबले रुपये 72 के लेवल तक पहुंच गया है। कुछ एक्सपर्ट्स इसके 75 तक जाने की बात कह रहे हैं। क्या आप रुपये में गिरावट से परेशान हैं? मुझे नहीं पता कि कौन लोग इसके 75 तक जाने की बात कह रहे हैं। मेरे हिसाब से 72 का लेवल भी ज्यादा है। डॉलर के मुकाबले इमर्जिंग मार्केट्स की मुद्राएं कमजोर हुई हैं। कुछ एक्सपर्ट्स के मुताबिक, जिन इमर्जिंग मार्केट्स का करंट अकाउंट डेफिसिट ज्यादा है, उन पर आगे चलकर दबाव बढ़ सकता है। इसी वजह से पिछले हफ्ते अचानक कई देशों की करंसी में गिरावट आई और रुपया भी इसके असर से नहीं बच पाया। हालांकि, जून तिमाही में भारत का बैलेंस ऑफ पेमेंट डेफिसिट सिर्फ 11 अरब डॉलर था। हम इसे आसानी से मैनेज कर सकते हैं। आयातकों को भी रुपये में गिरावट का डर सता रहा है। इसलिए वे अधिक हेजिंग कर रहे हैं। कुछ एक्सपोर्टर्स अभी पेमेंट नहीं ले रहे हैं क्योंकि वे बाद में रुपये में और कमजोरी आने पर अधिक फायदे की उम्मीद कर रहे हैं।

हालांकि, पिछले हफ्ते के अंत में रुपये में कुछ रिकवरी हुई। मुझे लगता है कि रुपया 72 का लेवल पार नहीं करेगा। जो ऑपरेटर्स इमर्जिंग मार्केट्स की करंसी में कमजोरी का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें आगे चलकर पछताना पड़ सकता है। मेरे हिसाब से 68-70 का लेवल भारतीय मुद्रा के लिए सही है। गर्ग ने बताया, भारत से अधिक विदेशी मुद्रा बाहर नहीं जा रही है। इसलिए मुझे नहीं लगता कि इस तरह का कोई कदम उठाने की जरूरत है। हालांकि, अगर जरूरत पड़ी तो हम ऐसे उपाय करने के लिए तैयार हैं। इस साल क्रूड ऑइल की कीमत 55 से बढ़कर 72-73 डॉलर प्रति बैरल हो गई। पूरे साल में क्रूड के दाम में 1 डॉलर की बढ़ोतरी से हमारे इंपोर्ट बिल में 1 अरब डॉलर की बढ़ोतरी होती है। पिछले कुछ दिनों में ग्लोबल फैक्टर्स की वजह से इसकी कीमत 70 डॉलर से बढ़कर 78-79 डॉलर हो गई। हालांकि, पूरे साल में इसकी औसत कीमत 80 डॉलर से अधिक नहीं रहेगी यानी 20-25 अरब डॉलर का असर हम पर पड़ सकता है। इसी वजह से करंट अकाउंट डेफिसिट में बढ़ोतरी हुई है। हालांकि, इससे बैलेंस ऑफ पेमेंट को लेकर स्थिति नहीं बिगड़ेगी। ईरान से तेल खरीदने का रास्ता निकालने की कोशिश हो रही है। हम अमेरिका से भी इस बारे में बात कर रहे हैं। सरकार फ्यूल पर ऐड वेलोरम ड्यूटी नहीं वसूलती। इसका मतलब यह है कि पेट्रोल-डीजल की कीमत बढ़ने पर सरकार की आमदनी नहीं बढ़ती। हमने एक्साइज ड्यूटी से होने वाली आमदनी को बजट में शामिल करते हुए 3.3 पर्सेंट फिस्कल डेफिसिट का टारगेट तय किया है। इसलिए एक्साइज ड्यूटी घटाने पर हमें दूसरे जरियों से उसकी भरपाई करनी होगी। ऐसा करने पर कई योजनाओं पर खर्च घटाना पड़ सकता है। हम मैक्रो इकॉनमी से भी समझौता नहीं कर सकते। जहां तक रुपये और करंट अकाउंट की बात है, मार्केट फिस्कल डेफिसिट पर क्लीयर डायरेक्शन का इंतजार कर रहा है। क्या आप यह वादा कर सकते हैं कि सरकार चुनावी साल में इसका लक्ष्य पूरा करेगी? सरकार ने मैक्रो-इकॉनमिक स्टेबिलिटी का वादा किया है और फिस्कल डेफिसिट इसका अहम पहलू है। हम इसे लेकर कमिटेड हैं। अगर आगे चलकर आम लोगों पर कच्चे तेल का बोझ कम करने की जरूरत पड़ी तब भी हम फिस्कल डेफिसिट के लक्ष्य से समझौता नहीं करेंगे। विदेशी मुद्रा में कर्ज लेने वालों को भरोसा रखना चाहिए कि रुपये में और गिरावट नहीं आएगी। इसलिए उन्हें परेशान नहीं होना चाहिए। अगर बहुत ज्यादा हेजिंग या फॉरवर्ड बाइंग न हो, तो उससे भी रुपया जल्द स्थिर होगा। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि सिर्फ डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो रहा है। अगर उन्होंने डॉलर के अलावा दूसरी करंसी में कर्ज लिया है तो उन्हें चिंतित होने की जरूरत नहीं है। पिछले शुक्रवार को इंडेक्स फंड्स में 30 करोड़ डॉलर का निवेश हुआ। इससे ऐसा लग रहा है कि रुपये में जितनी गिरावट आनी थी, उतनी आ चुकी है। बॉन्ड यील्ड में बढ़ोतरी हो चुकी है और ब्याज दरें भी कुछ हद तक ज्यादा हैं। मुझे लगता है कि रुपये की हालत सुधरने पर सिचुएशन सामान्य हो जाएगा।

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