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करेंसी जंगल में छिपाते हैं और रीयल एस्टेट में निवेश करते हैं माओवादी


नई दिल्ली : राष्ट्रीय जांच एजेंसी की जांच में पता चला है कि माओवादी करेंसी को ठूंस-ठूंस कर पॉलिथीन में भरते हैं और कई पॉलिथीन से उसे लपेट देते हैं। इसके बाद कैश को लोहे के बक्शे आदि में डालकर सुदूर जंगली इलाकों में गड्ढे खोदकर छिपा दिया जाता है। 6 महीने लंबी चली एनआईए जांच में हिंसक लेफ्ट विंग इक्स्ट्रीमिज्म (LWE) से प्रभावित 90 जिलों में माओवादी फंडिग ऑपरेशंस के बारे में कई अहम सुराग मिले हैं। एजेंसी को यह भी पता चला है कि माओवादी रियल एस्टेट, बहुमूल्य धातु (सोना या चांदी) और बिजनस में निवेश करते हैं। टॉप लीडर्स के बच्चों की पढ़ाई पर भी काफी खर्च किया जाता है। माना जा रहा है कि एनआईए जांच से माओवादी लीडर्स, उनके शुभचिंतकों, फंड मैनेजरों और उनसे संबद्ध कारोबारियों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की जमीन तैयार हो गई है। पिछले कई महीनों से टेरर फंडिंग के 10 मामलों की जांच भी चल रही है और अब तक कई लोगों से पूछताछ हो चुकी है। कई एजेंसियों के अनुमान के मुताबिक माओवादियों को हर साल करीब 100 से 120 करोड़ रुपये की फंडिंग होती है। हालांकि एनआईए अब भी इसका सही-सही अनुमान लगाने की कोशिश कर रही है। फंडिंग की मोटी रकम को माओवादी कई तरीके से ठिकाने लगाते हैं। हर साल पैसे जुटाने के आंकड़े अलग-अलग हैं। 2007 में गिरफ्तार सीपीआई-माओवादी पोलितब्यूरो के सदस्य ने बताया था कि 2007-09 के लिए उनका बजट 60 करोड़ था। 2009 में गिरफ्तार एक अन्य ने इसे 15-20 करोड़ बताया था। उसी साल छत्तीसगढ़ के तत्कालीन डीजीपी ने कहा कि माओवादी देश में जबरन वसूली कर एक साल में 2,000 करोड़ रुपये जुटा लेते हैं। राज्य के सीएम ने उनका बजट 1,000 करोड़ बताया था। 2010 में पूर्व विदेश सचिव जीके पिल्लई ने माओवादियों की सालाना इनकम 1400 करोड़ रुपये बताई थी। एक अनुमान के मुताबिक हर साल माओवादियों को 100 से 120 करोड़ की फंडिंग होती है। कुछ मामलों में पैसे को सॉर्स के पास ही छोड़ दिया जाता है और उसे तभी लिया जाता है जब जरूरत हो। जंगली इलाकों में पैसे को जमीने के नीचे छिपाया जाता है तो कुछ केस में फ्रंट-मेन के सुपुर्द कर दिया जाता है। NIA का कहना है कि माओवादी पैसे को गोल्ड बिस्किट में निवेश, फिक्स्ड डिपॉजिट्स और रियल एस्टेट में खर्च कर रहे हैं। पैसे को ठिकाने लगाने की रणनीति स्पष्ट करते हुए एनआईए ने बताया है कि मनी को रियल एस्टेट एजेंट्स (जो पूर्व साथी या काडर का भरोसेमंद शख्स होता है) के हवाले कर दिया जाता है। इसके बाद यह एजेंट अपने तरीके से पैसे का निवेश करता है और जब माओवादियों की तरफ से डिमांड की जाती है वह पैसे को वापस कर देता है। एनआईए का कहना है कि LWE समूह व्यक्तियों, छोटे कारोबारियों, तेंदु पत्ता के ठेकेदारों, सरकारी ठेकेदारों (रोड, ब्रिज, स्कूल और सामूहिक केंद्र पर काम करने वाले) से पैसे ऐंठते हैं। इसके साथ ही उनके निशाने पर कोयला और स्टील उत्पादक क्षेत्र, स्टोन क्रशर्स के मालिक, ट्रांसपोर्टर्स और स्थानीय ठेकेदार भी होते हैं। माओवादी गांव वालों से ‘सदस्यता शुल्क’ भी लेते हैं।

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