दस्तक-विशेष

गुजरात : सत्ता में पुनर्वापसी के लिए भाजपा को करनी होगी मशक्कत

-पंकज शर्मा

गुजरात के बदले हुए सामाजिक – राजनीतिक हालात में भाजपा के जनाधार में 8-10 प्रतिशत गिरावट का अनुमान है तो कांग्रेस मजबूत स्थिति में दिख रही है। आरक्षण प्रतिक्रिया में बदलाव से गुजरात का पिछड़ा वर्ग भाजपा से काफी नाराज है, तो पाटीदार अनामत आंदोलन के दौरान 14 नौजवानों की मौत से कुणबी पाटीदार समाज का वोट बैंक भाजपा से खिसकता दिख रहा है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने चुनाव पूर्व सर्वे कर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपनी रिपोर्ट दे दिया। ऊना में दलितों की हत्या से भी भाजपा का काफी नुकसान होना निश्चित है। संघ के सर्वे में विधानसभा चुनाव 2012 में प्राप्त सीटों में सीधा परिवर्तन होता दिख रहा है। कांग्रेस को जहां 120 से अधिक सीट मिलने की स्थिति है तो भाजपा के 57-60 सीट तक सिमटने का अनुमान है। गुजरात के विधानसभा चुनाव में विजय के लिए अमित शाह – नरेन्द्र मोदी की परेशानी बढ़ी है। और गुजरात में भाजपा की विजय के लिए ये किसी भी हद तक जा सकते है। वर्तमान में गुजरात की जो सामाजिक – राजनीतिक हालात बने है , उससे भाजपा अध्यक्ष व प्रधानमंत्री को अपने ही गृह प्रदेश में मुहं की खानी पड़ सकती है। गुजरात के सामाजिक समीकरण में कोली मछुआरा समाज की आबादी 24.22 प्रतिशत है और आदिवासी जातियां 17.61 प्रतिशत, पटेल कुणबी पाटीदार 12.16 प्रतिशत हैं। अछूत दलित जातियों की गुजरात में अन्य राज्यांे से काफी कम मात्र 7.17 प्रतिशत आबादी है, वहीं मुसलमान भी 8.53 प्रतिशत है।
पश्चिमी गुजरात (सौराष्ट्र – कच्छ) में कोली मछुआरा और कुणबी पाटीदार (लेऊआ पटेल) का काफी मजबूत जनाधार है। सौराष्ट्र व कच्छ की 58 सीटों में से 36 सीटों पर लेऊआ पटेल का वर्चस्व है तो दूसरी तरफ सौराष्ट्र की 46 व दक्षिणी गुजरात की 13 सीटों पर कोली मछुआरा की आबादी काफी निर्णायक है। सौराष्ट्र की 24 व दक्षिणी गुजरात की 13 सीटों पर तो कोलियों की आबादी लगभग 50 प्रतिशत है। भाजपा ने राजनीति के तहत भी कोलियों व दलितो ं को अपने पाले में करने के लिए रामनाथ कोविन्द को राष्ट्रपति बनाया है और इन्हें कोरी न प्रचारित करा गुजरात की कोलियों की ताकत को अपने साथ करने के लिए कोली प्रचारित कराया। इस विषय पर सामाजिक न्याय चिन्तक व मछुआरो के नेता लौटन राम निषाद ने कहा कि रामनाथ कोविन्द को कोली प्रचारित कराया जाना बहुत बड़ा धोखा है। यह भाजपा की झूठ-फरेब व छल कपट की राजनीति का हिस्सा है। क्योंकि कोरी व कोली बिल्कुल अलग-अलग जातियां हैं।
गुजरात के जातिगत समीकरण में ब्राह्मण – 4.06, राजपूत/क्षत्रिय – 4.85, बनिया – 2.96, कुणबी पाटीदार – 14.53 व अन्य सवर्ण जातियां – 1.13 प्रतिशत हैं। मध्यवर्तीय पिछड़ी जातियों में कोली – 24.22 प्रतिशत, माछी – 0.55, भोई – 0.38, खड़बा – 0.19, शिल्पी – 06.13 माली – 0.12, भाट बरोट – 0.33, भारवाड़/यादव – 02.01, घाॅची – 0.32 प्रतिशत, केवट, माझी सहित अन्य अतिपिछड़ी जातियां 4.17 प्रतिशत, अछूत दलित – 7.17 प्रतिशत, आदिवासी – 17.61 प्रतिशत, मुस्लिम – 8.53 प्रतिशत, ईसाई – 0.75, पारसी – 0.21 प्रतिशत, अन्य – 0.05 प्रतिशत हैं । गुजरात में कोली समुदाय कुणबी पाटीदार से लगभग दुगुना है, पर पटेल राजनीतिक रूप से काफी जागरूक व ताकतवर हो चुके हैं। सौराष्ट्र व कच्छ क्षेत्र में कोली मछुआरों में इधर जागरूकता आई है परन्तु दक्षिणी गुजरात, मध्य व उत्तरी गुजरात में कोली समाज के प्रभावशाली नेता नहीं है। परषोत्तम भाई सोलंकी काफी मजबूत व प्रभावााली नेता है पर इनके कद को सीमित रखने जाने कोली समाज ने काफी नाराजगी दिख रही है। नरेन्द्र मोदी के साथ 2001 में सोलंकी राज्यमंत्री पद की शपथ लिये थे और आज भी विजय रूपाणी मंत्री मण्डल में भी राज्यमंत्री ही हैं। पिछले चुनाव में इन्होंने भाजपा से कोली समाज को 25-30 टिकट देने का मुद्दा उठाये थे। इनके अलावा राज्य सभा सांसद चुन्नी भाई गोहिल, शंकर भाई नानू भाई कोली व लोकसभा सांसद भारती बेन शियाल, के साथ देव जी फटेपारा, सोमागंडा पटेल , सत्य नारायण पवांर , जगदीश ठाकुर आदि प्रभावशाली नेता है। इस बार गुजरात में कोली को सीएम फेस घोषित करने का मुद्दा उछलता दिख रहा है।
कांग्रेस के कुलीन शासक वर्ग में ब्राह्मण, बनिया गठबंधन हावी रहा। प्रदेश में खेतिहर जमीन का बहुत ही आसान बटवारं था। प्रकारान्तर में पाटीदार खेतिहर कांग्रेस के कुलीन शासक वर्ग में सम्मिलित हुए। सन् 1908 से कांग्रेस स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कुंवरजी मेहता पाटीदारों को संगठित करने में लग गये। उत्तरी गुजरात और सौराष्ट्र में कुणबी ही पाटीदार हैं। पाटीदारों को लुबवा, काड़वा, अंजाना , लेऊआ और मोती में विभाजित किया जा सकता है। जनसंख्या की दृष्टि से कोली मछुआरा सबसे अव्वल हैं, कोली सहित मछुआरों जातियों की संख्या 29.84 प्रतिशत है। कोली मध्य एंव उत्तर गुजरात में क्षत्रिय और दक्षिण गुजरात में पटेल कहलाना पसन्द करते है। कोली 8 प्रतिशत धनी किसान हैं, और कोली में तटवर्तीय और मैदानी विभाजन के अलावा तलबदार, पातनवाड़िया, चुआड़िया, मकवाना, धाराला, माछी, मातिया, गु लाम, खाॅत, महादेव कोली, मल्हार कोली, टोकरे कोली, महावर कोली, सूर्यंवंशीय कोली, खेवर कोली, खेवर मच्छीमार, ढोर कोली, महागीर कोली चैनपवालिया उपतविभाजन है।
गुजरात में 24 मुख्यमंत्रियों में 16 मुख्यमंत्री सवर्ण जातियों ब्राह्मण, बनिया और क्षत्रिय रहे हैं। जबकि वर्चस्व वाली पाटीदार जाति 6 अवसरों पर राज सिंहासन पर आरूढ़ हुई है। पिछड़ी व आदिवासी जातियों में से अभी तक एक-एक मुख्यमंत्री बना है। प्रदेश में सबसे अधिक 24.22 प्रतिशत आबादी वाला कोली सहित 29.84 प्रतिशत कोली मछुआरों में से एक भी मुख्यमंत्री के सिंहासन तक नहीं पहुंचा। गाहे-बगाहे एक -दो लोगों को राज्यमंत्री बना दिया जाता है। विजय रूपाणी मंत्रीमंडल मे कोली समाज के तीन राज्यमंत्री हैं जबकि पाटीदार समाज के नितिन पटेल उपमुख्यमंत्री व दो कैबिनेट तथा पांच राज्यमंत्री हैं। गुजरात में कांग्रेस हो भाजपा, पटेल पाटीदारों को टिकट वितरण में ज्यादा तवज्जो देते हैं। 1997 के विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस व भाजपा में क्रमशः 32 व 57, 2002 के चुनाव में क्रमश: 45व 58, 2007 के चुनाव में 42 व 53 तथा 2012 के चुनाव में 44 व 58 टिकट पाटीदार कुणबीसमाज केा दिया था। जबकि इन चुनाव में कोली समाज को 10-15 टिकट से अधिक नहीं मिला जो इनकी उपेक्षा का परिचायक है।
अमित शाह मध्य प्रदेश के तीन दिवसीय प्रवास के दौरान 160 प्लस का लक्ष्य दिये तो प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान का दूसरे दिन बयान आया कि भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव में 200 प्लस सीटे जीतेगी। मध्यप्रदेश विधानसभा में 230 सीटें हैं और सत्ता में पुनर्वापसी के लिए 116 सीटों की जरूरत पड़ेगी। लेकिन आर.एस.एस. के आन्तरिक सर्वे में भाजपा की राह में रूकावटें आती दिख रहीं हैं। आर.एस.एस. के सर्वे में भाजपा को 100 से भी कम सीटें मिलने के संकेत मिले हैं। यदि कांग्रेस के बड़े नेताओं में ताल मेल बना रहा तो भाजपा के हाथ से सत्ता जानी तय है। व्यापम घोटाला के साथ-साथ भाजपा के कई प्रदेश नेताओे के सेक्स स्कैण्डल से भाजपा की छवि धूमिल हुई है, वहीं किसान आंदोलन ने भी भाजपा की राह में बैरियर लगा दिया है। भाजपा नेतृत्व अगला चुनाव शिवराज के चेहरे पर न लड़कर बिना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किये ही लड़ सकती है। क्योंकि शिवराज सिंह चैहान के नेतृत्व में चुनाव जीतना मुश्किल है।
(लेखक राजनीतिक समीक्षक व वरिष्ठ पत्रकार हैं । )

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