राष्ट्रीयसाहित्य

घने जंगलों के बीच महकता कोई वनफूल

जय प्रकाश मानस

मैं तो उस जगह की कल्पना ही नहीं कर सका था.

यह तो मेरे प्रिय मित्र और राष्ट्रधर्म के संपादक कृष्ण नागपाल ही हैं जिनके सौजन्य से मैं आपको भी अपने साथ वहाँ ले चलना चाहता हूँ.

चलिएगा न !

अजी कहाँ ? पहाड़ों, नदियों और झरनों से घिरे घने जंगलों के बीच केरल के इस आदिवासी इलाक़े में!

यदि आप भी मानते हैं कि पुस्तकों के प्रति पहले जैसा लगाव नहीं रहा । अब किसी के पास पुस्तक पढ़ने का समय ही नहीं तो आपको ज़रूर हमारे साथ हो लेना चाहिए ।

तो चलिए केरल के जिला इडुक्की में सौ वर्गमील में पसरे इस जंगली इलाके और पहाड़ी रास्तों के बीच बसे एक छोटे से आदिवासी गाँव ईरूप्पुकालाकुड़ी की ओर।

पैदल चलते-चलते थक गये हों शायद !

लो जी, यह रहा जंगल बीच यह झोपड़ी । तो देर किस बात की ? इनसे मिलिए : यह हैं पी. व्ही. चिन्नातम्बी । 73 वर्ष की आयु हो चुकी इनकी।

दिखने-देखने में किसी महान् जाति के कोई शिक्षाविद् या विचारक जैसे भी तो नहीं न, स्थानीय मुथावन आदिवासी समुदाय के अन्य साधारण लोगों की तरह ही तो हैं चिन्नातम्बी ।

आज भी दो बड़े बोरों से निकाल कर दरी पर बिछाई गई दुर्लभ किताबें सजाकर बैठे हुए हैं चिन्नातम्बी कि आदिवासी भाई आयें और वे उन्हें ये पुस्तकें इश्यू कर सकें।

आप स्वयं देख लीजिए अभी कुछ देर में पुस्तकों की चर्चा करते-करते अपने सदस्य पाठकों को चिन्नातम्बी मुफ़्त में चाय भी पिलायेंगे ।

जनाब यह पढ़िए : लायब्रेरी से सटी छोटी-सी चाय की दुकान की मिट्टी की दीवार पर टँगे सफ़ेद कागज़ पर उन्होंने अपने हाथों से लिखा है :

“अक्षरा पुस्तकालय, ईरूप्पुकालाकुड़ी, इडामलाकुड़ी।”

आप चाहें तो गिन सकते हैं – इस लायब्रेरी में पुस्तकें तो मात्र डेढ़ सौ के क़रीब ही लेकिन कुछ तो कालजयी लेखकों की भी ।

आप भी चाहें तो तमिल महाकाव्य ‘सिलापट्टीकरम’ का मलयालम अनुवाद और महात्मा गाँधी, वाईकोम मुहम्मद बशीर, एम.टी.वासुदेवन नायर, कमला दास, एम.मुकुन्दन, ललिताम्बिका अनन्तराजनम आदि की पुस्तकें भी पढ़ सकते हैं।

हाँ, शर्त केवल यही कि आसपास के वनग्रामों के ग़रीब आदिवासी किन्तु नियमित पाठकों की तरह रोज़ाना ले जाकर पढ़ने के बाद वापस पुस्तर लौटा ही दें ।

दोस्त, लायब्रेरी संचालन को लेकर आपके मन में कई तरह के प्रश्न भी जाग रहे हैं न इस वक़्त ? तो सुनिए :

चिन्नातम्बी इस लायब्रेरी में पहुँचने वाले मुथावन आदिवासी जनों को किताबें कोई ऐसे ही नहीं थमा देते हैं बल्कि अपने रजिस्टर में उनकी खुद बाकायदा इंट्री करते हैं।

पुस्तकालय को सिर्फ़ एक बार 25 रूपए शुल्क जमा करना होता है। मासिक शुल्क दो रूपए है।

और सदस्य पाठक कौन हैं इनके ?

चिन्नातम्बी के इस ठिकाने तक पहुंँचते हैं मुन्नार के नज़दीकी पेट्टीमुड़ी से 18-18 किलोमीटर दूर-दूर बस्तियों के लोग।

आप हम तो बहुत दूर से आ बिलमे हैं न यहाँ और अब तो भूख भी सताने लगी है, कतई चिन्ता न करें ।

चिन्नातम्बी बकायदा अपने अतिथियों को निःशुल्क भोजन भी कराते हैं।

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