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पश्चिमी उप्र में मायावती की आक्रामक रणनीति और सधी चाल

0 बसपा सुप्रीमो ने जिलाध्यक्षों को जारी किए आदेश, कानून हाथ में लेने वाला बर्दाश्त नहीं 
0 पश्चिम से दो निकाय सीटें जीतकर बसपा कार्यकर्ताओं में जगा कुछ उत्साह

-केपी त्रिपाठी

मेरठ : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद निकाय चुनाव में दो मेयर की सीट पाने के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती फिर से दलित़$मुस्लिम फार्मूले पर चल पडी है। किठौर में हुए बवाल के बाद उन्होंने जिस तरह से कठोर निर्णय लेते हुए बसपा सांसद मुनकाद के पुत्रों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया यह राजनीति में परिपक्वता की निशानी दिर्शाता है। मायावती ने प्रदेश के सभी जिलाध्यक्षों को भेजे पत्र में साफ कर दिया है कि कानून से खिलवाड करने वालों के लिए पार्टी में कोई जगह नहीं है। जिलाध्यक्षों से कहा गया है कि वे विधानसभा वार दलित और मुस्लिमों के सम्मेलन और बैठक कर बसपा से जोडे। 

मुजफ्फरनगर कांड के बाद बसपा से छिटके दलित और मुस्लिम

मुजफ्फरनगर का कवाल कांड होने के बाद दलित और मुस्लिम बसपा से अलग हो गए थे। कवाल कांड ने दलितों को भाजपा के पाले में लाकर खडा कर दिया था। जिसका नतीजा 2014 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद 2017 के विधानसभा बसपा को भुगतना पडा। इन दोनों चुनाव में बसपा को मुंह की खानी पडी और एक भी सीट पश्चिम उप्र से नहीं मिली। इसका एक बडा कारण यह भी रहा कि बसपा ने कवाल कांड पर चुप्पी साधे रखी जबकि अन्य सियासी दल इसको हवा देकर वोटरों का रूख अपनी ओर करते दिखे। इसका सर्वाधिक राजनैतिक लाभ भाजपा को मिला। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद परिस्थिति बदली है और पश्चिम उप्र की राजनीतिक भी अब करवट लेने लगी है। कवाल कांड के घाव भी भर चुके हैं और एक-दूसरे से छिटके दलित, मुस्लिम भी एक होते दिख रहे है। 

निकाय चुनाव में मिला बसपा को दलित मुस्लिम का साथ

स्थानीय निकाय के चुनाव में पहली बार अपने आधिकारिक चिहन पर मैदान में उतरी बसपा के लिए यह अपने वजूद को बचाने की लड़ाई थी। राजनीतिक प्रेक्षकों के मुताबिक बसपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती, उस दलित जनाधार को दोबारा वापस हासिल करना था, जो हाल में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान सुनामी विचलन के तहत भाजपा में चला गया है। मेरठ और अलीगढ की मेयर सीट जीतकर बसपा में कुछ जान सी पडी और मायावती ने अपनी 2019 की लडाई के लिए थोडी बहुत जगह बनाई। 

सधी चाल और आक्रामक रणनीति

निकाय चुनाव में मिली इस सफलता से मायावती ने पश्चिम उप्र से ही पार्टी के डैमेज कंटोल को भरने की शुरूआत की है। उनका ध्यान मुजफफरनगर , सहारनपुर, बिजनौर, मेरठ, अलीगढ, मुरादाबाद, बुलंदशहर, हापुड जैसे दलित और मुस्लिम बाहुल्य जिले हैं।

पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से प्रतिदिन कर रही पत्राचार 

वरिष्ठ बसपा कार्यकर्ता और बसपा की नीव रखने वालों में से एक बख्तावर सिंह की माने तो बहन जी अब पुराने कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों से भी संपर्क कर रही है। बहन जी को कोई कार्यकर्ता पत्र लिख रहा है तो उन्हें वह जवाब भी दे रही है। बसपा के जिलाध्यक्ष मोहित कुमार ने बताया कि जल्द ही बहन जी सभी जिलाध्यक्षों की बैठक बुलाने वाली है। जिसमें वे आगे की रणनीति तय करके दिशा-निर्देश जारी करने वाली है। बहन जी ने साफ कह दिया है कि पार्टी में अगर कोई कानून हाथ में लेता है तो उसे पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा। इसमें चाहे कोई भी हो। वर्ष 2007 से 2012 तक पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली बसपा हाल में सम्पन्न विधानसभा चुनाव में महज 19 सीटें जीतकर आत्ममंथन की स्थिति में है.

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