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राजनीति में दागियों पर लगेगी लगाम! उच्चतम न्यायालय के फैसले से उत्तर प्रदेश में बड़े बदलाव की उम्मीद

लखनऊ : राजनीति में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले उत्तर प्रदेश में भी शायद अब दागियोंं के ‘माननीय’ बनने की परंपरा टूटे। सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति का अपराधीकरण रोकने के लिए गुरुवार को जो फैसला सुनाया है, उससे मुख्तार अंसारी, बृजेश सिंह, अतीक अहमद, बृज भूषण शरण सिंह, धनंजय सिंह, गुड्डू पंडित, अजय सिपाही जैसे दबंगों के खादी का दामन थाम विधानसभा और लोकसभा का रास्ता तय करने की हसरतों का गहरा झटका लगा है। राजनीतिक दलों के लिए भी किसी सीट को हर कीमत पर हासिल करने की गणित के तहत ऐसे चेहरों को अपनाना मुश्किल होगा। राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए अब दलों को भी दृढ़ इच्छाशक्ति दिखानी होगी। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म (एडीआर) की रिपोर्ट पर नजर दौड़ाए तो दागी उम्मीदवारों के चुनाव मैदान में ताल ठोंकने की परंपरा के मजबूत साक्ष्य खुद-ब-खुद सामने आ जाते हैं। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 402 में से 143 विधायकों ने अपने ऊपर आपराधिक मामले घोषित किये थे। यानी 36 फीसद विधायक दागी थे। इनमें भी 107 ऐसे विधायक थे, जिन्होंने खुद पर गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए थे। इससे पहले वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में 189 विधायकों ने खुद पर आपराधिक केस घोषित किए थे, जिनमें 98 पर गंभीर धाराओं के केस दर्ज थे।

आठ विधायकों ने खुद पर हत्या तथा 34 ने हत्या के प्रयास के केस दर्ज होने की बात स्वीकार की थी। भाजपा के 312 में से 114, सपा के 46 में से 14, बसपा के 19 में से पांच व कांग्रेस के सात में से एक विधायक और तीन निर्दलीय विधायकों ने खुद पर आपराधिक मामले दर्ज होने की घोषणा की थी। गंभीर आपराधिक मामलों की सूची में भाजपा के 83, सपा के 11, बसपा के चार, कांग्रेस के एक और तीन निर्दलीय विधायक शामिल थे। लोकसभा चुनाव 2019 में भी खुद पर आपराधिक मामले दर्ज होने की घोषणा करने वाले उम्मीदवारों की कमी नहीं थी। 24 उम्मीदवारों ने खुद पर आपराधिक मामले दर्ज होने की घोषणा की थी, जबकि 21 उम्मीदवारों ने खुद पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज होने की बात स्वीकार की थी। सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति का अपराधीकरण रोकने के लिए गुरुवार को अहम फैसला सुनाया। दागियों के लिए संसद और विधानसभा के दरवाजे बंद करने के लिए राजनीतिक दलों को निर्देश जारी किये गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि दल जिस उम्मीदवार का चयन करेगा उसके आपराधिक रिकार्ड सहित सारा ब्योरा पार्टी की वेबसाइट, फेसबुक और ट्विटर पर डालेगा। इतना ही नहीं राजनीतिक दल यह भी बताएंगे कि उन्होंने आपराधिक पृष्ठभूमि के व्यक्ति को उम्मीदवार क्यों चुना और जिनकी आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है उन्हें क्यों नहीं उम्मीदवार बनाया गया। कोर्ट ने कहा कि उम्मीदवार चयन का पैमाना सिर्फ जीतने की संभावना नहीं हो सकती।

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