दस्तक-विशेषराष्ट्रीयलखनऊ

लक्ष्‍य रहित व्‍यक्ति का आलसी होना तय

18 pravachanश्रीरामचरित मानस कथा ज्ञान यज्ञ 
लखनऊ। सुग्रीव की आज्ञा से चारो दिशाओं में वानर सीताजी की खोज में जाते हैं। उन सभी के समय की सीमा भी बांध दी जाती है कि आप लोग एक पखवारे के अंदर सीताजी का पता लगाकर अवश्‍य लौट आएं। तात्‍पर्य यह कि कोई भी कार्य करते समय व्‍यक्ति यदि समय का लक्ष्‍य लेकर न चले तो कभी-कभी प्रमादी अथवा आलसी बन जाता है। हरदोई रिंग रोड स्थित पारा थाने के करीब स्थित कृष्‍ण-कांता लान में आयोजित सात दिवसीय श्रीराम चरित मानस कथा ज्ञान यज्ञ के पंचम दिवस प्रवचन करते हुए युगतुलसी पण्डित रामकिंकर जी उपाध्‍याय के पट्टशिष्‍य एवं सुप्रसिद्ध मानस मर्मज्ञ व्‍यास पं. उमाशंकरजी शर्मा ने यह बात कही। प्रवचन प्रारंभ होने से पूर्व चित्रकूट से पधारी श्रीराम कथा गायन मंडली ने संगीत की सुमधुर स्‍वर लहरियों के बीच भजनों की अनूठी प्रस्‍तुति की। कार्यक्रम के संयोजक डॉ. एसके विश्‍वकर्मा ने श्रीराम कथा अनुष्‍ठान प्रतिवर्ष आयोजित किए जाने की घोषणा की। व्‍यासजी ने कहा कि दक्षिण दिशा की ओर भेजने के लिए जो विशिष्‍ट वानर थे जैसे जामवंत, हनुमान, अंगद, नल-नील आदि को सुग्रीव ने चुना क्‍योंकि दक्षिण दिशा काल की दिशा मानी जाती है। उनका अभिप्राय था कि लक्ष्‍य पाने के लिए जो काल के प्रति भी निश्चिंत रहे वही इस अभियान में सफल हो सकता है। तब सुग्रीव ने कहा कि स्‍वामी की सेवा इस भाव से करनी चाहिए जिस प्रकार सूर्य की धूप पीठ करके ली जाती है। पीठ की ओर धूप लेने का मतलब है सूर्य व्‍यक्ति के हृदय तक की ठंडक को ऊष्‍मा प्रदान कर देता है। इसी प्रकार हमारे मन में सदा यही भाव रहना चाहिए कि स्‍वामी हमारे साथ है। ऐसे भाव में स्‍वामी की उपस्थिति से हमे मानसिक तथा भौतिक दोनो ही प्रकार से बल प्राप्‍त होता है। स्‍वामी के कार्य को करते हुए छल, कपट का परित्‍याग कर देना चाहिए। व्‍यासजी के अनुसार ऐसे में सारे वानर श्रीराम को प्रणाम करके लक्ष्‍य पाने को बढ़ चलते हैं लेकिन हनुमान जी ने सबसे अंत में श्रीराम को प्रणाम किया, तब श्रीराम ने उनके मस्‍तक पर हाथ रखा और अपने नाम की मुद्रिका उतारकर दी। अभिप्राय यह कि शांति की ओर जो भी यात्रा होगी उसका श्रीगणेश श्रीराम की साधना से ही संभव है। मुद्रिका देते समय प्रभु का उदृदेश्‍य था कि देखें हनुमान इसके साथकैसा व्‍यवहार करते हैं क्‍योंकि इसमे राम का नाम लिखा है और यह अनेक रत्‍नों एवं मणियों से सुसज्जित मुद्रिका है। यदि हनुमान का ध्‍यान रत्‍नों की ओर होगा तो वह उसे किसी चीज में बांधकर रखेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ और हनुमान जी ने वह मुद्रिका अपने मुख में रख ली। मानस मर्मज्ञ ने कहा कि तब लोगों के कौतुहल का ठिकाना नहीं रहा जब हनुमान जी को मुद्रिका मुंह में रखते हुए देखा। तात्विक अभिप्राय यह कि राम नाम को रखने के लिए मुख से बढ़कर दूसरा और कोई स्‍थान नहीं हो सकता। ऐसे में प्रभु श्रीराम समझ गए कि यह कार्य संपादित करने में सिर्फ और सिर्फ हनुमान ही सक्षम हैं।

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