दस्तक-विशेषराष्ट्रीय

लखनऊ व दिल्ली-एनसीआर में जहरीली कणों की हवाएं- क्यों और कैसे आयी?

डा० भरतराज सिंह, महानिदेशक-तकनीकी
स्कूल आफ मैनेजमेन्ट साइंसेस व
अध्यक्ष, वैदिक विज्ञान केंद्र, लखनऊ

विगत वर्ष 25-26 नवम्बर 2016 को हिमांचल के नजदीक दिल्ली व हिमालय से सटे उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में; शीतलहर व कुहरे के साथ साथ हवा में जहरीले कणों का धुन्ध छाया हुआ था| इससे साँस लेना मुस्किल हो रहा था| उस समय मौसम वैज्ञानिको का अनुमान उनके विश्लेषणों पर खरा नहीं उतर पा रहा था | पिछली दीवाली 30 अक्टूबर 2016 को थी, उसके कुछ दिनो बाद, लगभग 10 दिनों तक कुहरा छटने का नाम नहीं ले रहा था| जनता व पशु-पक्षी भी ठण्ड व कुहरे से उत्पन्न प्रदूसित वायु मे उपलब्ध जहरीले कणों से वेहाल हो चुके थे, परंतु इसकी जानकारी नहीं थी कि इससे साँस लेने में दिक्कत क्यों हो रही है और इससे क्या-क्या दिक्कते आगे आयेगी?
इस वर्ष भी दीपावली जो 19 अक्टूबर 2017 को थी, के बाद, पंजाब व चन्डीगढ मे कटाई के उपरांत आसमान में धुन्ध हफ्ते भर छायी रही| इसका क्या कारण है, लोगो में तरह-तरह की भ्रान्तिया पैदा हुयी| हम सभी जानते हैं, हवा में प्रदूषण का मुख्य कारण औद्योगिकीकरण की अन्धाधुंध बढोत्तरी व वाहनों की निरन्तर मांग तथा उसके इंजन से उत्पन्न धुआँ जो वाहनों के निकास पाइप से निरंतर निकलता रहता है तथा उसमे बढोत्तरी होती रहती है| इस प्रकार आसमान में लगभग 10 से 20 किलोमीटर दूरी पर ग्रीन हाउस गैसेस का अधिक से अधिक जमाव व धरती से विकरण हुयी सूरज की किरणों से धरती गरम हो रही है| इस पर वाहनों व औद्योगिकीकरण से निकलने वाले धुएं के क्वालिटी को रोकने के लिए ‘जलवायु संरक्षण नीति’ लागू की गयी है जिससे पार्टिकुलेट मैटर (PM) पीएम-2.5 – 60 प्रति घनमीटर व पीएम-10 -100 प्रति घनमीटर तक रोकने हेतु तय किया गया है |

पूर्व की घटनाएं-

वर्ष 1952 में लन्दन में एक सप्ताह धुन्ध के बादल छाने व वातावरण में सल्फर डाई–ऑक्साइड की अधिक मात्रा से लगभग 4000 मौतें हुयी थी, वही अमेरिका में भी 1972 में आसमानी धुन्ध से लगभग 25 मौते होने का पूर्व उदहारण मिलता है|

कारण –

अब आईये जहरीली हवा जो दिल्ली व लखनऊ में एक सप्ताह तक बादल के रूप में छायी रही और जनता को साँस लेने में भी अधिक कठिनाई उत्पन्न हुयी तथा स्कूल व कॉलेज को भी बंद करना पड़ा, के वैज्ञानिक कारण का आकलन करें| दीवाली के त्यौहार में उत्साह का प्रदर्षन करने वालो की होड़ में बड़े शहरों में क्रैकर्स, चटाई व धुएं देने वाले फुलझड़ी पर करोडो रूपये का वारा-न्यारा किया जाता है और हवा को जहरीला बनाया जाता है| इसके असर इतना गम्भीर हो जाता है कि वारिस के मौसम के अंतिम दौर व शरद ऋतु आगमन के इस मोड़ पर रात में हवा में नमी आने से जलविन्दुओ भारीपन आने से ओस का रूप ले लेती है। वही जहरीले कण पुनः धरती के नजदीक जलविन्दुओ के दवाव में नीचे आ जाते है और साँस लेने में तकलीफ देने लगते है| इस प्रकार की धुएं की धुंध चारो तरफ इकट्ठा होकर पूरे वातावरण में पीएम-2.5 की मात्रा 485 प्रति घनमीटर व पीएम-10 की मात्रा 1700 प्रति घनमीटर तक पहुँचा देते है और कई जगह दिन–दिन भर धुन्ध के बादल बने रहने से जीवन के लिए घातक हो जाता है| यह मात्रा 6 से 17 गुणा बढ़ जाती है|
लखनऊ शहर में शीतलहर के कुहरे के साथ साथ हवा में धुन्ध छाया हुआ है, उसमें साँस लेना मुस्किल हो रहा है –इसका क्या कारण है तथा इससे क्या नुकसान होगा?

विगत दो-वर्षो से, शीतकालीन मौसम प्रारम्भ होते ही, हवा में प्रदूषण के कणो (पीएम-2.5) की मात्रा 485 – 536 जो 8-9 गुणा सीमा से अधिक बढ़ जाता है, जो जान-लेवा साबित होता है | लखनऊ व दिल्ली देश ही नहीं वरन पूरे विश्व में
सबसे अधिक प्रदूषित शहर की श्रेणी में आ जाते है| जो भी लोग (बच्चे, जवान व वुजुर्ग) सुबह-शाम घरों से बाहर निकलते है अथवा दिन मे कार्यालय जाते है, उन सभी को साँस लेने में कठिनाई महसूस होती है| इसका मुख्य कारण- जो ग्रीन हाउस गैसो के प्रदूषित कण वायु मंडल में पहुचती है वह फाग व शीतलहर में, जब ओश की बूंदे बनती है तो उनके दबाव से प्रदूषित कण जमीन के सतह के पास आ जाते हैं | इससे हवा की क्वालिटी बहुत गिर जाती है और साँस लेते संमय यह कण जो नैनो आकार व मापके होते हैं, साँस नाली के द्वारा मनुष्य व जीव-जन्तुओ में भी फेफड़ो, ह्रदय की धमनियों व आंतो में पहुंचकर चिपक जाते हैं और बाद में बाहर न निकल पाने व शरीर के अंदरूनी दीवालो के रास्तो को भी सकरा कर देते है, जिससे तरह-तरह के रोगों (कैंसर, हृदय्रोग, किडनी आदि) के उत्पन्न होने का खतरा बढ्ता जा रहा है|

उपाय-

  • वायु-प्रदूषण की अधिकता को दृष्टिगत रखते हुये क्रैकर्स के खरीद-फ़रोख्त पर पुर्णतः प्रतिबंद लगाना अति आवस्यक होगा | ऐसी समय पर, कागज, पत्तो व कूड़ा करकट को जलना नहीं चाहिए अन्यथा हवाओ में जहरीली कणो की अधिक बढोत्तरी होगी |
  • सड़क व खुले स्थानों पर झाडू का उपयोग, पानी के छिडकाव के उपरांत करना चाहिए जिससे वातावरण में डस्ट व धूल के कण न उड़े, जो दमाँ आदि के लोगो के लिए अधिक घातक होगा |
  • स्कूल व कॉलेज जंहा छात्र-छात्राये पढ़ती है, अवकाश घोषित कर देना चाहिए तथा बुजुर्गो को बाहर न निकलने की हिदायक देकर, उन्हें साँस व दमा आदि के रोंगों से बचाया जा सके | आश्यकतानुसार मास्क का भी उपयोग करना चाहिए |
  • यदि ऐसी स्थिति सप्ताह भर चलने की सम्भावना हो तो कृतिम बारिश कराया जाय अथवा सभी नागरिको को विशेष हिदायत दी जाय की वह अपने घरों के आस-पास पानी का अधिक से अधिक छिडकाव करें | इससे धुआंयुक्त बादल छट जाएंगे |
  • जहरीली हवा में धुन्ध की स्थिति आने पर, अधिक से अधिक लोगो को वाहनों को कम से कम सड़क पर चलाना चाहिए| अथवा आड –इवन का फार्मूला लागू कर देना चाहिए|
  • धुन्ध का बादल, हवा के चलने व गर्म स्थान की तरफ टनल के रूप में आगे बढने से धीरे–धीरे कम होगा|
  • जब वह घर से बाहर निकले तो नाक पर मास्क अवश्य लगा ले |

उपरोक्त उपाय यद्यपि, पिछले वर्ष कई अखबारो व दूरदर्शन के माध्यम से सर्कार वा जनता मे पहुचाया गया परंतु इस वर्ष भी कोई सकरात्मक उपाय नही किये गये। बल्कि आईआईटी, कानपुर से सलाह ली जा रही है कि क्या किया जाय । यह जानकर सामाज के सभी लोगो हैरानी होगी कि भारत वर्ष मे विश्व मे सबसे अधिक मृत्यु दर हो गयी है और चीन दूसरे स्थान पर आ गया है । न केवल भारत मे प्रतिवर्ष 50-लाख लोग प्रदूसित वातावरण के कारण उत्पन्न रोगो से होरहे है और आने वाले समय मे यह संख्या और बढ सकती है । अतः आप अपने आस- पड़ोस के घरवालो के सदस्यों को सतर्क करे कि ऊपर दिये गये दिशा-निर्देशों का अवश्य पालन करे तथा ऐसे मौसम मे अपने घरो के आसपास, उपरी छत से जमीनी तल तक पानी का छिडकाव प्रत्येक दिन करे, जिसके हवा में मौजूद जहरीले कणों को जमीन पर पंहुचाकर, आप के परिवार को नुकसान से बचाया जा सके |

 

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