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शिक्षा समिति ने की सिफारिश, खत्म हों अल्पसंख्यक स्कूलों को मिलने वाले लाभ

जल्द ही धार्मिक अल्पसंख्यक स्कूल जैसे मदरसे और मिशनरी स्कूल को भी शिक्षा का अधिकार कानून लागू करना पड़ सकता है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के तहत राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने अल्पसंख्यक स्कूलों को भी इस दायरे में लाने की सिफारिश की है। साथ ही परिषद ने यह भी सिफारिश की है कि स्कूलों में स्कूल प्रबंधन समिति का गठन होना चाहिए, जिसके तीन चौथाई सदस्य पेरेंट्स हों।

शिक्षा समिति ने की सिफारिश, खत्म हों अल्पसंख्यक स्कूलों को मिलने वाले लाभ

अल्पसंख्यक संस्थानों को मिल रहे लाभों में हो संशोधन

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के तहत राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का गठन पिछले साल किया गया था, और इसकी बैठक इस साल की शुरुआत में आयोजित की गई। लेकिन परिषद की सिफारिशों की सूची को हाल ही में मानव संसाधन विकास मंत्रालय में सौंपा गया है। परिषद की बैठक में 28 सदस्यों ने हिस्सा लिया, जिसमें राष्ट्रीय बाल अधिकार सरंक्षण आयोग के शिक्षा विशेषज्ञ सदस्य के साथ कुछ स्कूलों के प्रधानाचार्यों, केंद्र-राज्यों और सामाजिक संस्थाओं से जुड़े लोग शामिल हुए। बैठक में शामिल लोगों की एक राय थी कि शिक्षा का अधिकार एक्ट के सेक्शन-15(5) के तहत अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को मिलने वाले लाभों में संशोधन किया जाए।

मिशनरी स्कूल बने ‘हाई क्लास’

बैठक में हिस्सा लेने आए भारतीय शिक्षा मंडल के सचिव मुकुलजी कानिटकर के मुताबिक अल्पसंख्यक समुदाय के शिक्षण संस्थान शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के दायरे से बाहर है, जिसके चलते अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों को इस कानून का लाभ नहीं मिल पा रहा है। यह विडंबना है कि मिशनरी स्कूलों में सामान्य स्कूलों जैसा ही पाठ्यक्रम है, बावजूद इसके कि वे ‘हाई क्लास’ स्कूल बन गए हैं। वहीं मदरसा समाज के निचले और वंचित तबके को ही धार्मिक शिक्षा दे रहे हैं। दोनों ही संस्थान शिक्षा का अधिकार कानून के कुछ प्रावधानों के तहत जमकर छूट हासिल कर रहे हैं।

मिशनरी स्कूलों में हो 25 फीसदी आरक्षण

विद्या भारती के श्रीराम अरावकर के मुताबिक शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत प्राइवेट स्कूलों में 25 फीसदी आरक्षण कमजोर और निचले तबके के सुविधाहीन छात्रों को मिलना आवश्यक है। कानून में बदलाव करके मिशनरी स्कूलों में गरीब और कमजोर तबकों के छात्रों के लिए 25 फीसदी आरक्षण लागू करना चाहिए। वहीं मदरसे अपने यहां यूनिवर्सल पाठ्यक्रमों को बढ़ावा दें, ताकि वहां पढ़ने वाले छात्र शिक्षा के मौलिक अधिकार से वंचित न हों।

मदरसों में एजुकेशन क्वॉलिटी खराब

आयोग के सूत्रों ने बताया कि राष्ट्रीय बाल अधिकार सरंक्षण आयोग की टीम ने देश के 18 शहरों के मदरसा और मिशनरी स्कूलों में दी जा रही शिक्षा की समीक्षा की थी। इनमें से ज्यादातर संस्थान उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और झारखंड से थे। आयोग ने अपनी समीक्षा में पाया कि मदरसों में दी जा रही शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर बेहद खराब है। आयोग ने यह भी पाया कि 6-14 साल के बच्चों को शिक्षा का अधिकार देने वाले संविधान के अनुच्छेद 21 (ए) और अल्पसंख्यक शिक्षा से संबंधित अनुच्छेद 30 में सामंजस्य बनाने की जरूरत है।

बने स्कूल प्रबंधन समिति  

वहीं आयोग ने अपनी अनुशंसा में यह भी कहा कि अनुच्छेद 21 (ए) के तहत अल्पसंख्यक स्कूलों में पीटीए को अनिवार्य बनाना चाहिए। साथ ही एक स्कूल प्रबंधन समिति का गठऩ होना चाहिए, जिसमें कम से कम तीन चौथाई माता-पिता या संरक्षक हों, साथ ही प्रोफेशनल्स को भी इसमें शामिल किया जाए। यह समिति स्कूल के कार्यों की निगरानी के अलावा स्कूल के विकास योजना तैयार करना और अथॉरिटी से मिलने वाले अनुदानों के इस्तेमाल पर निगाह रखे।

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