अद्धयात्म

आज है शनिदेव जयंती

ज्योतिष डेस्क : भगवान सूर्य और छाया के पुत्र, यमराज के बड़े भाई शनिदेव को ज्योतिष के अनुसार ग्रहों में न्यायाधीश का पद प्राप्त है। शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन हुआ था। शनि महाराज को भगवान शिव ने नवग्रहों में न्यायाधीश का काम सौंपा है। यही कारण है कि पूरी दुनिया शनिदेव से डरती है। कहा जाता है कि शनिदेव की दृष्टि यदि किसी पर पड़ जाए, तो वह कहीं का भी नहीं रहता। शनिदेव की पत्नी के श्राप के कारण जिस पर शनि की दृष्टि (ढैय्या, साढ़ेसाती) पड़ जाती है, वह नष्ट हो जाता है। शनि की कुदृष्टि के कारण ही भगवान राम को बनवास एवं रावण का संहार हुआ तथा पांडवों को वनवास हुआ। त्रेता युग में राजा हरीशचंद्र को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं।
ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को शनि जन्म होने के कारण इस तिथि को शनि जयंती मनाई जाती है। आज यानि 15 मई, 2018 को शनि जयंती है। इस दिन शनि के निमित्त जो भी दान, पूजा एवं उपाय किए जाते हैं, उनसे शनिदेव शीघ्र प्रसन्न होते हैं। महाराष्ट्र में अहमदनगर जिले में शनि धाम शिंगणापुर में 15×15 के चबूतरे पर शिला रूप में साक्षात शनिदेव स्वयं विराजमान हैं, जहां प्रतिदिन 25-40 हजार भक्त दर्शनों के लिए आते हैं। शनि अमावस्या एवं शनि जयंती के दिन भक्तों की संख्या 3 लाख से भी ऊपर पहुंच जाती है। इस दिन यहां दर्शन-मात्र से शनि देव प्रसन्न हो जाते हैं। किसी पवित्र नदी, तीर्थ स्थान या महाराष्ट्र के शिंगणापुर के शनि मंदिर में स्नान करें और गणेश पूजन, विष्णु पूजन, पीपल का पूजन इस प्रकार करें-पीपल पर जल चढ़ाएं, पंचामृत चढ़ाकर गंगाजल से स्नान करवाएं, रोली लपेट कर जनेऊ अर्पण करके पुष्प चढ़ाएं और नैवेद्य का भोग लगाकर नमस्कार करें। इसके बाद पीपल की सात परिक्रमा शनि मंत्र का जाप करते हुए करें और पीपल पर सात बार कच्चा सूत बांधें।
शनि जयंती पर मंत्रों के जाप से यश, सुख, समृद्धि, कीर्ति, पराक्रम, वैभव, सफलता और अपार धन-धान्य के साथ प्रगति के द्वार खुलते हैं। किसी एक मंत्र का चयन करें और अवश्य जपें।
– बीज मंत्र- ॐ शं शनैश्चराय नम:
– तंत्रोक्त मंत्र- ॐ प्रां. प्रीं. प्रौ. स: शनैश्चराय नम:
– श्री शनि व्यासवि‍रचित मंत्र
ॐ नीलांजन समाभासम्। रविपुत्रम यमाग्रजम्।
छाया मार्तण्डसंभूतम। तम् नमामि शनैश्चरम्।।
शनिचर पुराणोक्त मंत्र
सूर्यपुत्रो दीर्घेदेही विशालाक्ष: शिवप्रिय: द
मंदचार प्रसन्नात्मा पीडां हरतु मे शनि:
शनि का वेदोक्त मंत्र
शमाग्निभि: करच्छन्न: स्तपंत सूर्य शंवातोवा त्वरपा अपास्निधा:
शनि स्तोत्र
नमस्ते कोणसंस्‍थाचं पिंगलाय नमो एक स्तुते
नमस्ते बभ्रूरूपाय कृष्णाय च नमो ए स्तुत
नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चांतकाय च
नमस्ते यमसंज्ञाय नमस्ते सौरये विभो
नमस्ते मंदसज्ञाय शनैश्चर नमो ए स्तुते
प्रसाद कुरू देवेश दिनस्य प्रणतस्य च
कोषस्थह्म पिंगलो बभ्रूकृष्णौ रौदोए न्तको यम:
सौरी शनैश्चरो मंद: पिप्लदेन संस्तुत:
एतानि दश नामामी प्रातरुत्थाय ए पठेत्
शनैश्चरकृता पीड़ा न कदचित् भविष्यति

Related Articles

Back to top button