दस्तक-विशेषस्तम्भ

विकास दुबे का मारा जाना जरूरी था!

डॉ.धीरज फुलमती सिंह

 मुबंई: विकास दुबे को गिरफ्तार करके सड़क के रास्ते कानपुर लाया जा रहा था, रास्ते में उसकी गाड़़ी पलट गई, जिसमें दो पुलिस कर्मी घायल हो गए। विकास दुबे उन पुलिसकर्मियों की पिस्टल छीन कर भागने लगा, पुलिस ने उसे सरेंडर करने के लिए कहा, उसने भागते हुए पुलिस पर गोली चला दी। पुलिस ने भी अपनी आत्मरक्षा में गोली चलाई। विकास दुबे को इस दौरान गोली लगी, उसे तुरंत अस्पताल लाया गया, अस्पताल लाने के बाद डॉक्टरो ने उसे मृत घोषित कर दिया।

मुझे पता है कि आप को विकास दुबे का एनकाउन्टर फर्जी लग रहा है। पुलिस द्वारा बनाई एक कहानी लग रही है, मुझे भी ऐसा ही कुछ लग रहा है, ऐसा भी नही है कि ऐसी किसी कहानी का पूर्वानुमान किसी ने न लगाया हो ? भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन में विकास दुबे के पकड़े जाने के बाद उसके अंजाम की सबको पहले से ही कल्पना थी लेकिन पता नहीं क्यों इस कहानी मे आम जनमानस को मजा आ रहा है।

उत्तर प्रदेश को माफिया राज से मुक्त करना है तो इस तरह की और भी कई कहानियों के बनने और बनाने की आवश्यकता है। विकास दुबे जैसों का मारा जाना जरूरी है। हो सकता है कि मेरी बातें मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को नागवार गुजर रही हो लेकिन मैं मानता हूँ कि उत्तर प्रदेश को ऐसी और भी कई कहानियों की जरूरत है।

उत्तर प्रदेश को अगर उत्तम प्रदेश बनना है तो चाहे जैसे भी हो, माफिया राज का खात्मा होना बहुत जरूरी है। प्रशासन को साम, दाम, दंड, भेद हर नियम का प्रयोग करना चाहिए। उत्तर प्रदेश मे आज माफियागीरी पूजनीय हो गई है। यहाॅ के समाज में माफिया होना गर्व और रौब की बात है। यहां हर ऐरा, गैरा, छुट भईया भी रौब झाड़ने के लिए हथियार लहराता मिल जाएगा। बंदूक या तलवार तो ऐसे लेते हैं, जैसे कोई गुलेल हो।

एक वक्त था कि उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल इलाके में लगभग हर गांव में तमंचा और कट्टा बनाने की छोटी मोटी फैक्ट्री हुआ करती थी। मुंबई, गुजरात और स्वयं उत्तर प्रदेश के माफिया के लिए सबसे सस्ते शार्प शूटर इसी इलाके से उपलब्ध होते थे। जब गैर कानूनी और असंवैधानिक कार्य पूजनीय हो जाए तो ऐसे मे उसका खात्मा न्यायिक प्रक्रिया के तहत होना तो नामुमकिन है। कई बार कानून की रक्षा करने के लिए भी गौर क़ानूनी तरीके अपनाना भी लाजमी है, बहुत जरूरी है। यह मेरा व्यक्तिगत मत है।

हो सकता है कि कुछ लोगों को यह लग रहा है कि कुछ सफेदपोश खादी और कुछ नकाबपोश खाकी को बचाने के लिए विकास दुबे का फर्जी एनकाउन्टर किया गया है, मुझे इस बात से इनकार नहीं है कि ठोस सबूत के अभाव में उनकी शंका जायज़ भी हो सकती है ? लेकिन मुझे लगता है कि विकास दुबे का मारा जाना जरूरी था। इस एनकाउन्टर से उत्तर प्रदेश की जेलों में बंद और जेल से बाहर घूम रहे दुर्दांत अपराधियों में एक संदेश जाएगा, कि सुधर जाओ वरना मारे जाओगे। माफिया में डर फैलना जरूरी है।

विकास दुबे को गिरफ्तार करके न्यायिक प्रक्रिया के तहत उसकी सजा के लिए कोशिश जारी रखी जाती तो विकास दुबे के साथ-साथ दूसरे अपराधियों का भी साहस बढता। क़ानून से खेलने वाले चालाक वकीलों की चालबाजियों से कौन नही वाकिफ हैं? आज सबको पता है कि भारतीय जेल व्यवस्था कैसी है? खास कर उत्तर प्रदेश और बिहार की जेलें तो अपराधियों के लिए उनके ऑफिस की तरह काम करती है। जेलों में बंद अपराधी अपने अपराध जगत का संचालन पुलिस की मिली भगत से बेखौफ़ होकर जेल के अंदर से ही करते हैं। जिस पर अब लगाम लगाने की पूरी कोशिश होनी चाहिए।

किसी भी देश, राज्य या शहर को विकास के रास्ते पर चलने के लिए उसका अपराध मुक्त होना जरूरी है। संविधान के प्रति अपराधियों मे खौफ होना जरूरी है। संविधान के प्रति डर ही तो है, जो किसी को संविधान के पालन के लिए मजबूर करताा है, यही डर धीरे-धीरे संविधान के प्रति आदर में तब्दील हो जाता है। यह डर होना बहुत जरूरी है। क़ानून के प्रति बेखौफ़ अपराधी और समाज विकास के लिए सबसे बड़ी बाधा होता है, सब से बड़ा रोड़ा होती है।

उत्तर प्रदेश और बिहार के विकास की दौड़ मे पिछड़ने का मुख्य कारण यहा का फलता फूलता माफिया राज ही है। दूसरा मुख्य कारण यहा कि अवाम है, जो माफियायों की पूजा करती है, उनको अपना हीरो मानती है, उनके गैर कानूनी कामों को बड़े चटखारे लेकर सुनती-सुनाती है और उन पर गर्व करती है। यहाॅ की जनता ऐसा करके एक तरह से माफियाओं का उत्साह वर्धन करती है, ऐसे में अपराधियों को भी अपराध करने मे ग्लानि महसूस नही होती है, उनको भी अंदरखाने लगता है कि वे समाज के हीरों है और आज हीरो बनना कौन नही चाहता?

प्रसिद्धी के लिए तो दुनिया मरी जा रही है तो इसके लिए गलत राह ही सही,प्रसिद्ध और आदर्श तो हो ही रहे हैं। समाज में धन, बल, डर के साथ सम्मान भी मिल रहा है, ऐसे मे एक अपराधी को और क्या चाहिए? उत्तर प्रदेश में माफियागिरी में एक तरह का आकर्षण पैदा हो गया है। यहाॅ की राजनीति जुर्म को सींच कर अपराधियों को विशाल पेड़ बना देती है, फिर उस पेड़ को महिमामंडित करती हैं, जिस वजह से इस पर पर चढ़ कर इसका फल हर कोई खाना चाहता है।

यही कारण है कि आने वाली पीढ़ी भी निडर हो, इसी रास्ते पर मुड जाती है। अपराधियों का एनकाउन्टर युवकों को इस ओर मुड़ने पर लगाम लगाएगी। बेमौत मारे जाने का खौफ होता ही कुछ ऐसा है। केरल, आंध्र प्रदेश, कुछ हद तक गुजरात, पंजाब, महाराष्ट्र खास कर मुंबई के विकास में माफियाओं के एनकाउन्टरों ने बहुत बडी भूमिका निभाई है। यही कारण है कि आज यह क्षेत्र विकास के रास्ते पर चल पडे हैं, यहां केे समाज में फिलहाल शांति है।

अपराध में कैसा आदर्शवाद और अपराधी कैसा आदर्शवादी? कैसा और किसका मानवाधिकार? मेरे विचार से अपराधियों के लिए कोई मानवाधिकार नही होना चाहिए। मुझे पता है कि मानवाधिकार के झंडा बरदारो को मेरी बात बुरी लगेगी लेकिन मै मानता हूँ कि हमेशा तो नही लेकिन कई बार रास्ते से कुछ हट के चलने से ही सुरक्षित रहा जा सकता है, कई बार यह जरूरी भी हो जाता है।

अपराध और अपराधियों का समाज में जब तक महिमा मंडन होता रहेगा, अपराध को रोकना उतना ही मुश्किल होता जाएगा। माफिया आज उत्तर प्रदेश के सीने पर बना घाव है, यही मानसिकता रही तो कल यह नासूर बन जाएगा, तब यह लाइलाज हो जाएगा। इस घाव को नासूर बनने से रोकना है तो विकास दुबे जैसों का एनकाउन्टर होना बहुत जरूरी है। माफिया में संविधान का डर होना बहुत जरूरी है।

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