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नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली चौतरफा घिरे, हेल्थ इमरजेंसी लगाना चाहते थे, राष्ट्रपति ने मना किया

काठमांडू : प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के पद न छोड़ने की जिद के बाद अब नेपाल में राजनीतिक संकट गहराता जा रहा है। नेपाल की घरेलू राजनीति में पहले ही चीनी हस्तक्षेप की खबरों के बाद से भूचाल आया है। इस बीच पीएम ओली नेपाल में अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को नजरअंदाज कर हेल्थ इमरजेंसी लागू कर शासन करना चाहते हैं। ओली का कहना है कि ऐसा वे कोरोनावायरस को रोकने के लिए कर रहे हैं। हालांकि, फिलहाल चौतरफा घिर चुके पीएम का यह बयान सिर्फ अपने बचाव का तरीका लग रहा है।

ओली ने गुरुवार को हेल्थ इमरजेंसी लागू करने पर चर्चा के लिए नेपाली राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी से मुलाकात की। सूत्रों के मुताबिक, राष्ट्रपति भंडारी ने हेल्थ इमरजेंसी लगाने की बात को फिलहाल नहीं माना है। उन्होंने पीएम को अपने राजनीतिक मतभेद नेताओं से बातचीत कर सुलझाने के लिए कहा है। नेपाल की ताकतवर सेना भी हेल्थ इमरजेंसी के लिए सैनिकों को तैनात करने के पक्ष में नहीं है।

नेपाल के प्रधानमंत्री आज फिर नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के सह-अध्यक्ष पुष्प कम दहल प्रचंड से मुलाकात करेंगे। प्रचंड लगातार खराब विदेश नीतियों के लिए पीएम ओली पर निशाना साधते रहे हैं और उनसे इस्तीफे की मांग भी कर चुके हैं। लेकिन ओली इस्तीफा न देने पर अड़े हैं।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, ओली अपना पद बचाने के लिए पार्टी को तोड़ने की हद तक भी जा सकते हैं। शुक्रवार को पार्टी की स्टैंडिंग कमेटी की बैठक भी होनी है। लेकिन इस बैठक में किसी प्रस्ताव को पास करने के लिए दोनों अध्यक्षों (प्रचंड और ओली) के हस्ताक्षर की जरूरत होगी।

गौरतलब है कि ओली चीन समर्थित नेता माने जाते हैं। उन्होंने बीते कुछ समय में भारत के खिलाफ भी भड़काऊ भाषण दिए हैं और भारतीय क्षेत्रों को अपना बताते हुए एक नक्शा जोर-शोर से संसद में पास कराया। ऐसे में चीन ने भी ओली को बचाने और उन्हें भारत के खिलाफ अपनी मुहिम का हिस्सा बनाने की कोशिशें तेज कर दी हैं।

चीन ने नेपाल स्थित अपनी राजदूत को इस काम के लिए लगाया है। बताया गया है कि चीनी राजदूत ने ओली को बचाने के लिए नेपाल के कई बड़े नेताओं से मुलाकात की। इनमें राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी के साथ बैठक भी शामिल रही।

हालांकि, चीनी राजदूत के इस तरह नेपाल की राजनीति में दखल देने की खबरों के बाद लोगों ने रोष जाहिर किया है। गौरतलब है कि नेपाली मीडिया की रिपोर्ट्स में कहा गया है कि चीनी राजदूत होउ की राष्ट्रपति भंडारी से मुलाकात को नेपाली विदेश मंत्रालय से मंजूरी नहीं मिली थी।

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