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मदिरालय पर टिका सरकारी राजस्व का गणित?

उ.प्र. सरकार को पहले दिन ही 100 करोड रूपये राजस्व मिलने का अनुमान

अशोक पाण्डेय

1935 में हरिवंश राय बच्चन ने ‘मधुशाला’ में लिखा था

“दुनियावालों, किन्तु, किसी दिन आ मदिरालय में देखो,
दिन को होली, रात दिवाली, रोज़ मनाती मधुशाला।

इलाहाबाद: 1984 में प्रकाश मेहरा द्वारा निर्देशित फिल्म ‘शराबी’ रिलीज हुई थी। जिसका गीत ‘नशा शराब में होता तो नाचती बोतल’ बहुत हिट हुआ था। किन्तु वर्तमान परिदृश्य को देखकर लग रहा है कि बोतल तो नहीं नाचती लेकिन शराबी और सरकार जरूर नाचती हैं। “वर्तमान स्थिति को देखकर ऐसा लग रहा है कि ज्यादातर लोग शराबी हैं। जहां आज देश में ज्यादातर इलाकों में खुली शराब दुकानों के बाहर सैकड़ों लोग लाइन में लगे नजर आये। आलम यह रहा कि सुबह 9 बजे से लोग शराब की दुकानों के बाहर पहुंच गए थे।

आज 4 मई 2020 को शराब की दुकान खुलने से पहले ही दुकानों के बाहर लंबी-लंबी कतारें देखने को मिलीं। आबकारी विभाग को अनुमान है कि सरकार को सोमवार को पहले दिन प्रदेश की 26 हजार दुकानों से करीब 100 करोड़ रुपए का राजस्व मिलेगा।


सवाल उठ रहे हैं कि “क्या शराब की बिक्री इतनी ज़रूरी है? आख़िर सोशल डिस्टेन्सिंग का क्या होगा? लोग जहाँ ज़रूरी सामान की चिंता कर रहे हैं, वहीं सरकार शराब की बिक्री पर छूट क्यों देने को मजबूर हैं ? दुनिया कोरोनावायरस से जूझ रही है जहां लोग रोटी के लिए मर रहे हैं। तो वही शराब जैसी वस्तुओं को विक्री में छूट देने पर समाज में और समस्या होंगी, भारतीय समाज में शराब या नशाखोरी को व्यसन के रूप में ही देखा जाता हैं,आवश्यकता नहीं।

भारत में शराब पीने वालो में से 80-90 फीसदी लोग समाज से छुपकर या अपने घरों के बाहर पीते हैं। अब सवाल यह खड़ा होता हैं कि यह लोग शराब पीने के बाद सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करेंगे? या कोरोना वाहक ज्यादा बनेंगे।

वहीं दूसरी ओर लॉकडाउन में घरेलू हिंसा में शराब इजाफा कर सकती हैं। जहॉ कोरोना महामारी से आज पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था कमजोर हो चुकी है। जिसका सीधा असर व्यक्ति की आमदनी पर पड़ा हैं,रोजगार खत्म हो रहे हैं, लोग भूखे से मरने कि स्थिति में पहुँच सकते हैं। ऐसी स्थिति में यदि व्यक्ति के पास बचा हुआ धन भी शराब में चला जाएगा तो कल्पना कीजिए नशाखोरी वाले कमजोर आर्थिक परिवारों का भविष्य क्या होग?

समाज के एक बडे वर्ग का यह मानना है कि शराब बंदी पर हटा प्रतिबंध पिछले 40 दिनों के लॉकडाउन की मेहनत पर पानी फेर सकता है। उदाहरण के तौर पर पुलिस के एक अधिकारी का ट्वीट सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमें उन्होंने अपने दूसरे ट्वीट से अपनी ही बात का खण्डन कर गलती से पोस्ट हुए पहले ट्वीट के लिए क्षमा मांग ली। यहां प्रश्न यह उठता है कि सरकारी दबाव के कारण अधिकारी वर्ग तो अपनी राय बदल सकते है लेकिन समाज के बडे वर्ग का यही मानना है कि शराब बिक्री पर हटा प्रतिबंध कोरोना वायरस और सोशल डिस्टेसिंग के अभी तक के प्रयासों पर पानी फेर सकता है।

सरकारी राजस्व है मजबूरी

भारत में लॉकडाउन का तीसरा चरण शुरू हो चुका है।भारत सरकार ने आवश्यक वस्तुओं और जरूरी सेवाओं में छूट के साथ ही लग्जरी समझी जाने वाली शराब की बिक्री पर भी रोक समाप्त कर दी है। जिसका इंतजार न सिर्फ शराब पीने और बेचने वालों का था बल्कि राज्य सरकारें भी इससे राजस्व पाने के कारण समर्थन में तैयार खडी थी। राज्य सरकार शराब कि होम डिलीवरी तक करवाने का समर्थन कर रही हैं।

अब प्रश्न यह उठता है कि इतनी बेचैनी क्यों तो इसका सीधा उत्तर है शराब कि ब्रिकी से प्राप्त होने वाला राजस्व । लॉकडाउन के कारण सैकड़ो करोड़ रुपये प्रतिदिन राजस्व का नुकसान। क्योंकि राज्यों के राजस्व का बड़ा हिस्सा शराब और पेट्रोल-डीजल की बिक्री से आता है। लॉकडाउन की वजह से शराब कि पूर्ण और पेट्रोल-डीजल कि आंशिक बिक्री राजस्‍व पर ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ा हैं, इस​ वजह से राज्यों की वित्तीय हालत खराब हैं। हालात यहॉ तक पहुँच गये कि कई राज्यों को अपने आवश्यक खर्च के लिए 1.5 से 2 फीसदी ज्यादा ब्याज पर कर्ज लेना पड़ा।


कई राज्यों की 15-30 फ़ीसदी आय शराब बिक्री पर निर्भर है। अकेले उ.प्र.में ही राजस्‍व का बीस प्रतिशत शराब के टैक्स से मिलता है। उत्तराखंड में भी शराब से मिलने वाली एक्साइज टैक्स कुल राजस्व का 20 फ़ीसदी है। शराब की बिक्री से वित्त वर्ष 2019-20 में महाराष्ट्र ने 24,000 करोड़ रुपये, उत्तर प्रदेश ने 26,000 करोड़, तेलंगाना ने 21,500 करोड़, कर्नाटक ने 20,948 करोड़, पश्चिम बंगाल ने 11,874 करोड़ रुपये, राजस्थान ने 7,800 करोड़ रुपये और पंजाब ने 5,600 करोड़ रुपये का राजस्व हासिल किया था. दिल्ली ने इस दौरान करीब 5,500 करोड़ रुपये का आबकारी शुल्क हासिल किया। राज्यो के कुल राजस्व का यह करीब 14 फीसदी है।यह तो सिर्फ कुछ बड़े राज्य का ब्योरा हैं, जहां पर शराब से भारी कमाई होती है।

बिहार और गुजरात में शराब बिक्री पर प्रतिबंध लगा हुआ है। यही कारण हैं कि शराब और पेट्रोल को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया हैं। ऐसे में राज्य अपने हिसाब से इसकी कीमत तय कर सकते हैं। दरअसल, ये शराब ही है जो तमाम बुराइयों के बावजूद अर्थव्यवस्था को संभालने में सबसे अहम किरदार निभाती है।

मंदी के दौरान भी शराब की बिक्री कम नहीं होती, क्योंकि लोग भरपेट भोजन भले ना पाएं, लेकिन शराब जरूर पीते हैं। मदिरा बनाने वाले को विश्वास है कि यह मदिरा विसंगतियों को दूर करते हुए पीने वाले के जीवन को नए उल्लास, नई स्फूर्ति और नई उमंगों से भर देगी। पर क्या ऐसा है ?

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