राजनीति

बहुत पहले शुरू हो गई थी ‘चिराग’ बुझने की कहानी

पटना: लोजपा के संस्थापक नेता रामविलास पासवान की मौत के बाद उनकी पार्टी और परिवार दोनों बिखरने लगे। उत्तराधिकारी चिराग पासवान न तो परिवार को एकजुट रख सके और न ही पार्टी बचा पाए। गत 8 अक्तूबर, 2020 को पिता की मौत के बाद से ही उनकी कार्यशैली को लेकर पार्टी में धीरे-धीरे नाराजगी बढ़ने लगी। एनडीए में रहकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विरोध करने के फैसले ने तो पार्टी नेताओं को और दुखी किया।

लोजपा में टूट का फूलप्रूफ प्लान पिछले साल ही बन चुका था। दो दिसम्बर, 2020 को पुशपति कुमार पारस के नेतृत्व में हुई सांसदों की बैठक ने यह तय कर लिया था। घटना को अंजाम देने की तारीख भी उसी समय तय हो चुकी थी। लेकिन, कोरोना और कुछ सांसदों की बीमारी के कारण मामला कुछ दिल टलता रहा।

लोजपा सांसद पशुपति कुमार पारस के दिल्ली आवास पर दो दिसम्बर को हुई बैठक में तीन ही सांसद शामिल थे। पारस के अलावा चौधरी महबूब अली कैसर और वीणा देवी बैठक में थी। प्रिंस राज उस समय तक चिराग पासवान के साथ ही थे। वह बैठक में भाग नहीं लिए, लेकिन समय के साथ उन्होंने भी अपनी अलग राह पकड़ ली और आज अपने चाचा पशुपति कुमार पारस के साथ मजबूती से खड़े हो गए।

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