मूर्खता भुनाने का कौशल
व्यंग्य लेख: वीना सिंह
भई! किसी को मूर्ख बनाना तो फिर भी आसान है पर मूर्खता भुनाना सरल काम नहीं है। लेकिन जिसको भी मूर्खता भुनाना आ गया समझ लो भइया वह छा गया। अभी तक का रिकार्ड तो यही बताता है कि छाए वही हैं, अपनी पहचान बनाये वही हैं जो मूर्खता भुनाने का हुनर सीख गये है। बुद्धिमानों की तो आजकल कद्र ही नहीं होती, मूर्ख ही हाईलाइट होते रहते हैं। तो शर्माजी ने सोचा कि अब मूर्खता सीखी जाए और भुनाई जाए।
हां जी! शर्माजी अपनी बुद्धिमानी से त्रस्त हैं। कह रहे हैं मैं पढ़ाई लिखाई में टापर रहा हूं पर आज तक पापड़ बेल रहा हूं। मूर्ख लोग अपनी मूर्खता भुना रहे है। सुख सुविधाओं भरा जीवन बिता रहे हैं और मैं अपना ज्ञान तक नहीं भुना रहा हूं। अपनी डिग्रियों भरी फाइल लिए यहां-वहां घूम रहा हूं। इससे तो अच्छा मैं मूर्ख ही होता। मैने कहा नहीं शर्माजी केवल मूर्ख होने से काम नहीं चलताए भुनाना आना भी जरूरी है। फिर समझ लो जीवन में उमंग और तरंग है। अब तो उन्होंने मूर्ख बनने तथा मूर्खता भुनाने की ठान ली। बोले बताओ ऐसे मूर्खों का पता ठिकाना, मैं उनकी शरण में जाकर यह हुनर सीख लूंगा। अपना बचाव करते हुए मैने कहा- वैसे मैं मूर्ख तो नहीं हूं पर कुछ मूर्खों के पते ठिकाने जानती जरूर हूं । अपने देश में मूर्ख तो वैसे तरह-तरह के हैं पर मैं कुछ खास मूर्खों के नाम गिनाती हूं जो हम सबके रोज मर्रा के कामों में आते है। हम इनसे चाह कर भी बच नहीं पाते हैं। मूर्ख बन ही जाते है। अब आप ज्योतिषी जी को ही ले लीजिए, इनके पास दूसरों के जीवन का भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों कालों का पूरा लेखा जोखा होता है। यह दूसरों का जीवन चक्र बताते बताते अपनी कई पीढ़ियों का जीवन चक्र सुधार लेते हैं। शरण में गये शरणार्थियों के जीवन की व्याधियों को दूर करने के लिए तंत्र-मंत्र टोना-टोटका में सिद्धि प्राप्त हितैषियों के पास भेज देते है (जैसे डॉक्टर अपने मरीज को चेकअप के बाद टेस्टिंग के लिए दूसरे के पास रेफर कर देता हैं) फिर दोनों मिल बांट कर खाते हैं।
इसी तरह धार्मिक संत, कथावाचक, संन्यासी, स्वामीजी, गुरूजी आदि अपने मुंह से बोला एक-एक शब्द भुनाते हैं। यह तथाकथित धर्मात्मा लोगों की आत्मा में घुस कर खूब धन और यश कमाते हैं। अनायास ही भगवान का दर्जा पा जाते हैं। लोगों का आनन-फानन पैसा काले धन की तरह छुपाते हैं और भोग विलासिता भरा सुखमय जीवन बिताते हैं। यह सब बड़ी-बड़ी कोठियों के मालिक होते हैं और दिखावे में एक छोटी कुटी व सादा भोजन में ही सुख शांति बताते हैं। पढ़ते एक किताब तक नहीं और खुद को षास्त्रों का ज्ञाता जताते है। इसके अतिरिक्त गांव के नीम हकीम हैं (झोलाछाप डॉक्टर)। भई! इनके क्या कहने ? यह बड़े-बड़े सर्जनों पर भी भारी हैं। इनकी तो बात ही निराली है इनके थैले में हर मर्ज का इलाज है (यानि यह डॉक्टर बाबू छोटी बड़ी हर मर्ज के एक्सपर्ट हैं।) समझ लो इनका थैला जिन्न का चिराग है जब इससे इलाज निकलता है, मरीज को समाप्त और डॉक्टर जी को मालामाल कर देता है।
इसके अलावा यदि आपको सबसे बड़ी मूर्खता भुनानी हो तो नेताजी बनने की ठान लीजिए, मतलब देश की बागड़ोर की जिम्मेदारी ले लीजिए। बड़ा काम है पर मूर्खता से आसान है। ज्ञान, ध्यान से परे इसमें कूटनीति ही महान है। दिमाग़ के घोड़े चाहें बांध लो बस जुबान को सरपट दौड़ाना है। सबको सुमधुर बातों से लुभाना है। सारी मूर्खताओं में यह बेजोड़ है। चाहुदिषाओं में इसका षोर है। इससे अलग विज्ञापन व्यापार, हाट-बाजार, ज्ञान-विज्ञान, आचार-विचार आदि में भी अनेकों मूर्खता भुनाने के उपाय हैं।
लो जी! मैने सारी मूर्खता की लिस्ट खोल दी, अब आप मनचाही मूर्खता भुनाने का मन बना सकते हैं। इन सबमें तरक्की की पूरी गारंटी है, बस आपको अपने ईमान की गारंटी खोनी है। वे चौक कर बोले, ना बाबा ना और कुछ खोने को कह दो मंजूर है पर ईमान नहीं खो सकेंगे। मैं मुस्कराई शर्माजी ईमान के अलावा और है क्या आपके पास ? जो खोने को कह दूँ। मेरे दिये विवरण से शर्माजी मूर्खता की जटिलता को समझ गये। वे बोले- मूर्खता भुनाने का कौषल मुझमें नहीं। मैं यूँ ही सही।