उत्तराखंडराज्य

यहां रात में भी करते हैं दाह संस्‍कार, भगवान शिव से जुड़ा है कारण

सिर्फ वारााणसी ही नहीं उत्‍तराखंड में भी सिर्फ इस स्‍थान पर रात के वक्‍त दाह संस्‍कार की प्रथा है। कहते हैं कि इस घाट को स्‍वयं भगवान शिव ने बनाया था।

अल्मोड़ा, : वाराणसी में स्थित मणिकर्णिका घाट के बारे में कहा जाता है कि हिंदू रीति रिवाजों की मनाही के बावजूद यहां सूर्यास्त के बाद शवों का दाह संस्कार की मान्यता है। कुछ ऐसा ही अल्मोड़ा के घाट में भी है और वह भी हू-ब-हू मणिकर्णिका घाट की तर्ज पर। जानिए, इसके पीछे की खास वजह। यह घाट अल्मोड़ा-लमगड़ा मार्ग पर विश्वनाथ मंदिर पर है। मान्यता है कि भगवान शंकर यहां औघड़ रूप में विराजते है। यहा जिनका दाह संस्कार किया जाता है, उन्हें सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है, क्योकि यहां मरने वाले को महादेव तारक मंत्र दिया जाता है।

जानिए, इस घाट के अन्य रोचक तथ्य

मिलता है मोक्ष

बात यही खत्म नहीं होती। मान्यता यह भी है कि यहा से जिसे एक बार मोक्ष मिल जाता है उसे फिर कभी गर्भ में जीवन नही मिलता।

शिव ने स्वयं किया था इस घाट का निर्माण

आज तक यह सिद्ध तो नहीं हुआ कि इस घाट की स्थापना कब हुई, लेकिन माना जाता है कि मणिकर्णिका घाट की तरह अल्मोड़ा का यह घाट भी अनादि काल में स्थापित हुआ था। ब्राह्मांड की रचना के बाद शिव ने यहां रहने के लिए स्वयं इसका निर्माण किया था। मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ और मां पार्वती अन्नपूर्णा के रूप में भक्तों का कल्याण करते हैं।

चिता शांत करने को लिखते हैं 94 अंक

दूसरी ओर शिव औघड़ रूप में मृत्यु को प्राप्त लोगों को कान में तारक मंत्र देकर मुक्ति का मार्ग देते हैं। चिता की अग्नि ठंडी करने के लिए 94 लिखा जाता है। 94 मुक्ति मंत्र है जिसे शिव खुद ग्रहण करते हैं।

शव नहीं तो जलाना होता है कंबल

बागेश्वर में सरयू और गोमती नदी का संगम है। इसी तट पर स्थित है सरयू घाट। इस घाट के पास ही शिवजी का बागनाथ मंदिर है और मंदिर में स्थित है अखाड़ा। मान्यता है कि जिस दिन इस घाट पर शव नहीं आते तो कंबल जलाया जाता है।खास बात यह है कि शव को जलाने के लिए बागनाथ मंदिर के अखाड़े से अग्नि लानी होती है, जिसके एवज में दक्षिणा भी देनी होती है। अल्मोड़ा के विश्वनाथ घाट पर भी यही परंपरा है।

यहां कभी गिरी (बाबा) समुदाय के लोग अंतिम संस्कार करते थे। जिस दिन इस घाट पर शव नहीं आते, उस दिन यहां भी कंबल जलाने की परंपरा है।

नगर पालिकाध्यक्ष प्रकाश चंद्र जोशी का कहना है कि जिला योजना से घाट के लिए दो लाख रुपये स्वीकृत हुए है। मुख्यमंत्री को घाट के लिए प्रस्ताव बनाकर भेजा गया है, ताकि बरसात के मौसम में निर्बाध रूप से शवो का अंतिम संस्कार हो सके।

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