नई दिल्ली । इस वर्ष होने जा रहे लोकसभा चुनाव के बाद एक स्थिर सरकार के गठन का आ”ान करते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शनिवार को कहा कि ‘खिचड़ी सरकार’ विनाशकारी हो सकती है और ‘लोकवादी अराजकता’ शासन का विकल्प कतई नहीं हो सकता। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम दिए अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा ‘‘चुनाव किसी भी व्यक्ति को भ्रम पैदा करने का अधिकार पत्र नहीं देता। जो भी मतदाताओं का भरोसा जीतना चाहते हैं वे केवल वही वादे करें जो संभव हो। सरकार कोई परमार्थ संगठन नहीं होती है।’’ उन्होंने स्पष्ट किया ‘‘लोकवादी अराजकता शासन के लिए कतई उपयुक्त नहीं हो सकती। झूठे वादे से असंतोष पैदा होता है जिससे रोष पैदा होता है और रोष के निशाने पर एक ही होते हैं वे जो सत्ता में बैठे हैं।’’ राष्ट्रपति ने किसी व्यक्ति विशेष या पार्टी का नाम नहीं लिया लेकिन उनका इशारा राष्ट्रीय राजधानी में इसी सप्ताह उत्पन्न उस राजनीतिक तूफान की ओर था जिसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने खुलेआम घोषित किया ‘‘मैं एक अराजकतावादी हूं।’’ राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे लिए लोकतंत्र कोई उपहार नहीं है बल्कि हर एक नागरिक का मौलिक अधिकार है; जो सत्ताधारी हैं उनके लिए लोकतंत्र एक पवित्र भरोसा है। जो इस भरोसे को तोड़ते हैं वह राष्ट्र का अनादर करते हैं।
उन्होंने कहा कि हमारे संविधान के व्यापक प्रावधानों से भारत एक सुंदर जीवंत तथा कभी-कभार शोरगुल युक्त लोकतंत्र के रूप में विकसित हो चुका है। मुखर्जी ने कहा कि एक लोकतांत्रिक देश सदैव खुद से तर्क-वितर्क करता है। यह स्वागत योग्य है क्योंकि हम विचार-विमर्श और सहमति से समस्याएं हल करते हैं बल प्रयोग से नहीं। परंतु विचारों के ये स्वस्थ मतभेद हमारी शासन व्यवस्था के अंदर अस्वस्थ टकराव में नहीं बदलने चाहिए। राष्ट्रपति ने कहा ‘‘पैंसठवें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर मैं भारत और विदेशों में बसे आप सभी को हार्दिक बधाई देता हूं। मैं अपनी सशस्त्र सेनाओं अर्ध-सैनिक बलों तथा आंतरिक सुरक्षा बलों के सदस्यों को अपनी विशेष बधाई देता हूं।’’ मुखर्जी ने कहा कि शिक्षा भारतीय अनुभव का अविभाज्य हिस्सा रही है। तक्षशिला अथवा नालंदा जैसी प्राचीन उत्कृष्ट संस्थाओं से लेकर हाल की 17वीं और 18वीं सदी तक के शैक्षिक संस्थान इसके गवाह हैं। उन्होंने कहा कि हमें एक ऐसी शिक्षा क्रांति शुरू करनी होगी जो राष्ट्रीय पुनरुत्थान के प्रारंभ का केंद्र बन सके। राष्ट्रपति ने कहा ‘‘आज हमारे उच्च शिक्षा के ढांचे में 65० से अधिक विश्वविद्यालय तथा 33००० से अधिक कॉलेज हैं। अब हमारा ध्यान शिक्षा की गुणवत्ता पर होना चाहिए। हम शिक्षा में विश्व की अगुआई कर सकते हैं बस यदि हम संकल्प ले लें तथा नेतृत्व को पहचान लें। शिक्षा अब केवल कुलीन वर्ग का विशेषाधिकार नहीं है वरन सबका अधिकार है। यह देश की नियति का बीजारोपण है।’’ राष्ट्रपति ने कहा कि भ्रष्टाचार लोकतंत्र के लिए कैंसर की तरह है जो हमारे राज्य की जड़ों को खोखला करता है। उन्होंने कहा कि यदि भारत की जनता गुस्से में है तो इसका कारण है कि उन्हें भ्रष्टाचार तथा राष्ट्रीय संसाधनों की बर्बादी दिखाई दे रही है। यदि सरकारें इन खामियों को दूर नहीं करतीं तो मतदाता सरकारों को हटा देंगे।