उत्तर प्रदेश

संपूर्णानंद विश्वविद्यालय के नाम पर पूरे यूपी में बांटी गईं डिग्रियां

एजेन्सी/ fake-degree-of-acharya-in-uttar-pradesh_1460244948उत्तर प्रदेश में आचार्य, शास्त्री और मध्यमा की बड़े पैमाने पर फर्जी डिग्रियां बांटने की आशंका जताई गई है। ये डिग्रियां संपूर्णानंद यूनिवर्सिटी वाराणसी के नाम से जारी की गईं हैं। शासन की ओर से गठित एसआईटी की आरंभिक जांच में चार सौ भी ज्यादा डिग्रियां संदेह के घेरे में आ गईं हैं। यह सभी वर्ष 2002 से 2010 के बीच जारी की गई थीं।

उत्तर प्रदेश में फर्जी डिग्रियों का एक बड़ा नेटवर्क  सामने आया है। जो लोग कभी स्कूल या कालेज गए ही नहीं उन्होंने बड़ी-बड़ी डिग्रियां हासिल कर ली हैं। इतना ही नहीं, इन्हीं फेक डिग्रियों के सहारे बाकायदा सरकारी महकमों में नौकरी भी हासिल कर ली। इस प्रकार के मामले सामने आने के बाद शासन ने विशेष अनुसंधान दल (एसआईटी) को इसकी जांच सौंपी थी।

अभी तक जितनी भी डिग्रियां सामने आईं हैं वह संपूर्णानंद यूनिवर्सिटी वाराणसी के नाम से जारी की गईं हैं। इन डिग्रियों में सबसे ज्यादा मध्यमा की ही हैं। अधिकांश डिग्रियां ऐसी हैं जिनका इस यूनिवर्सिटी में कोई रिकार्ड ही नहीं मिल रहा है। इससे माना जा रहा है कि यह डिग्रियां बाहर से जारी हुईं हैं। इसके पीछे एक बड़ा रैकेट काम कर रहा है। मुरादाबाद मंडल, मेरठ, अलीगढ़, आगरा, कानपुर, लखनऊ, गोरखपुर, सहारनपुर, बरेली और झांसी तक जांच की जा रही है। 

विशेष अनुसंधान दल (एसआईटी) के एडीजी महेंद्र मोदी ने बताया कि अभी जांच प्रारंभिक स्टेज में पहुंची है। जो कुछ फर्जी डिग्रियां हासिल हुईं हैं उनका रिकार्ड यूनिवर्सिटी में कहीं नहीं मिला है। इससे माना जा रहा है कि बाहर से बनाई गईं हैं। कुछ डिग्रियों के सिग्नेचर को लेकर संदेह पैदा हो रहा है। लिहाजा हस्ताक्षर का मिलान कराया जा रहा है। एक्सपर्ट की टीम भी लगाई गई है। शासन ने यह जांच डेढ़ साल पहले एसआईटी को सौंपी थी, विभाग ने अब इसे टेकओवर करके साक्ष्य जुटाने शुरू कर दिए हैं।

मुरादाबाद में बर्खास्त हो चुके 10 शिक्षक
जनपद में फर्जी डिग्रियों के आधार पर 10 शिक्षकों ने इंटर कालेजों में और बेसिक स्कूलों में नौकरी हासिल कर ली थी। 2011 और 2012 में जब जांच हुई तो फर्जीवाड़ा सामने आया था। इन्होंने जो डिग्री विभाग में लगाई थी वह भी संपूर्णानंद यूनिवर्सिटी के नाम की थी। मगर जब पड़ताल कराई गई तो वहां इन डिग्रियों का कोई रिकार्ड नहीं मिला। लिहाजा माना गया कि यह सभी फर्जी डिग्रियां थीं।

 
 

 

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