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अखिलेश की नाराजगी के बाद रद्द हो सकता है सपा-कौमी एकता दल का विलय

shivpal-yadav_1466521436कौमी एकता दल के सपा में विलय के बाद से समाजवादी पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा। सीएम अखिलेश यादव इस फैसले खफा बताए जा रहे हैं।
खबरों के मुताबिक अखिलेश यादव ने बुधवार दिनभर के अपने कार्यक्रम को रद्द कर दिया है। दूसरी ओर समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और प्रदेश सरकार में मंत्री शिवपाल यादव का कहना है कि अफजाल अंसारी की पार्टी का सपा में विलय सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के कहने पर हुआ है।

इस बीच खबर आ रही है कि सपा में कौमी एकता दल के विलय को रद्द किया जा सकता है। इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की शिवपाल यादव के साथ मुलाकात चल रही है। संभावना है कि इस मुलाकात के बाद विलय पर आखिरी फैसला संभव है। शिवपाल यादव, अखिलेश यादव के सगे चाचा हैं।

विवाद की शुरुआत मंगलवार को हुई जब अफजाल अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का सपा में विलय हुआ था। उसके कुछ घंटे बाद ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अचानक एक बड़ा फैसला करते हुए माध्यमिक शिक्षा मंत्री बलराम यादव को बर्खास्त कर दिया।

तात्कालिक रूप से भले ही बलराम यादव की बर्खास्तगी का कारण माफिया मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का सपा में विलय कराने में उनकी भूमिका को माना जा रहा है। लेकिन ऐसे संकेत मिल रहे थे कि मुख्यमंत्री उनसे काफी दिनों से नाराज हैं। पिछले पखवारे से ही उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर किए जाने की अटकलें चल रही थीं।

दूसरी ओर इस विवाद से यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बेहद खफा बताए जा रहे हैं। खबरों के मुताबिक उन्होंने बुधवार के सभी कार्यक्रम रद्द कर दिए हैं। इस बीच अखिलेश यादव यूपी मंत्रीमंडल से छुट्टी के बाद बुधवार को बलराम यादव मीडिया के सामने आए तो उनकी आंखों में आंसू थे। उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी ही मेरी जिंदगी है। नेता जी मेरे अध्यक्ष ही नहीं बल्कि मेरे पिता हैं, संरक्षक हैं।

इस पूरे विवाद पर शिवपाल यादव ने बुधवार सुबह में सफाई दी थी, जिसमें उन्होंने कहा कि कौमी एकता दल, अफजाल अंसारी की पार्टी थी न कि मुख्तार अंसारी की। मुख्तार अंसारी जेल में हैं और उन्हें पार्टी में नहीं लिया गया है। बलराम यादव की सपा सरकार से छुट्टी पर शिवपाल ने कहा कि आखिर उनका इस्तीफा क्यों लिया गया इसकी जानकारी उन्हें नहीं है। उन्होंने इस मुद्दे पर कुछ भी कहने से इंकार कर दिया। उनका बस इतना ही कहना था कि ये मुख्यमंत्री के विशेषाधिकार है कि वह सरकार में किसे रखते हैं और किसे नहीं। दरअसल ऐसी खबरें आ रही हैं कि बलराम यादव की छुट्टी इसलिए मंत्रीमंडल से की गई क्योंकि उन्होंने मुख्तार अंसारी को पार्टी में लाने के लिए पैरवी की थी।

हालांकि, शिवपाल सिंह यादव ने इस पर जवाब देते हुए कहा कि बलराम यादव ने मुख्तार अंसारी को लेकर कोई पैरवी नहीं की। समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के कहने पर ही कौमी एकता दल का सपा में विलय हुआ है। पार्टी के अध्यक्ष ने ही ये फैसला लिया लेकिन, मुख्तार अंसारी की कोई पैरवी नहीं की गई।

सूत्रों की मानें तो विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल के आजमगढ़ समेत आसपास के जिलों में चुनावी समीकरण साधने के लिए बलराम यादव कौमी एकता दल के  सपा में विलय की जोरदार पैरवी भी कर रहे थे। कौएद के सपा में विलय के मामले में बलराम यादव सीधे मुलायम और शिवपाल से संपर्क बनाए हुए थे।

सूत्रों का कहना है कि न तो उन्होंने अखिलेश को इसकी जानकारी दी और न ही उन्हें विश्वास में लेने का प्रयास किया। अखिलेश विधानसभा चुनाव को लेकर बेहद गंभीर हैं और वह कतई नहीं चाहते कि आपराधिक छवि के लोगों को पार्टी में शामिल किया जाए जिससे चुनाव में विपक्ष को सरकार व सपा पर हमलावर होने का मौका मिले।

सूत्रों की मानें तो मुलायम के दबाव में अखिलेश बलराम को मंत्रिमंडल में बनाए हुए थे। मंत्रिमंडल में उनके कामकाज को लेकर भी सीएम संतुष्ट नहीं थे। मंत्रिमंडल विस्तार की अटकलों के बीच बीते सप्ताह मुलायम से मुलाकात करने पहुंचे अखिलेश ने उन्हें हटाने के संकेत भी दे दिए थे।

सूत्रों का कहना है कि मंगलवार को जिस तरह से शिवपाल ने आनन-फानन में प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर कौएद के सपा में विलय का एलान किया वह मुख्यमंत्री को रास नहीं आया। मुख्यमंत्री को इस फैसले से चुनाव में पार्टी की किरकिरी होने का भी अंदेशा है। अखिलेश ने बलराम यादव को इसका सूत्रधार मानते हुए उन्हें अपनी टीम से बाहर करने का फैसला किया और देर शाम उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया।

लोकसभा चुनाव में बलराम की भूमिका पर उठे थे सवाल
सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के करीबी माने जाने वाले बलराम यादव लोकसभा चुनाव के दौरान ही अखिलेश के निशाने पर आ गए थे। लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह आजमगढ़ से प्रत्याशी थे। आजमगढ़ में मुलायम सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर लग गई थी और तब भी खबरें आईं थीं कि बलराम यादव चुनाव में अपेक्षित सहयोग नहीं कर रहे हैं। स्थानीय नेताओं के रवैये के चलते आजमगढ़ का चुनाव सपा के लिए भारी चुनौती बन गया था। 

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