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अधूरी रह गई दो माह के बेटे को देखने की हसरत, आंखे नम कर देगी इस फौजी की कहानी

विक्रम फौज की नौकरी से बड़ी मुश्किल से वक्त निकालकर दो माह के अपने बेटे और पत्नी से मिलने ससुराल आ रहा था। लेकिन नियति को तो कुछ और ही मंजूर था।
दुधमुंहे बच्चे और पत्नी से मिलने से उसकी हसरत अधूरी रह गई। मौसम का कहर विक्रम पर काल बनकर बरसा। फौज में दुश्मन के आगे न झुकने वाला विक्रम बारिश और धुंध के चलते जिंदगी से ही हार गया।

दो दिन से उसकी राह देख रही पत्नी को विक्रम की मौत की सूचना मिलते ही वह टूट गई। विक्रम का शव देखकर पिता प्रताप और साला रचपाल फफक फफककर रो पड़े।

दो दिन से लापता सैन्य कर्मी का शव बृहस्पतिवार को मसूरी-चंबा-टिहरी मार्ग पर वाइनवर्ग एलन स्कूल के पास गहरी खाई में पड़ा मिला। पुलिस और आईटीबीपी के राहत एवं बचाव दल ने कड़ी मशक्कत के बाद शव को बाहर निकाला।

परिजनों का कहना है कि मंगलवार को विक्रम देहरादून से अपनी ससुराल स्यालसी, जौनपुर स्कूटी से आ रहा था। उस दिन मसूरी में भारी बारिश और धुंध थी। पुलिस का मानना है कि रात में विक्रम बारिश और कोहरे के कारण स्कूटी को नियंत्रित नहीं कर पाया। इस कारण गहरी खाई में गिरने से उसकी मौत हो गई।

पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने मृतक विक्रम सिंह (33) पुत्र प्रताप सिंह मनवाल निवासी बनाली, चंबा, टिहरी गढ़वाल का शव परिजनों को सौंप दिया। साले रजपाल की तहरीर पर बृहस्पतिवार सुबह पुलिस और परिजन विक्रम को ढूंढने मसूरी-चंबा मार्ग पर निकले।

वाइनवर्ग एलन स्कूल के पास सड़क पर स्कूटी का टूटा हुआ हिस्सा पड़ा मिला। इसकी निशानदेही पर पुलिस और परिजन खाई में उतरते चले गए। डेढ़ सौ फीट से अधिक गहरी खाई में विक्रम का शव पड़ा मिला। 

बेजान विक्रम के मोबाइल बैटरी में जान होने से शव तक पहुंचने में आसानी हुई। प्लास्टिक की थैली में पैक होने से मोबाइल सुरक्षित था और लगातार घंटी बज रही थी। इसके बाद कोतवाल राजीव रौथाण मयफोर्स मौके पर पहुंचे।

पुलिस व आईटीबीपी अकादमी के राहत-बचाव दल ने किसी तरह रस्सी और स्ट्रेचर के सहारे शव को सड़क पर पहुंचाया। मौके पालिकाध्यक्ष मनमोहन सिंह मल्ल समेत भारी संखा में स्थानीय लोग और मृतक के परिजन मौजूद थे। 

छुट्टी लेकर आया था घर 
साले रचपाल के अनुसार, लेह से कार्यमुक्त होकर विक्रम की असम में तैनाती होनी थी। इससे पहले अवकाश लेकर वह दून आया और मंगलवार को मसूरी होकर ससुराल जौनपुर प्रखंड के स्यालसी गांव जा रहा था। विक्रम भट्टा गांव पहुंचा तो रचपाल की उससे फोन पर बात हुई थी। रचपाल ने बताया कि विक्रम के आने की सूचना पर वह सुआखोली में इंतजार करता रहा। लेकिन, विक्रम रात 10 बजे तक नहीं पहुंचा तो रचपाल ने उसके परिजनों को फोन किया।

क्रैश बैरियर होता तो बच जाती जान 
घटनास्थल पर हर किसी की जुबान पर एक ही शब्द था, कि काश सड़क पर करीब तीन किमी और क्रैश बैरियर होता तो विक्रम की स्कूटी खाई में जाने से बच जाती और वह सुरक्षित होता। दरअसल, जिस स्थान से विक्रम की स्कूटी गहरी खाई में गिरी, वहां से कुछ दूरी तक क्रैश बैरियर नहीं था। 

 
 

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