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अपनी बुजुर्ग मां की अर्थी लेकर श्मशान पहुंची चार बहनें, और बेटा अंजान की तरह सबकुछ रहा देखता

बेटों से ज्यादा मां-बाप की चिंता बेटियों को होती है, यह कहावत उस वक्त सच होती दिखाई दी जब दिल्ली के द्वारका इलाके में चार बेटियां अपनी 81 वर्षीय बूढ़ी मां की अर्थी को कंधे पर रखकर अंतिम संस्कार के लिए निकलीं। यह मंजर देखकर लोगों को जहां इन बेटियों पर गर्व महसूस हुआ, वहीं बूढ़ी औरत का बेटा अनजान की तरह सब कुछ देखता रहा। भाई ने तो चार बहनों को कोई सहारा नहीं दिया, लेकिन पड़ोसियों ने खुलकर मदद की।

अपनी बुजुर्ग मां की अर्थी लेकर श्मशान पहुंची चार बहनें, और बेटा अंजान की तरह सबकुछ रहा देखता जानकारी के अनुसार 81 वर्षीय मनकौर अपने परिवार के साथ रामापार्क, उत्तम नगर इलाके में रहती थीं। उनके पति की 2003 में मृत्यु हो गई थी। उसके बाद मनकौर ने अपनी सारी संपत्ति बेटे शमशेर के नाम कर दी थी।

संपत्ति अपने नाम होते ही शमशेर और उसकी पत्नी मनकौर को परेशान करने लगे। यह भी पता चला है कि शमशेर ने अपनी मां के खाने-पीने पर भी पाबंदी लगा दी थी। इससे मनकैार बहुत टूट चुकी थीं और अपनी बेटियों से अपना दुख साझा करती थीं। उनकी चार बेटियां हैं।

14 सालों तक अपने बेटे से मिलने के लिए मनकौर तड़पी

इसी के चलते पटेल गार्डन में रहने वाली उनकी बेटी उन्हें अपने साथ अपने घर ले गई। उसके बाद से मनकौर अपनी बेटियों के साथ ही रहने लगी थीं। सालों बीत जाने के बावजूद शमशेर उनकी कोई खैर खबर भी नहीं लेता था।

बेटे और बहू के इस रवैये से मनकौर बहुत परेशान थीं। वह 14 सालों तक अपने बेटे और बहू से मिलने के लिए तड़पती रहीं, लेकिन उनके बेटे और बहू ने उनकी बीमारी की हालत में भी उन्हें पलट कर नहीं देखा।

उनके इस व्यवहार को देखते हुए मनकौर का मन इतना आहत हो गया कि उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा के रूप में शमशेर को उनके मौत के बाद अर्थी से भी हाथ लगाने से इंकार कर दिया था। मनकौर की मौत के बाद शमशेर अपनी बहन के घर पटेल गार्डन तो पहुंचा, लेकिन घर के बाहर गैरों की तरह बैठा रहा।

चारों बेटियों ने ही अपनी मां की अर्थी को सजाया और कंधे पर रखकर श्मशान तक ले गईं। उसकी बाद बहनों ने मिलकर अपनी मां का अंतिम संस्कार किया। इस घटना ने सभी को झकझोर कर रख दिया और एक ऐसी सीख दी जिससे साफ हो गया कि बेटियां किसी भी मायने में बेटों से पीछे नहीं होतीं।

 
 

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