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अलग बेंच की उम्मीद, राजधानी चुनौती, चुनौतियां और उम्मीदों पर विशेष रिपोर्ट

दस्तक टाइम्स/एजेंसी-हरियाणा:

untitled-58_1446336474पानीपत। हरियाणा 49 वर्ष पूरे कर 50वें में प्रवेश कर रहा है। यानी गोल्डेन जुबली वर्ष। इस दौरान हमारे प्रदेश ने खेती, खेल, उद्योग सहित कई क्षेत्रों में बहुत कुछ हासिल किया है। लेकिन कुछ मुद्दे जो अभी भी हमारे लिए चुनौती बने हुए हैं। इनमें हमारी राजधानी, हमारा अलग हाईकोर्ट और एसवाईएल नहर में पानी। इन मुद्दों पर प्रदेश में कई सरकारें आईं और चली गईं। लेकिन मुद्दे जस के तस खड़े रहे। अब इन मुद्दों को लेकर लोगाें में एक बार फिर चर्चा छिड़ी हुई है, क्योंकि दक्षिण हरियाणा में अलग हाईकोर्ट की खंडपीठ के लिए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने चार जजों की एक कमेटी गठित कर दी है, जो 2016 में अपनी रिपोर्ट देगी। इसलिए उम्मीद जताई जा रही है कि 2016 में हमें अपनी अलग खंडपीठ मिल सकती है। वहीं, राजधानी के मामले में आंध्र प्रदेश हमारे लिए उदाहरण बन सकता है। 2 जून 2014 को आंध्र से अलग होकर तेलंगाना राज्य बना था। तेलंगाना को तो उसकी राजधानी मिल गई, लेकिन आंध्र ने मात्र 16 माह में अपनी राजधानी अमरावती बनाने की तैयारी कर ली और प्रधानमंत्री ने 22 अक्टूबर को उसका उद्घाटन भी कर दिया। अब हरियाणावासियों को भी लगता है की शायद हमारी सरकार भी जागे अौर अपनी राजधानी पर विचार विमर्श शुरू हो। वहीं, एसवाईएल का मसला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। अब सरकार अर्ली हियरिंग का मसौदा तैयार कर रही है, जिससे उम्मीद बढ़ी है।
 
शाह आयोग की रिपोर्ट में चंडीगढ़ हरियाणा को देने की थी सिफारिश
अलग राज्य गठन के लिए बने जस्टिस जेसी शाह आयोग ने चंडीगढ़ हरियाणा को देने की सिफारिश भी की थी। दोनों राज्यों के विभाजन की सीमाओं को लेकर आयोग ने जो प्रस्ताव दिए, उस पर कुछ विवाद के बाद सहमति बन गई थी, लेकिन चंडीगढ़ हरियाणा को नहीं मिला। केंद्र सरकार ने अप्रैल 1966 में जस्टिस जेसी शाह की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया था। तीन सदस्यों वाले इस आयोग ने 31 मई को ही अपनी रिपोर्ट केंद्र को भेज दी। इसमें हिसार, महेंद्रगढ़, गुड़गांव, रोहतक, जींद, अम्बाला और करनाल जनपदों को नए राज्य हरियाणा का भाग बनाया गया। साथ ही तहसील खरड़ के साथ चंडीगढ़ को भी हरियाणा का हिस्सा बनाने की सिफारिश की गई थी। इस रिपोर्ट के आधार पर भारत सरकार ने 18 सितंबर 1966 को पंजाब पुनर्गठन विधेयक पारित कर दिया। इस विधेयक में आयोग की अधिकांश सिफारिशोंं को मान लिया गया लेकिन चंडीगढ़ का नाम आते ही बैकपुट पर आ गए। वोट बैंक की राजनीति के कारण राजधानी का यह मसला आज भी जैसा का तैसा है।
इनसे लें सबक : 16 माह में ही आंध्र को मिली अपनी राजधानी, हमें 49 वर्ष में नहीं
22 अक्टूबर को पीएम नरेंद्र मोदी ने जब आंध्रप्रदेश की नई राजधानी अमरावती का शिलान्यास किया तो पंजाब व हरियाणा की सरकारों के लिए यह सबक था। 2 जून 2014 को आंध्रप्रदेश व तेलंगाना एक दूसरे से अलग हुए थे। बंटवारे के समय हैदराबाद राजधानी तेलंगाना के हिस्से में आ गई तो 10 माह बाद एक अप्रैल को अमरावती को आंध्र की नई राजधानी बनाने का ऐलान कर दिया गया। इतना ही नहीं, इन दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री एक साथ 18 अक्टूबर को पीएम के पास अमरावती का शिलान्यास करने का निमंत्रण लेकर पहुंचे। कुल मिलाकर अलग राज्य की राजधानी बनाने की योजना बिना किसी विवाद के 16 माह में पूरी कर ली गई।
 
2016 में मिल सकती है खंडपीठ
हरियाणा में अलग खंडपीठ गठित करने को लेकर पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के चार जजों की कमेटी की अध्ययन रिपोर्ट 2016 में तैयार हो जाएगी। 48सालों से अलग हाईकोर्ट मांग रहे हरियाणा के लिए अलग बेंच की संभावनाओं को लेकर चार माह पहले पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस एसजे वजीफदार ने चार जजों की कमेटी का गठन किया था। कमेटी में जस्टिस एसके मित्तल, जस्टिस हेमंत गुप्ता, जस्टिस एसएस सरों और जस्टिस राजीव भल्ला को यह जिम्मा दिया गया था कि वे भौगोिलक परिस्थितियों के आधार पर यह तय करें कि खंडपीठ को लेकर कितनी संभावनाएं हैं। अध्ययन में दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र के फरीदाबाद, गुड़गांव, मेवात, पलवल, रेवाड़ी, झज्जर, रोहतक, भिवानी, महेद्रगढ़, हिसार व सिरसा जिलों में पीठ गठित करने की संभावनाओं को देखा जा रहा है। इन 11 जिलों की आबादी तकरीबन 1 करोड़ 45 लाख है। इन जिलों से 200 से 400 किलोमीटर तक का सफर करके लोगों को अपनी पेशी भुगतने चंडीगढ़ जाना पड़ता है।
 
33 साल बाद भी अनसुलझा है एसवाईएल का मुद्दा
सतलुज यमुना लिंक नहर (एसवाईएल ) पर अब चर्चा को लेकर नया कुछ नहीं है। बस वह 33 साल की हो गई है। 2014 के विधानसभा चुनाव में भी ज्यादा जिक्र नहीं हुआ। सीएम मनोहरलाल ने भी कह दिया कि इस मसले पर इतनी राजनीति हो चुकी है कि पंजाब भी दिलचस्पी नहीं दिखा रहा। पंजाब से अलग होने के बाद हरियाणा में पानी का मसला उठा। 1976 में तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने एक मसौदा बनवाया। 3.5 एकड़ फुट पानी का बराबर बंटवारा किया गया। इस आधार पर तय हुआ कि हरियाणा में पानी ले जाने के लिए एक नहर का निर्माण किया जाए। पंजाब में इस नहर के निर्माण को शुरू कराने के लिए हरियाणा सरकार ने दो किश्तों में 4 करोड़ रुपए भी पंजाब को दिए। अप्रैल 1982 में नहर की खुदाई शुरू हो गई। आज तक मुद्दा उलझा ही है।

 

ग्रामीण परिवेश से निकलकर अशिक्षित माता-पिता की बेटी बनीं पहली आईएएस जयवंती श्योकंद ने बताई मन की बात
 
1947 में जींद के दनौदा गांव में मेरे जन्म के समय लड़कियों की शिक्षा को लेकर इतनी जागरुकता नहीं थी। मैं पहली लड़की थी जो अपने गांव से कॉलेज के लिए हिसार और रोहतक गई। गांवों में 12वीं तक गर्ल्स स्कूल नहीं होने के कारण लड़कियों को पढ़ने के लिए बाहर जाना पड़ता था। यह आसान नहीं था। अधिकतर लड़कियां तो इसी वजह से पढ़ाई छोड़ देती थी। हिसार जाने के लिए परिजन मुझे बस में ड्राइवर के पास वाली सीट पर बैठाकर आते। अब बसों में इतनी छेड़छाड़ होती हैं कि लड़कियां पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हैं। बसों की कमी और सुरक्षा का अभाव लड़कियों का सपना तोड़ रहा है। हमें भी बेटियों को बाहर भेजने में डर लगता है। कुछ वर्ष पहले की ही बात है मैं नरवाना राजकीय कॉलेज में लेक्चर देने गई थीं। तब लड़कियों ने मुझे घेर लिया और कहा कि हमारे गांव में बस लगवा दूं। मैंने रोडवेज जीएम से बात की तो जवाब मिला कि बसें ही नहीं हैं। 1974 में सिविल सर्विसेज हरियाणा में जाने और 1985 में आईएएस बनने के बाद मैं महेंद्रगढ़, पानीपत और कैथल आदि कई जिलों में उपायुक्त रही। इस दौरान और रिटायरमेंट के बाद मैंने यही बात महसूस की कि हरियाणा में इंफ्रास्ट्रक्चर का तो विकास हो रहा है, लेकिन सोच का नहीं। पहले हमें शिक्षा खासकर गांवों में बेटियों को पढ़ाने पर जोर देना होगा। हर गांव में 12वीं तक स्कूल जरूर होना चाहिए। गांव में ही स्कूल होगा तो बेटियां ज्यादा पढ़ेंगी। इसके बाद कॉलेज जाने के लिए महिला स्पेशल बस और सुरक्षा का पूरा इंतजाम। यदि बच्चे पढ़ गए तो आधी समस्याएं तो खुद ही खत्म हो जाएंगी। हरियाणा सरकार ने कानून बनाया कि पढ़ी-लिखी पंचायत होनी चाहिए, लेकिन बड़े शर्म की बात है कि हरियाणा बनने के 49 वर्ष बाद भी हमें पढ़े-लिखे उम्मीदवार नहीं मिल रहे। सरकार को गांवों में शिक्षा का दायरा फैलाना होगा। -जयवंती श्योकंद, रिटायर्ड आईएएस अधिकारी, जींद
ये हैं हालात
>76.6% है प्रदेश की साक्षरता दर
>46% लोग गांवों में पांचवीं भी पास नहीं
>39% लोग ही आठवीं पास
>6841 गांव हैं प्रदेश में, 1650 गांवों में ही हैं सीनियर सेकेंडरी स्कूल
>16 हजार बसों की जरूरत है जनसंख्या के हिसाब से
>41 सौ बसें ही हैं प्रदेश में, 500 के लगभग खड़ी वर्कशॉप में

 

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