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आख‌‌िरी पलों में न‌िर्भया ने अपनी माँ से जो बाते कहीं, वो आपको भी अंदर तक ह‌िला देंगी

16 दिसंबर 2012 की सर्द रात को हुए उस जघन्य कांड को सहने वाली निर्भया का आज(बुधवार) को 28 वां जन्मद‌िन है। अगर आज वो ज‌िंदा होती तो खुशी-खुशी अपना जन्मद‌िन मना रही होती। 1989 में जन्मी न‌िर्भया की कहानी का इतना दुखत अंत होगा क‌िसी ने कभी सोचा भी न था। लेक‌िन चंद लोगों की संकीर्ण मानस‌िकता के कारण आज वो हमारे बीच नहीं है।

आख‌‌िरी पलों में न‌िर्भया ने अपनी माँ से जो बाते कहीं, वो आपको भी अंदर तक ह‌िला देंगी

न‌िर्भया की कहानी हर इंसान को अंदर तक झकझोरने वाली है। यहां तक क‌ि उसका इलाज करने वाले डॉक्टर भी अंदर त‌क ह‌िल गए। उस द‌िन न‌िर्भया के साथ जो हुआ वह कभी क‌िसी के साथ न हो अब इसकी बस दुआ की जा सकती है। 

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उस हादसे के बाद दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में न‌िर्भया जिंदगी की जंग लड़ रही थी। वह इस हालत में नहीं थी क‌ि क‌िसी से कुछ भी कह सके। ऐसे में वह अपनी बात अपनी मां से कागज पर ल‌िखकर बताती थी।
 

वह कहती थी क‌ि मां मुझे बहुत दर्द हो रहा है। मैने आपसे और पापा से फ‌िज‌ियोथेरेप‌िस्ट बनकर लोगों के दुख को दूर करने का वादा क‌िया था। लेक‌िन आज मुझसे अपना ही दुख बर्दाश्त नहीं हो रहा है।
 

कहा क‌ि मां मैं सांस भी नहीं ले पा रही हूं। जब भी मैं आंखें बंद करती हूं तो लगता है कि मैं बहुत सारे दरिंदों के बीच फंसी हूं। वो दरिंदे मेरे शरीर को नोच रहे हैं। 
 

ये मुझे बुरी तरह से रौंद डालना चाहते हैं। मैं अब अपनी आंखें बंद नहीं करना चाहती हूं, लेक‌िन डर के कारण नहीं कर पा रही हूं। मेरे शरीर में इतनी शक्ति नहीं है की मैं सिर उठाकर आईसीयू से बाहर खड़े अपनों को देख सकूं। मां आप मुझे छोड़कर मत जाना। अकेले में मुझे बहुत डर लगता है। मैं आपको तलाशने लगती हूं
 

कहा क‌ि मां आईसीयू की सारी मशीनों से भी मुझे डर लगता है। मुझे उस ट्रेफ‌िक स‌िग्नल की याद आती है जहां ये सब हुआ। अपनी मां से अपने दर्द और पीड़ा को बयां करती न‌िर्भया बस एक ही गुहार लगाती थी क‌ि उन्हें सजा द‌िला दो। 
 

वह जीना चाहती थी। लेक‌िन डर उसके अंदर इस कदर घर कर गया था क‌ि वह जीने से भी डरने लगी, और अंत में जब वह नहीं लड़ सकी तो एक ही बात कही और हमेशा के ल‌िए सो गई। ‘मां मुझे माफ कर देना। अब मैं जिंदगी से और लड़ाई नहीं लड़ सकती।’
 

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