अद्धयात्म

आचरणों का नियम पूर्वक करें पालन, प्रसन्न होते हैं भगवान विष्णु

देवताओं की आराधना के लिए कार्तिक मास को धार्मिक ग्रन्थों में अत्यन्त महत्वपूर्ण माना गया है। इस मास में श्रद्धालुओं के लिए पांच आचरणों का पालन करने पर जोर दिया जाता है। यह पांच आचरण हैं- दीप दान, पवित्र नदी में स्नान, तुलसी का पूजन, भूमि पर शयन, पवित्र आचरण बनाए रखना और दालों के सेवन से परहेज। कार्तिक मास में इन सभी आचरणों का नियम पूर्वक पालन करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होकर अपना शुभाशीष प्रदान करते हैं जिससे जीवन में आरोग्य, धन-सम्पदा, स्नेह, प्रेम, खुशहाली और अन्य लाभों की प्राप्ति होती है। कार्तिक मास में प्रथम पन्द्रह दिनों तक रात्रि में घोर अन्धकार रहता है। अन्धकार लक्ष्मी जी की कृपा मिलने में बाधक होता है, इसलिए इन दिनों घरों में अन्धकार नहीं रहने देना चाहिए तथा प्रतिदिन अन्धकार होते ही दीपक प्रज्वलित करना चाहिये।

घर में प्रकाश बने रहने से बुरी आत्मायें अपना दुष्प्रभाव नहीं दिखातीं तथा लक्ष्मी जी के आशीर्वाद से घर में धन की कमी भी नहीं रहती। घरों के अलावा देव मन्दिर, सार्वजनिक मार्ग, गली, चौराहा, पीपल, तुलसी, आंवला आदि के पास भी दीपक प्रज्वलित करना चाहिए। कार्तिक मास में आरोग्य प्राप्ति और उसकी रक्षा के लिए प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व ही पवित्र नदी जैसे गंगा, यमुना, गोदावरी, कावेरी आदि में स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है। स्नान के बाद विधि पूर्वक भगवान विष्णु और लक्ष्मी की आराधना करनी चाहिए।

कार्तिक मास भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित माना गया है। वे वृन्दा अर्थात तुलसी के हृदय में शालिग्राम के रुप में रहते हैं। इन दिनों प्रातः और साँय काल में तुलसी जी के समक्ष प्रतिदिन शुद्ध घी का दीपक जलाते हुए उनकी पूजा करनी चाहिए। भगवान को भोग लगाते समय भी उसमें तुलसी दल अवश्य डालना चाहिए। आयुर्वेद में तुलसी को बहुत से रोगों के उपचार के लिए रामवाण के समान माना गया है, इसलिए तुलसी का उपयोग किसी न किसी रुप में अवश्य करना चाहिए।
कार्तिक मास को पवित्रता और धार्मिकता का पर्याय माना जाता है। इस मास की पवित्रता को बनाए रखते हुए अपने आचरण की शुद्धता पर खास ध्यान देना चाहिए। कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए जिससे किसी भी प्राणी को कष्ट हो। इस मास में शराब, नशीले पदार्थ, मांसाहार, प्याज, लहसुन तथा अन्य अखाद्य व तामसिक पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।

आचरण की पवित्रता बने रहने से मन और बुद्धि के समस्त विकार दूर हो जाते हैं। प्राचीन काल में हमारे ऋषि मुनि रात्रि में स्वच्छ भूमि पर ही शयन करते थे क्योंकि इससे उनमें विलासिता की प्रवृत्ति उत्पन्न नहीं होने पाती थी। कार्तिक मास में अपने आप को विलासितापूर्ण जीवन से मुक्त बनाए रखने के लिए भूमि पर ही शयन करना चाहिए। शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए प्राकृतिक जीवन जीने को आवश्यक बताया गया है। कार्तिक मास मौसम परिवर्तन से भी जुड़ा है। इस मास में गरिष्ट और अधिक मिर्च-मसालेदार भोजन करने से परहेज करना ही हितकर है।

इस मास में दालों के सेवन से बचना चाहिए बल्कि घीया, तोरई, परवल, गोभी, सेम, मटर, मूली, सिंघाडा, आंवला गन्ना, शकरकन्दी आदि का सेवन करना चाहिए। कार्तिक मास ही एक मात्र ऐसा मास है जिसमें एक दर्जन से भी अधिक त्यौहार होते हैं जैसे करवा चौथ, अहोई अष्टमी, तुलसी एकादशी, धनतेरस, नरक चतुर्दशी, लक्ष्मी पूजन, गोवर्धन पूजा, भाई दूज, डाला छठ, अक्षय नवमी, देवठान एकादशी, तुलसी विवाह, कार्तिक पूर्णिमा। इस मास की महत्ता को ध्यान में रखते हुए इन त्योहारों को मनाना चाहिए और भगवान विष्णु से सर्व कल्याण की कामना करनी चाहिए।

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