नई दिल्ली : देश की आजादी के लिए 23 मार्च 1931 को तीन लोग फांसी पर चढ़े, भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु। भगत सिंह की फांसी, शहादत और उनके विचारों पर अनगिनत बातें होती हैं, लेकिन सुखदेव और राजगुरु को काम याद किया जाता है? सुखदेव थापर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की रीढ़ की हड्डी थे, भगत सिंह ने जिस असेंबली में बम फेंकने की घटना को अंजाम दिया, उसकी प्लानिंग में सुखदेव का अहम रोल था। भगत सिंह के नाम पर पाकिस्तान में भी जगह हैं, लेकिन सुखदेव का शहर? लुधियाना की किसी पहचान में सुखदेव शामिल नहीं होते। सुखदेव थापर लुधियाना के नौगढ़ मोहल्ले में पैदा हुए, यहां उनका घर है।
लुधियाना शहर का बस अड्डा और एक स्कूल जरूर उनके नाम पर है। जानने वालों की मानें तो इसमें राज्य सरकारों की नाकामी ज्यादा है। पंजाब की सरकारें शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के नाम पर तमाम आयोजन करते हैं लेकिन इनमें सुखदेव का शायद ही जिक्र होता है। वहीं इनमें तीसरे साथी राजगुरु की बात करें तो स्थिति थोड़ी अलग है। पुणे से कोई 40 किलोमीटर दूर राजगुरु का गांव है। बीते वर्ष 2017 में महाराष्ट्र सरकार ने राजगुरु के पैतृक स्थल को रीस्टोर करने के लिए 5 करोड़ का बजट दिया। इससे पहले ये प्रोजेक्ट लंबे समय से फाइलों में अटका पड़ा था, हर साल वहां एक डार्याक्रम होता था। इस कार्यक्रम में लगभग 500 लोग शामिल होते थे, सरकार की इस मदद के बाद इसमें और सुधार आएगा।