आज रहस्यमय हैंगिंग पिलर मंदिर के लिए प्रसिद्ध है ये जगह
एजेन्सी/ आंध्रप्रदेश के अनंतपुर में एक गांव है लेपाक्षी। जनश्रुति है कि लेपाक्षी वही पौराणिक स्थान है जहां रामायण काल में रावण से युद्ध के बाद जटायु घायल हो कर गिरा था।
वर्तमान में यह गांव 16वीं सदी में बने कलात्मक लेपाक्षी मंदिर के लिए विख्यात है। यह विशाल मंदिर भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान वीरभद्र को समर्पित है। वीरभद्र को शिव का ही एक रूप माना जाता है।
क्या कहती है जनश्रुति
अनेक लोगों का मानना है कि लेपाक्षी रामायण कालीन गांव है। कहते हैं, जब लंकापति रावण भगवान राम की भार्या सीता का हरण कर ले जा रहा था, तब जटायु ने उससे युद्ध किया था।
अनुश्रुति है कि युद्ध में घायल होकर जटायु यहीं गिरा था। वह भगवान राम को घायलावस्था में यहीं मिला था। जख्मी जटायु को देखकर उन्होंने कहा था, हे पक्षी उठो! उल्लेखनीय है कि तेलुगु में ‘ले पाक्षी’ का भी यही अर्थ है: उठो, पक्षी!
जमीन को नहीं छूता है लेपाक्षी मंदिर का पिलर
लेपाक्षी मंदिर 70 पिलर (खंभा) पर खड़ा एक निहायत कलात्मक और खूबसूरत मंदिर है। इसके 70 वजनदार खंभों में एक खंभा ऐसा भी है, जो जमीन को नहीं छूता है, बल्कि हवा में लटका हुआ है। इस एक झूलते हुए पिलर के कारण यह मंदिर ‘हैंगिंग टेम्पल’ कहलाता है।
ब्रिटिश शासनकाल में कई अंग्रेज़ आर्किटेक्ट ने इस पिलर के हवा में झूलने का रहस्य जानने की कोशिश की, लेकिन वे कभी सफल नहीं हो पाए। आज भी यह एक रहस्य ही है।
पिलर के नीचे से आरपार कपड़ा निकालते हैं श्रद्धालु
लेपाक्षी मंदिर आने वाले श्रद्धालु इस पिलर के नीचे की खाली जगह से आरपार कपड़ा सरकाते हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि इसके नीचे से कपड़ा निकालने से सुख-समृद्धि में बढ़ोतरी होती है।
ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण सन 1583 में विरुपन्ना और वीरन्ना नामक दो भाइयों ने करवाया था, जो विजयनगर राज्य के सामंत थे। वहीं दूसरी ओर पौराणिक मान्यता है कि लेपाक्षी मंदिर परिसर में स्थित वीरभद्र मंदिर का निर्माण अगस्त्य ऋषि ने करवाया था।