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नई दिल्ली : योजना आयोग की जगह प्रस्तावित नई संस्था में विकास हेतु रणनीति, लक्ष्य व वरीयता के सेक्टर तय करने के लिए मुख्यमंत्रियों की एक परिषद प्रस्तावित की गई है। जिसमें सभी राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल होंगे और इसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करेंगे। नवगठित संस्था में राज्यों को स्थाई प्रतिनिधित्व देने का सुझाव दिया गया है।
यह भी प्रस्ताव है कि केंद्र पोषित योजनाओं में पर्याप्त लचीलापन होना चाहिए जिससे राज्य अपनी आवश्यकतानुसार ढालते हुए इसका क्रियान्वयन सुनिश्चत कर सकें और योजना धनराशि का उपभोग कर सकें। अगर इस आधार पर व्यवस्था की जाती है तो प्रत्येक वर्ष केंद्रीय सहायता उपलब्ध कराने और योजनाओं की धनराशि मुहैया कराने से पूर्व चर्चा की जरूरत नहीं रहेगी। प्रस्तावित नवीन संस्था को इनोवेशन या नॉलेज हब के रूप में काम करने का भी प्रस्ताव किया गया है। उपरोक्त हब किस प्रकार से राज्यों के हित में काम कर सकता है और उसकी कार्यक्षमता क्या होना चाहिए इसपर भी चर्चा की गई। इनोवेशन या नॉलेज हब के रूप में यह संस्थान कैसे राज्यों से संबंधित योजनाओं के निराकरण के लिएअध्ययन व शोध करेगा इसके लिए जरूरी संसाधन उपलब्ध कराए जाएंगे।
यह भी सुझाव है कि विभिन्न सेक्टर के लिए स्थाई कार्यदल बनें और इसमें राज्यों का प्रतिनिधित्व और संबंधित मंत्रालयों की भागीदारी हो। इस कार्यदल के सुझाव के आधार पर ही आगे की कार्ययोजना और परिव्यय का ढांचा तय हो। ख्यमंत्रियों के साथ चर्चा जिन बिंदुओं पर हुई उसमें यह भी सवाल उठा कि पंचवर्षीय योजनाओं को जारी रखा जाए या नहीं? यह भी चर्चा हुई कि क्या राज्यों व केंद्र के बीच वार्षिक योजना को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया पूर्ववत चलनी चाहिए? प्रस्ताव है कि राज्यों की वित्तीय भागीदारी बढ़ाने के लिए उपलब्ध केंद्रीय सहायता का 50 फीसदी राज्यों को एकमुश्त उपलब्ध कराया जाए। जिससे वह स्थानीय वरीयताओं को ध्यान में रखकर खर्च के बारे में तय कर सकें। यह प्रस्ताव भी है कि राज्यों द्वारा इस धनराशि के उपयोग का आकलन उनके द्वारा दीर्घकालीन लक्ष्य की पूर्ति के आधार पर करना चाहिए।