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आर्थिक समीक्षा 2015-16 : अगले दो से 5 साल में आर्थिक वृद्दि दर 8% से ज्यादा होने की उम्मीद, सुधारों पर जोर

दस्तक टाइम्स एजेंसी/नई दिल्ली : संसद में शुक्रवार को पेश आर्थिक समीक्षा में अगले वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि 7 से 7.75 प्रतिशत के दायरे में रहने का अनुमान व्यक्त करते हुये वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) सहित विभिन्न सुधारों को आ104645-arunगे बढ़ाने, सब्सिडी में कमी लाने का सुझाव दिया गया। साथ ही समीक्षा में कर दायरा बढ़ाने और व्यक्तिगत आयकर छूट सीमा बढ़ाने से बचने का सुझाव दिया गया है।

वर्ष 2015-16 की आर्थिक समीक्षा में मौजूदा धुंधले वैश्विक परिवेश में भारत को ‘स्थिरता वाला आकर्षक स्थल’ बताया गया है लेकिन साथ ही चीन में मुद्रा के हाल के अवमूल्यन को देखते हुये मुद्राओं के क्षेत्र में उतार चढ़ाव से भी सतर्क रहने को कहा गया है।’ आम बजट पेश करने से दो दिन पहले वित्त मंत्री अरण जेटली द्वारा संसद में पेश आर्थिक समीक्षा में वर्ष 2016-17 के दौरान आर्थिक वृद्धि दर 7 से 7.75 प्रतिशत के दायरे में रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है, लेकिन अनिश्चित वैश्विक आर्थिक परिवेश को देखते हुये इसमें नरमी का जोखिम भी बताया गया है।

उल्लेखनीय है कि पिछले साल समीक्षा में 2015-16 में वृद्धि दर 8.1 से 8.5 प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान लगाया गया था लेकिन ताजा आंकड़ों में इसके 7.6 प्रतिशत रहने का अनुमान सामने आया है।

मुख्य आर्थिक सलाहकर अरविंद सुब्रमणियम ने अगले दो से पांच साल में देश की आर्थिक वृद्धि दर 8 से 10 प्रतिशत तक पहुंचने का अनुमान व्यक्त किया है। हालांकि, उन्होंने कहा कि यह तभी होगा जब ढांचागत सुधारों को आगे बढ़ाया जायेगा और प्रतिस्पर्धी संघवाद को प्रोत्साहित किया जायेगा। उन्होंने विनिवेश लक्ष्य हासिल नहीं होने और जीएसटी को लेकर निराशा जताई। बैंकों और कुछ बड़ी कंपनियों के बही खातों की बिगड़ती स्थिति को उन्होंने वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष बड़ी चुनौती बताया

उद्योग जगत ने आर्थिक समीक्षा में बताये गये वैश्विक जोखिम की तरफ सरकार का ध्यान खींचा है। समीक्षा में कहा गया है कि वैश्विक मांग नहीं बढ़ने से अर्थव्यवस्था के समक्ष नरमी का खतरा बना हुआ है। ऐसे में सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में मांग और कारोबार सुगमता बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिये।

उद्योगों ने कहा है, ‘हालांकि, अर्थव्यवस्था वृद्धि की राह पर है लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था की कमजोर चाल से निर्यात घटने और निवेश में कमी के चलते इसके समक्ष नरमी का खतरा बना हुआ है। जिससे रोजगार सृजन में भी चुनौती खड़ी हो रही है।’ समीक्षा में अगले साल सरकार के ख़र्चों में वृद्धि को देखते हुये राजकोषीय घाटे के लक्ष्य की समीक्षा का पक्ष लिया गया है। 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों पर अमल से सरकारी खजाने पर 1.02 लाख करोड़ रुपये का बोझ पड़ने का अनुमान है जबकि बैंकों को पूंजी उपलब्ध कराने के लिये भी 1.80 लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी।

इसमें कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष के दौरान 3.9 प्रतिशत राजकोषीय घाटे के लक्ष्य का पालन होना चाहिये लेकिन अतिरिक्त संसाधनों की जरूरत को देखते हुये अगले वित्त वर्ष में यह लक्ष्य हासिल करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। अगले साल के राजकोषीय घाटे में हल्की वृद्धि की गुंजाइश का संकेत देते हुये समीक्षा में कहा गया है कि ‘विश्वसनीयता और बेहतरी’ 2016-17 में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 3.5 प्रतिशत रखे जाने में ही है।

समीक्षा में सब्सिडी कटौती पर जोर देते हुये कहा गया है कि करीब एक लाख करोड़ रपये की सब्सिडी संपन्न तबके को जाती है। इसमें कटौती कर बेहतर राजकोषीय प्रबंधन किया जा सकता है। इसमें कर रियायतों को भी चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने पर जोर दिया गया है। 

समीक्षा में सरकार से व्यक्तिगत आयकर छूट सीमा नहीं बढ़ाने को कहा गया है। इस समय ढाई लाख रपये सालाना की व्यक्तिगत आय कर मुक्त है। विशेषज्ञों ने इसे बढ़ाकर तीन लाख रपये करने की मांग की है। बहरहाल, समीक्षा में इसमें वृद्धि से बचने की सलाह दी गई है। देशभर में स्थानीय निकायों की मजबूत राजकोषीय स्थिति के लिये संपत्ति कर ढांचे को विकसित करने और दरें बढ़ाने का सुझाव दिया गया है।

इसके साथ ही कर दायरा और व्यापक बनाने की वकालत भी की गई है। इसमें कहा गया है कि वर्तमान में कमाई करने वाले 5.5 प्रतिशत लोग ही कर दायरे में है। यह दायरा बढ़ाकर 20 प्रतिशत से अधिक होना चाहिये। समीक्षा में कहा गया है कि 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों पर अमल से मुद्रास्फीति पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। वर्ष 2016-17 में मुद्रास्फीति 4.5 से 5 प्रतिशत दायरे में रहेगी। रिजर्व बैंक ने भी यही लक्ष्य रखा है। चालू खाते का घाटा जीडीपी के एक से डेढ़ प्रतिशत रह सकता है।

रुपये का मूल्य उचित स्तर पर रखने पर जोर दिया गया है। इसमें कहा गया है कि मौद्रिक सरलीकरण से रुपये को उचित स्तर पर रखा जा सकता है। यदि पूंजी प्रवाह कमजोर रहता है तो रुपये में धीरे-धीरे नरमी आने देनी चाहिये। चीन में मुद्रा के अवमूल्यन को ध्यान में रखते हुये भारत को भी समायोजन के लिये तैयार रहना चाहिये।

समीक्षा में संगठित क्षेत्र में अधिक रोजगार सृजन पर जोर दिया गया है। श्रम क्षेत्र के नियमनों से जुड़े मुद्दों का भी समाधान किया जाना चाहिये। श्रम सुधारों के क्षेत्र में धीमी चाल से कंपनियों को ठेका कर्मचारियों को अपनाना पड़ता है। बैंकों को पूंजी उपलब्ध कराने के लिये समीक्षा में कहा गया है कि सरकार को अपनी कुछ कंपनियों को बेचकर पूंजी जुटानी चाहिये।

बहरहाल, आर्थिक समीक्षा के बाद बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स शुक्रवार को 178 अंक बढ़कर 23,000 अंक से उपर निकल गया। इससे पहले सप्ताह के दौरान इसमें 554 अंक की गिरावट आ गई थी। समीक्षा में अगले साल की आर्थिक वृद्धि 7 से 7.75 प्रतिशत के दायरे में रहने का अनुमान आने से बाजार धारणा में सुधार हुआ।

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