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इसलिए माछिल से आसानी से घुसपैठ कर जाते हैं आतंकी

machhilश्रीनगर : मंगलवार को एलओसी पर भारत के तीन सैनिकों की शहादत के बाद माछिल सेक्टर एक बार फिर चर्चा में हैं। नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पार से कुपवाड़ा जिला में घुसपैठ का आतंकियों के लिए यह एक आसान रास्ता है। समुद्र तल से 6,500 फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर स्थित इस सेक्टर में घने जंगल आतंकियों के लिए बहुत फायदेमंद साबित होते हैं। वे आसानी से इसमें छिप जाते हैं। इसके अलावा यहां का मौसम और इलाके की बनावट भी आतंकियों के पक्ष में जाती है। यहां कुपवाड़ा शहर से महज 50-80 किमी. की दूरी पर भारत और पाकिस्तान के बंकर्स एक-दूसरे के काफी करीब तैनात हैं। अधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, आतंकी कुपवाड़ा और लोलाब घाटी में पहुंचने के लिए घुसपैठ के कई रास्तों का इस्तेमाल करते हैं। सितंबर में भारतीय सेना की ओर से किए गए सर्जिकल स्ट्राइक के बाद सीजफायर उल्लंघन के मामले में काफी बढ़ोतरी हुई है। 29 अक्टूबर को भी भारत का एक जवान शहीद हो गया था। पिछले कुछ महीनों में इस इलाके से चार से ज्यादा घुसपैठ के प्रयास हुए हैं।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि कई ऐसे स्थान हैं जहां आतंकी या पाकिस्तानी सैनिक हाजी नाका से माछिल तक आसानी से भारतीय सैनिकों की नजर बचाकर घुस जाते हैं। पुलिस अधिकारी ने बताया, ‘अभी तो आतंकी माछिल के जंगलों का इस्तेमाल कुपवाड़ा में घुसपैठ के लिए कर रहे हैं।’ अगस्त में बीएसएफ के तीन जवान इस इलाके में शहीद हो गए थे। भारत के आखिरी गांव से महज 6 किलोमीटर की दूरी पर एलओसी है और दूसरी तरफ केल है, जिसके बारे में अधिकारियों का कहना है कि वह आतंकियों का सबसे बड़ा लॉन्चपैड है। जुलाई में हिज्बुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद आतंकियों को और मौके हाथ लग गए हैं। बुरहान की मौत के बाद घाटी में लोग बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। सेना का सारा ध्यान प्रदर्शनकारियों से निपटने पर लगा है। ऐसे में आतंकियों के खिलाफ चलाए जाने वाले ऑपरेशन में कमी आई है, जिसका फायदा आतंकी उठा रहे हैं।
अधिकारियों का कहना है कि एलओसी पर गर्मागर्मी से भी आतंकियों को फायदा हुआ है क्योंकि एलओसी पर गोलीबारी के बीच घुसपैठ की रोकथाम के लिए ठोस कदम उठाना मुश्किल है। 2010 में माछिल उस समय चर्चा में आया था, जब एक मुठभेड़ में सेना ने तीन ग्रामीणों को मार दिया था। इसके बाद कश्मीर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ था और सेना ने मुठभेड़ की जांच का आदेश दिया था। जांच में मुठभेड़ फर्जी निकला था और एक पूर्व कमांडिंग ऑफिसर समेत छह जवानों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

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