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इस डांसर को मिला था भारत की राष्ट्रपति बनने का ऑफर, जानिए क्यों ठुकराया?

phpThumb_generated_thumbnail (4)नई दिल्ली।

शास्त्रीय नृत्य कला खासकर भरतनाट्यम को ऊंचाइयों तक पहुंचाने का श्रेय रुक्मिणी देवी को जाता है। उन्होंने भरतनाट्यम की मूल विधा ‘साधीर’ को तब पहचान दिलाई जब महिलाओं के नृत्य करने को समाज में अच्छा नहीं माना जाता था। उन्होंने तमाम विरोधों के बावजूद महिलाओं के नृत्य करने का समर्थन किया। इनके 112वें जन्मदिवस पर गूगल ने नृत्य मुद्रा में इनका डूडल बनाकर श्रद्धांजलि दी।
 
मोरारजी देसाई ने की राष्ट्रपति पद की पेशकश
मशहूर नृत्यांगना रुक्मिणी को 1977 में मोरारजी देसाई ने राष्ट्रपति पद की पेशकश की थी, लेकिन उन्होंने खुद की कला अकादमी की जरूरतों को देखते हुए विनम्रतापूर्वक पद ग्रहण करने से इनकार कर दिया। कला क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें पद्म भूषण, संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड से भी नवाजा गया। वे 1952 व 1956 में राज्यसभा सदस्य के रूप में मनोनीत हुईं।  
 
बैले डांस के बाद सीखा भरतनाट्यम
रुक्मिणी जब 16 वर्ष की थीं तभी उनका विवाह हो गया था। 1928 में मशहूर रूसी डांसर अन्ना पावलोवा से मिलीं और उनसे बैले डांस सीखा। अन्ना ने ही उन्हें भारतीय नृत्य सीखने के लिए प्रेरित किया जिसके बाद उन्होंने भरतनाट्यम सीखा और  1935 में पहली बार सार्वजनिक मंच पर इसकी प्रस्तुति दी। 1936 में उन्होंने चेन्नई के पास कुरुक्षेत्र नाम से संगीत व नृत्य अकादमी स्थापित की जो आज डीम्ड यूनिवर्सिटी के रूप में स्थापित है।  
 
शाकाहार को बढ़ावा दिया
मदुरै के ब्राह्मण परिवार में जन्मी रुक्मिणी के पिता नीलकंठ शास्त्री इंजीनियर व मां सेशाम्मल संगीत प्रेमी थीं। उनका पूरा परिवार शाकाहारी था। 1955 में  वे ‘इंटरनेशनल वेजिटेरियन यूनियन’ की उपाध्यक्ष बनीं और अंतिम सांस तक इस पद बनी रहीं। उन्होंने देशभर में शाकाहार को बढ़ावा दिया। उन्होंने पशुओं पर हो रही क्रूरता के खिलाफ भी आवाज उठाई।
 

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