राजनीति

उत्‍तराखंड चुनाव: कौन जीता कौन हारा, नारों में गुत्थमगुत्था

उत्‍तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 में बढ़िया-बढ़िया घोषणाओं से लबालब लुभावन घोषणापत्रों और फिर लच्छेदार अल्फाजों से सजे-धजे नारों के बीच भी खूब गुत्थमगुत्था हुई।

देहरादून: तकरीबन डेढ़ माह तक सियासी दलों और उम्मीदवारों ने जुबानी जंग से मतदाताओं को बताने की भरपूर कोशिश की कि आखिर उत्तराखंड किसतरह संवरेगा या पूरे पांच साल वह कैसे खुशहाल रह सकता है। वोटरों को रिझाने के लिए हर मुमकिन हथकंडे अपनाए गए। पहले बढ़िया-बढ़िया घोषणाओं से लबालब लुभावन घोषणापत्रों और फिर लच्छेदार अल्फाजों से सजे-धजे नारों के बीच भी खूब गुत्थमगुत्था हुई।

इस जंग में दलों ने दावों और प्रति दावों में वायदों की झड़ी लगाई तो साथ में एकदूसरे के वायदों और घोषणाओं की हवा निकालने में भी कसर नहीं छोड़ी। लंबा वाक युद्ध थमने के बाद जब सियासी फिजां में शांति पसर गई, लेकिन दल अब भी हैरान-परेशान हैं। जी हां, उनके दावों, वायदों पर वोटर जी का असल रुख क्या रहा, इसे लेकर उनमें बेचैनी का आलम है। ये बेचैनी 11 मार्च को चुनाव नतीजे आने के बाद ही खत्म हो सकेगी।

सूबे में चुनावी जंग में दलों के अपने-अपने दावों और वायदों पर मतदाताओं ने कितना भरोसा जताया, इसको परखे जाने की घड़ी करीब आ चुकी है। जंगेमैदान में आमने-सामने रहे चर्चित नारों ने माहौल को खूब रोचक बनाने में अहम भूमिका अदा की है। भाजपा ने जहां ‘अटल जी ने बनाया है, मोदी जी संवारेंगे’ के नारे पर दांव खेला तो कांग्रेस ने ‘उत्तराखंड रहे खुशहाल, रावत पूरे पांच साल’ के नारे के साथ ताल ठोकी।

इस चुनाव में भाजपा ने मुख्यमंत्री के रूप में किसी चेहरे को आगे नहीं किया है। पार्टी ने राज्य के किसी चेहरे के बजाए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देशभर के मतदाताओं के बीच बनी छवि पर भरोसा करना ज्यादा उचित समझा। वहीं कांग्रेस ने राज्य में मुख्यमंत्री हरीश रावत की जुझारू छवि को भुनाना ज्यादा मुनासिब समझा है। संकट के बावजूद सरकार को बचाने में कामयाब रहे रावत को आगे पांच साल सूबे की कमान सौंपे जाने का संकेत देकर कांग्रेस राज्य में राजनीतिक स्थिरता को तरजीह देती दिखी है।

यह भी पढ़ें: उत्तराखंड चुनाव: 24 बागी छह साल के लिए कांग्रेस से निष्कासित

चुनावी दौड़ में शामिल कांग्रेस ने जिन अन्य नारों पर दांव खेला, उनमें ‘जिम्मेदार शासन, जवाबदेह सरकार’, ‘हरदा के संग’ ‘मैं नहीं हम’ जैसे नारे भी शामिल रहे। भाजपा पर प्रहार करते हुए सत्तारूढ़ दल ने भी कई जवाबी नारों ‘जुमलों की सरकार, भ्रष्टाचार अपरंपार’, ‘भगोड़ों की भरमार, शासन से नहीं सरोकार’ का भी खूब इस्तेमाल किया।

वहीं सूबे की सत्ता पर दावेदारी पेश कर रही प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा ने ‘भाजपा के संग, आओ बदलें उत्तराखंड’, ‘आपका दिया हर वोट, देवभूमि का भाग्य बदलेगा’ समेत राज्य की बदहाली दूर करने के वायदे करते हुए कई नारों का जमकर इस्तेमाल किया।

चुनाव प्रचार बंद होने के साथ ही नारों के रूप में जुबानी जंग भी अब खत्म हो गई है। दलों की नजरें इस पर टिकी हैं कि उनके नारों-वायदों पर मतदाताओं ने कितना भरोसा किया है। इसके लिए बुधवार को होने वाले मतदान पर तो नजरें टिकी हैं। दल अपने-अपने बस्तों पर भीड़ जुटने की उम्मीद भी संजोए हुए हैं। ये दीगर बात है कि घोषणाओं, नारों, वायदों का मतदाताओं पर कितना असर हुआ, ये चुनाव नतीजों के बाद ही पता चल सकेगा।

Related Articles

Back to top button