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ऐसा गांव जहां इस दिन गणगौर विसर्जन करने से है आग लगने का डर

(चूरू).

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सुहागिनों के पर्व गणगौर पर शुरू हुए पन्द्रह दिवसीय गौरी पूजन का समापन चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया की शाम यहां के सुभाष चौक में गौर-ईसर की सवारी निकालने के साथ होगा। गौर ए गणगौर माता खोल ए किंवाड़ी… के साथ शुरू गौरी पूजन में नवविवाहिताएं तथा किशोरियों ने सामूहिक रूप से भाग लिया।

दुर्गादत्त शर्मा  ने बताया कि यहां गौर-ईसर की सवारी निकालने की परम्परा रजवाड़ों के जमाने से चली आ रही है। यहां डांगिया बैद, बिनायकिया, पुरोहितों व मेघवालों की एक-एक गौर तथा ईसर के साथ सेवगों की तीन गौर वर्षों से निकाली जाती रही है। उन्होंने बताया कि सेवगों के ईसर-गौर वर्षो पूर्व लक्ष्मीनाथजी के मंदिर में चढ़ाये गए बताए जाते हैं। उनका कहना है कि मेले में ईसर के साथ बिनायकिया व पुरोहितों की गौर नहीं आती है। ईसर इन्हें निर्धारित स्थान पर दर्शन देने जाते हैं।

दुर्गादत्त शर्मा ने बताया कि दुधेडिय़ा परिवार की गौर को पहनाए गए गहने व श्रृंगार को लूटने के लिए करीब 65 वर्ष पहले लुटेरों ने मेले के दिन बाजार में धावा बोल दिया था परन्तु लोगों की सजगता से लूट नहीं हो सकी। उन्होंने बताया कि एक जमाने में चोयला जाट, हिरावत व दुधेडिय़ों की भी गौर निकलती थी जो अब नहीं निकलती है। मेघवालों की गौर निकलना यहां की एक बड़ी विशेषता है। गणगौर के दिन गौर-ईसर के दर्शन करने बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां सुभाष चौक में मेले के रूप में एकत्रित होते हैं।

गौर ईसर के साथ अगुणे कुएं के चक्कर लगाकर फेरे लेती हैं। यहां गणगौर मंगलवार को विसर्जित नहीं की जाती है। लोगों का कहना है कि वर्षों पूर्व एक दफा मंगलवार को गौर का विसर्जन कर देने से गांव पाटे उतर गया था यानि गांव में अग्निकाण्ड हो गया। तब से मंगलवार को गौर का विसर्जन नहीं किया जाता है। करीब चार-पांच साल पहले मंगलवार को गणगौर का मेला था, लेकिन पुरानी मान्यता के चलते मंगलवार की बजाय अगले दिन गणगौर विसर्जित की गई।

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