दस्तक-विशेषस्वास्थ्य

ऐसे दूर करें तनाव

akhilesh singh
अखिलेश सिंह ‘चंदेल’

संगीत का अच्छा प्रभाव प्रकृति और मनुष्य पर पड़ता है, यह तथ्य बहुत पुराना है। हजारों वर्ष पहले उपनिषदों में राग-चिकित्सा का उल्लेख है। संगीत के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक असर के कारण पुराने समय में भजन, गायन व वाद्य यंत्रों का मंदिरों में चलन हुआ था। इसके अलावा मंत्रों का भी मनुष्य पर अद्भुत आध्यात्मिक प्रभाव पड़ता है। उसके पूरे शरीर में आनन्द ही आनन्द छा जाता है। तानसेन व बैजू बावरा श्रेष्ठ संगीतज्ञ थे और उनके संगीत में इतनी शक्ति थी कि दीपक राग से दिये जल जाते थे व मल्हार राग से मेघ बरस जाता था। व्यक्ति अपने सुख-दुख भूलकर उसमें मग्न हो जाता था। आज के वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि संगीत से एकाग्रता बढ़ती है। आप कोई भी कार्य कर रहे हों और धीमे-धीमे संगीत की धुन बज रही हो, तो उस काम को और अच्छी तरह से सम्पन्न कर सकते हैं। भगवान कृष्ण बॉसुरी बजाते थे और उनकी बॉसुरी की धुन सुनकर गोपियां भागी चली आती थीं, पशु-पक्षी इकट्ठे हो जाते और सब बॉसुरी की धुन में मोहित हो जाते थे। संगीत की शक्ति अपरम्पार है, यह हमारे ऋषि-मुनियों और धार्मिक गुरुओं ने हजारों वर्ष पहले ही समझ लिया था। पुराने समय में संगीत का लाभ स्वत: ही मिल जाता था, रोग अपने आप ठीक हो जाते थे, लेकिन वैज्ञानिक ढंग से इसका प्रयोग रोगों को ठीक करने में बीसवीं सदी में ही शुरू हुआ है। पहले इसकी भागमभाग, चिन्ता व मनोकायिक उथल-पुथल नहीं थी और न इतने रोगों की बाढ़ थी। आज संगीत-विज्ञान की रोगों के उपचार के लिए शोध हो रही है। अत: विभिन्न रोगों में रागनियों, विभिन्न वाद्य-यंत्रों की आवश्यकता खोज ली गयी है। यहां तक कि विदेशों में विभिन्न रोगों को दूर करने की टेप व सी.डी. दुकानों में मिलती है। इसके अलावा अन्तर्ताना (इण्टरनेट) पर इन्हें प्राप्त कर सकते हैं। गायन के लाभ के लिए यह जरूरी नहीं कि आपको गाना या वाद्य-यंत्र बजाना आता हो, इसका लाभ सुनने से भी प्राप्त किया जा सकता है।
musicआधुनिक शोधों से ज्ञात हुआ है कि ध्वनि हमारे रोग-प्रतिरोधी प्रणाली को मजबूत कर शरीर में दर्द निवारक हार्मोन्स का रिसाव (न्यासर्ग स्राव) बढ़ाती है। हृदय गति व श्वसन प्रक्रिया को धीमा करती है तथा तनाव से मुक्ति दिलाती है। वैज्ञानिक कहते हैं कि ध्वनि के साथ हम चेतना की उस स्थिति में पहुंच जाते हैं जहां हमारा जीवन शान्त होता चला जाता है और ध्यान लगने लगता है। वैज्ञानिक सलाह देते हैं कि वाद्य-यंत्र को धीमी गति से सुनते जाइये। मन उस ध्वनि, लय व वाईब्रेशन (प्रदोलन) पर लगाना चाहिए, फिर कुछ समय पश्चात आप पायेंगे कि आपका मन शान्त हो रहा है तथा आपका मानसिक संतुलन ठीक हो रहा है। आपका रोम-रोम प्रफुल्लित हो रहा है और आप सब चिन्ताएं भूलकर आनन्द में मन को केन्द्रित कर बैठे हैं। बस, यही संगीत चिकित्सा है।
संगीत-चिकित्सा में लय व ताल से शरीर में बिगड़े संतुलन को बसाने की कोशिश होती है। विभिन्न रोगों के लिए विभिन्न बारम्बारता (फ्रीक्वेंसी) का प्रयोगस किया जाता है। वैज्ञानिकों ने पाया कि संगीत तरंगों के कारण रक्त का बहाव बढ़ जाता है। अब ऐसी मशीनें आ गयी हैं जो ध्वनि तरंगें उत्पन्न कर सकती हैं और इसका इलाज में प्रयोग किया जा सकता है। इसी को उपधातिक पद्धति (टोमासिक मेथड) का नाम दिया गया है। फिनलैण्ड में तो ध्वनि चिकित्सा कम्प्यूटर से भी होने लगी है। वहां ऐसी कुर्सी बनायी गयी है जिसमें छोटे-छोटे स्पीकर (ध्वनि यंत्र) लगे हैं। इस पर बैठकर रक्तचाप कम किया जा सकता है और समस्त तनाव दूर किये जा सकते हैं।
जोड़ों के दर्द में संगीत का प्रभाव
वैज्ञानिक शोध से पाया गया है कि ध्वनियां अगर सही ढंग से प्रयोग की जायें तो हमें बहुत सारे रोगों से मुक्ति मिल सकती है, साथ ही हम भविष्य में भी रोगों से बचे रहते हैं। फिजियो थेरेपी (भौतिक चिकित्सा) में भी साउण्ड थेरेपी (ध्वनि चिकित्सा) का प्रयोग होता है। इसमें जोड़ों का दर्द, जलन तथा मांसपेशियों का दर्द दूर करने में काफी सफलता मिलती है। ध्वनि-चिकित्सा मांसपेशियों, जोड़ों, नसों की परेशानी लिगामेण्ट (उपस्थित, हड्डियों के आसपास के स्नायुओं से संबंधित) की परेशानी में काफी लाभदायक मानी जाती है। पीठ का दर्द, फाईब्रोसिल (तन्तुक), साइटिका का दर्द आदि में भी इससे लाभ मिलता है। चिकित्सकों का कहना है कि विमन्दित लोगों को जल्दी सामान्य करने के लिए संगीत का उपयोग एक नयी पहल है। मद्धिम संगीत का सीधा असर दिमाग की सोयी हुई कोशिकाओं पर होता है। इससे मरीज मानसिक तनाव व असंतुलन की स्थिति से जल्दी उबर जाता है। इसकी महत्ता पर प्राचीन आयुर्वेद ग्रंथों में भी वर्णन मिलता है। तनाव में रहने वाले मरीजों के लिए संगीत एक दवा का काम करता है। वाद्य-यंत्र जैसे ढपली, घंटा-घंटियों, शंख, बॉसुरी वादन से न सिर्फ मन की शान्ति प्राप्त होती है बल्कि इनसे अस्थि संबंधी रोगों में भी लाभ मिलता है। ढपली बजाने से सदमा कम करने में सहायता मिलती है तथा तनाव दूर होता है। घंटा बजाने से अस्थि संबंधी रोगों में लाभ होता है। घंटियां बजाने से वातावरण की नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है। मल्जीरा उपयोग करने से ध्यान करने में सुविधा होती है। शंख बजाने से श्वास यंत्र का इतना व्यायाम हो जाता है कि इससे संबंधित परेशानी अपने आप दूर होकर सकारात्मक ऊर्जा आती है। बॉसुरी से मन को शान्ति मिलती है तथा तनाव, अवसाद आदि मन संबंधित रोगों में काफी लाभ होता है।
music_1संगीत चित्सिा का महत्व इसलिए भी है कि अधिकांश बीमारियों में शारीरिक कारण कम और मनोकायिक कारण ज्यादा होते हैं। प्राय: 80 प्रतिशत बीमारियों में मनोकायिक कारण होते हैं। इसके लिए मानसिक शान्ति एवं सकारात्मक विचार उपचार के लिए आवश्यक है। ये दोनों चीजें संगीत चिकित्सा द्वारा आसानी से प्राप्त होती हैं। अगर किसी को माइग्रेन (अद्र्धकपारी) है तो मोहना राग से दूर हो सकता है। खाने से पहले मोहना राग तीन बार सुनने से माइग्रेन में लाभ मिलता है। आज बहुत से अस्पतालोंं में म्यूजिक थेरेपी (संगीत चिकित्सा) का समवेश किया गया है। खाने के पोषण के साथ रोगों का पोषण भी रोगी को ठीक करने में बहुत सहायक होता है। इसके साथ ही साथ विभिन्न राग विभिन्न समयों के लिए प्रयुक्त होता है। सुबह, दोपहर, शाम के अलग-अलग राग हैं, जो उस समय शान्ति व रोगों को ठीक करने के लिए निश्चित है। शुद्ध संगीत में भक्ति रस, वीर रस, आदि अनेक रस उत्पन्न होते हैं। भक्त्िरस के लिए मीरा के गीत प्रसिद्ध हैं। वीर रस के अनेक उदाहरण इतिहास में मिलते हैं। वीर रस की धुन बजायी जाती है। इसके कारण सैनिकों में फिर वीरता जाग्रत हो जाती है और वे युद्ध में विजय प्राप्त कर लेते हैं। भगवान महावीर का उपदेश-प्रवचन मालकोश में होता था। उनके समवसरण में आने वाले प्राणी (मनुष्य व पशु) सभी अपने जातिगत वैर को भूल जाते थे। सिंह और बकरी में एक साथ रहने पर भी वैर नहीं जागता था। यह देखा गया है कि अमृतवार्षिणी राग से वर्षा एवं नीलाम्बरी राग से आराम व सावेरी राग से पाचन में सहयोग मिलता है। मंत्रों द्वारा रोगों की चिकित्सा करने की परम्परा काफी पुरानी है। शब्दों का अपना प्रभाव होता है और उनका भिन्न-भिन्न उच्चारण ध्वनि विशेष के साथ मन की एकाग्रता के साथ किया जाता है। ये शरीर और मन को प्रभावित कर रोगों को मिटा देते हैं। मां की लोरी सुनने से बच्चे का रोना रुक जाता है और उसे नींद आ जाती है। जब हम भक्ति के रस के गायन को सुनते हैं तब हमें यह एक आत्मिक आनन्द की अनुभूति देता है। अच्छा संगीत शरीर व मन दोनों पर असर डालता है और बीमारियों के उपचार में सहयोग करता है।
संगीत का प्रभाव केवल मनुष्य पर ही नहीं अपितु पशु-पक्षी तथा वनस्पति पर भी होता है। दूध देने वाले पशुओं का संगीत सुनने से दूध बढ़ जाता है। इसी प्रकार पौधे तथा वृक्ष भी शीघ्र पुष्पित और फलित हो जाते हैं। इसी प्रकार संगीत की अन्य चिकित्सा प्रणालियों का पूरा सहयोग लेते हुए रोग को ठीक करने में वे असरदार प्रभाव डालती हैं। विज्ञान में रिजोनेस का सिद्धांत बहुत प्रसिद्ध है। यह ध्वनि की आवृत्ति पर आधारित है। किसी बड़े पुल पर अगर सेना कार्य करती है तो पुल व मार्च की आवाज की बारम्बारता (फ्रीक्वेंसी) अगर एक हो जाती है तो पुल कितना ही मजबूत हो, धराशायी हो जायेगा। इसलिए पुल पर सेना का मार्च पास्ट नहीं होता। उसी सिद्धांत पर अगर शरीर की बारम्बारता व संगीत बारम्बारता एक या आसपास होने पर अपरिमित आनन्द का आभास होगा। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि संगीत सुनिये और स्वस्थ रहिये। विश्व के अधिकांश मनोचिकित्सक इस बात पर बल देते हैं कि निराशा, तनाव एवं परेशानी में यदि इच्छानुसार संगीत सुन लिया जाये, तो सिरदर्द से मुक्ति मिल जाती है। दिमाग तरोताजा रहता है। दिमाग की नसों में खिंचाव दूर होता है। अमेरिका में अधिकांश डाक्टर ऑपरेशन के दौरान वाकमैन के माध्यम से संगीत सुनते हैं, इससे उनके कार्य की प्रभावशीलता में वृद्धि होती है। हम कह सकते हैं कि संगीत मनुष्य की भावनात्मक इच्छाओं की पूर्ति करता है। इससे आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति होती है। ’

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