कुशीनगर में पर्यटन आश्रित 500 लोगों पर कोविड की मार
कुशीनगर: बुद्ध की निर्वाणस्थली कुशीनगर में पर्यटन से जीविका चला रहे लगभग 500 से अधिक कर्मी इन दिनों बेहाल है। संकट टलता न देख ये लोग नया काम धंधा ढूंढने में लगे हैं। यह स्थिति गत वर्ष से ही है। पर्यटन क्षेत्र में गाइड, वेटर, कुक, अस्टिटेंट, एकाउंटेंट, सफाईकर्मी, ट्रैवेल एजेंट, ड्राइवर आदि को रोजगार मिला है।
आर्ट एन्ड क्राफ्ट समेत पर्यटन पर आश्रित रेहड़ी दुकानदारों की आजीविका भी पर्यटन पर ही आश्रित है। विदेशी पर्यटकों के न आने से बौद्ध विहारों की दिखने वाली हलचल भी गायब है। कुशीनगर में तीन थ्री स्टार होटल और राजकीय होटल पथिक निवास के अतिरिक्त दर्जन भर से अधिक स्टार फ्री होटल के अलावा 10-15 रेस्टोरेंट स्थित हैं। स्टार होटलों में औसत 50 कर्मचारी कार्यरत हैं। अन्य होटल/रेस्टोरेंट में 05-15 कर्मचारियों को रोजगार मिलता है। कोविड के प्रकोप का दौर शुरू होते ही सभी का व्यवसाय मंद पड़ने लगा तो मालिकान ने कर्मचारियों की छुट्टी कर दी।
पथिक निवास चूंकि सरकारी होटल है। ऐसे में वहां छटनी तो नहीं हुई किन्तु दैनिक मजदूरी पर जो लोग कार्यरत थे, वह हटा दिए गए। पर्यटक आने बन्द हुए दो दर्जन की संख्या में कार्यरत गाइड बेरोजगार हो गए। दुकानदारों का व्यवसाय भी ठप पड़ गया। दुकानदार तो जैसे तैसे गुजर कर रहे हैं लेकिन गाइड व होटल/रेस्टोरेंट कर्मियों को वैकल्पिक रोजगार ढूंढना भारी पड़ रहा है। कोविड का प्रकोप थमने तक पर्यटन पटरी पर आता नहीं दिख रहा। ऐसे में पर्यटन में स्किल्ड लोग बेहाल है और रोजगार के लिए मारे मारे फिर रहे हैं।
घर बैठने को मजबूर गाइड
गाइड वीरेन्द्र मिश्र ने बताया कि, गाइडों की कमाई का सबसे बड़े श्रोत बौद्ध सर्किट में आने वाले विदेशी पर्यटक हैं। 18 माह से विदेशी पर्यटकों का आगमन बन्द है। ऐसे में गाइडों की जीविका पर संकट गहरा गया है। गाइड घर बैठने को मजबूर हो गए हैं।
कोविड के खात्मे तक सुधार नहीं
रायल रेजीडेंसी के महाप्रबंधक पंकज कुमार सिंह का कहना है कि जब तक कोविड महामारी पूरी तरह खत्म नहीं हो जाती तब तक पर्यटन क्षेत्र का पटरी पर आना सम्भव नहीं है। ऐसे में कर्मचारियों के पास जीविका के लिए वैकल्पिक रोजगार ढूंढना मजबूरी बन गई है।
बड़े शहरों की ओर रुख
सहायक प्रबंधक विनय कुमार ने बताया कि पर्यटन से बेरोजगार हुए स्टाफ में से अधिकांश बड़े शहरों की ओर रुख कर लिए है। जिनके पास खेती बारी है या कोई पैतृक रोजगार है तो उसमें व्यस्त हो गए हैं। सभी को पर्यटन के जल्द पटरी पर आने की आस है।
बौद्ध भिक्षु भी परेशान
भन्ते अशोक बौद्ध भिक्षु ने बताया कि विदेशी पर्यटकों को छोड़िए, देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले भारतीय पर्यटक भी डेढ़ साल से नहीं आ रहे। पर्यटक के दान पर बौद्ध विहारों की व्यवस्था निर्भर है। कोविड के प्रकोप का सामना बौद्ध भिक्षुओं को भी करना पड़ रहा है।