दस्तक-विशेष

‘कोड ऑफ कंडक्ट’ को सभी करें ‘फालो’

साक्षात्कार : अलोक रंजन

alok ranjanमृदुभाषी, हंसमुख, जो फरियाद लेकर आये कभी खाली और उदास न जाये कुछ ऐसी विशिष्टताओं के धनी हैं देश के सबसे बड़े प्रदेश के प्रशासनिक मुखिया जिन्होंने 31 मई 2014 से यूपी के मुख्य सचिव की कमान संभाली। सकारात्मक सोच के व्यक्ति उन्हें बहुत कम लोगों ने आपा खोते देखा होगा। शासन में बड़े स्तर पर होने वाली बैठकों में शामिल होने वाले अधिकारियों एवं कर्मियों को वे बड़े शांत भाव से सुनते हैं और फिर अपनी राय देते हैं। उनकी कार्य प्रणाली को देखकर सभी सम्मोहित हो जाते हैं। सुबह से जो बैठकों का दौर शुरू होता है वह देर शाम तक जारी रहता है। इस बीच एक घण्टे का समय उन्होंने आगंतुकों के लिए भी निर्धारित कर रखा है। इस दौरान जो भी चाहे उनसे मिल सकता है। 1978 बैच के आईएएस अधिकारी श्री रंजन देहरादून में नौ मार्च 1956 में जन्मे लेकिन बाद में उन्होंने राजधानी लखनऊ के ही लॉ मार्टीनियर कालेज से अपनी पढ़ाई की और उच्च शिक्षा सेंट स्टीफेन कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से हासिल करने के बाद आईआईएम, अहमदाबाद से एमबीए भारतीय प्रशासनिक सेवा में चौथी रैंक हासिल करने वाले आलोक रंजन आईएएस बनने के बाद से निरंतर सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए। व्यस्ततम दिनचर्या होने के बावजूद उन्होंने ‘दस्तक टाइम्स’ के समाचार संम्पादक जितेन्द्र शुक्ला के साथ बातचीत का समय निकाला। उसके प्रमुख अंश-

सुबह से शाम तक आप व्यस्त रहते हैं, ऐसे में शरीर को स्वस्थ रखने के लिए क्या कुछ समय दे पाते हैं?
व्यस्ततायें तो बहुत रहती ही हैं लेकिन यह सब काम ठीक से होते रहे, इसके लिए शरीर भी देखना पड़ता है। सुबह जब थोड़ा फुर्सत के क्षण होते हैं तो नियमित रूप से ध्यान व योग आदि करता हूं।

इतने व्यस्त होने के बावजूद पता चला है कि आपने कोई किताब भी लिखी है?
हां, एक नहीं बल्कि दो किताबें लिखी हैं। लेकिन ये दोनों अभी यानि मुख्य सचिव बनने के बाद नहीं बल्कि पहले लिखी थीं। दरअसल मैं जब आईएएस सेवा में आया और उप्र के पांच जिलों, गाजीपुर, बांदा, गाजियाबाद, आगरा व इलाहाबाद का जिलाधिकारी रहा तो मुझे यह महसूस हुआ कि अधिकारी को फील्ड में प्रैक्टिकल ट्रेनिंग की कोई व्यवस्था नहीं थी। अपने विवके से गुण दोष के आधार पर निर्णय लेना होता था। तब मैनें ‘द कलेक्टर टुडे’ शीर्षक से एक किताब लिखी थी। इसका उद्देश्य आने वाले अधिकारियों को उन विषयों से अवगत कराना था जो जिलों में प्राय: सामने आते हैं। उसके बाद मैंने अपने अनुभवों के आधार पर साक्षरता पर ‘टूवड्र्स एडल्ट लिट्रेसी इन इण्डिया’ शीर्षक से दूसरी किताब लिखी। इसके अलावा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए लेख भी लिखे।

मुख्य सचिव की भूमिका में आप अपने को कहां पाते हैं?
देखिए, मुख्य सचिव का काम नेतृत्व प्रदान करने और अधिकारियों को सहयोग प्रदान करने का होता है। साथ ही यह सुनिश्चित करना होता है कि शासन की नीतियों को कैसे अमलीजामा पहनाया जाये। इसीलिए बैठकें कर विभिन्न विभागों के अधिकारियों को आवश्यक दिशा-निर्देश देता हूं।

यह देखने में आया है कि विभिन्न योजनाओं और विषयों को लेकर बैठकें तो बहुत होती हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर वैसे परिणाम नहीं आ रहे हैं, जैसी कि अपेक्षा होती है?
नहीं, ऐसा नहीं है। जिलों से अच्छा ‘रिस्पांस’ मिल रहा है। सरकार की प्राथमिकताओं को जमीनी स्तर तक पहुंचाने के काम में फील्ड में तैनात अधिकारी जुटे हुए हैं। दरअसल, उप्र बहुत बड़ा प्रदेश है, 75 जिले हैं। अब इन सभी जिलों में एकरूपता तो संभव नहीं है, क्योंकि हर जिले में अधिकारी अलग-अलग हैं। सबकी कार्यक्षमता और कार्यशैली अलग-अलग है लेकिन बावजूद इसके जमीनी स्तर पर बहुत काम हो रहा है। अधिकांश जिलों जैसे लखनऊ, आगरा, फिरोजाबाद आदि से तो बहुत परिणाम आ रहे हैं।

केन्द्र में नयी सरकार बनने के बाद से कुछ केन्द्रांश मिलने में समस्या आ रही है?
दरअसल, भारत सरकार ने राज्यों को धन देने के तौर तरीकों में बदलाव किया है। जिसके कारण उप्र को नौ हजार करोड़ रुपयों का नुकसान भी हुआ है। भारत सरकार को अपनी इस चिंता से मुख्यमंत्री व मेरे स्तर से बकायदा अवगत भी करा दिया गया है। पत्राचार भी हुए हैं और बैठकें भी। इस समस्या का भी समाधान निकलेगा।

क्या जीएसटी को लेकर भी कोई समस्या है?
समस्या तो थी लेकिन अब भारत सरकार ने जीएसटी के कारण राज्यों को होने वाले नुकसान की भरपाई का वायदा किया है। यदि ऐसा होता है तो जीएसटी को लेकर कोई दिक्कत नहीं है।
सूबे के राज्य कर्मचारियों में बड़ा रोष है और वे आन्दोलित हैं, आखिर क्यों?
दरअसल, राज्य कर्मचारियों की कुछ दिक्कतें हैं। मैनें सभी विभागों के प्रमुख सचिवों, विभागाध्यक्षों, मण्डलायुक्तों एवं जिलाधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि कर्मचारी संगठनों की मांगों पर नियमित रूप से बैठकें आयोजित कर सेवा संवर्गों की समस्याओं एवं कठिनाइयों के सम्बन्ध में संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाते हुये उनका निराकरण नियमानुसार कराना सुनिश्चित किया जाये। यह भी निर्देश दिये गए हैं कि जनपद स्तर पर सम्बन्धित विभाग के जनपदीय वरिष्ठ अधिकारी तथा मण्डल स्तर पर सम्बन्धित विभाग के मण्डलीय वरिष्ठतम अधिकारी प्रत्येक तीन माह में कम से कम एक बार अपने विभाग से सम्बन्धित सेवा संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक कर उनकी समस्याओं और उनकी कठिनाइयों पर विस्तृत चर्चा कर यथासंभव निस्तारण अपने स्तर पर सुनिश्चित करायें अथवा निस्तारण के लिए उच्च अधिकारियों को अवगत करायें।

कानून-व्यवस्था को लेकर शासन और सरकार की बहुत आलोचना होती है। क्या कहना चाहेंगे, इस संबंध में?
साम्प्रदायिक घटनाओं में कमी आयी है। कुछ एक घटनायें हुई हैं स्थानीय स्तर पर। उन्हें वहीं पर रोकने में सफलता भी हासिल हुई है। इतने बड़े प्रदेश में एक-आध घटनायें तो हो ही जाती हैं लेकिन उस पर तुरन्त एक्शन लिया जा रहा है। घटना की जांच हो रही है और दोषियों को पकड़ कर उन्हें दण्डित भी किया जा रहा है। जिलों में तैनात पुलिस अधिकारियों को भी स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि वे घटना होने पर तत्काल एक्शन लें और शीघ्र विवेचना करें। हर घटना की जांच करायी जा रही है।

सरकार की महत्वाकांक्षी योजना यानि लखनऊ मेट्रो पर आप हर दूसरे-तीसरे बैठक कर सीधी नजर बनाये हुए हैं। यह परियोजना कैसी चल रही है?
लखनऊ मेट्रो का काम बहुत अच्छा और बहुत तेजी से चल रहा है। और, जिस तरह से काम चल रहा है, उससे हम अक्टूबर से दिसम्बर 2016 के बीच कभी भी लखनऊ में मेट्रो चला देंगे।

लेकिन, अभी तो पीआईबी की अनापत्ति तक नहीं मिली है लखनऊ मेट्रो को?
हां, अभी तक नहीं मिली है लेकिन लखनऊ मेट्रो को पीआईबी की क्लीयरेंस अगस्त के पहले हफ्ते में यानि छह अगस्त को मिल जायेगी।

मुख्य सचिव के अलावा और कौन-कौन सी जिम्मेदारियां हैं आप पर?
मैं, मुख्य सचिव के साथ-साथ पिकप, यूपीएसआईडीसी तथा यूपीएफसी का चेयरमैन भी हूं। इसके अलावा इनटैक के यूपी चैप्टर का स्टेट कन्वेनर, लखनऊ मैनेजमेंट एसोसिएशन का प्रेसिडेंट, क्लब ऑफ लखनऊ का चेयरमैन तथा यूपी बैडमिंटन एसोसिएशन का एक्जीक्यूटिव प्रेसिडेंट भी हूं।

आजकल कुछ आईएएस व आईपीएस अधिकारियों का रुख बागी हो गया है?
नहीं, ऐसा नहीं है।
एक्का-दुक्का लोग बोलते हैं। इस पर मेरा सिर्फ इतना ही कहना है कि ‘कोड ऑफ कंडक्ट’ सभी को ‘फालो’ करना चाहिए।

कुछ धन की कमी होने की भी खबरें हैं?
नहीं, धन की कमी नहीं है। प्रदेश शासन अपने स्तर से बहुत धन उपलब्ध करा रहा है।

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