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कौन और क्यों बनाता है : 21वीं सदी की डायन

केंद्रीय एवं राज्य सdayanरकारों और ग़ैर-सरकारी संगठनों के लाख प्रयासों के बावजूद देश के एक बड़े तबके को अंधविश्वास ने इस कदर जकड़ रखा है कि वह सही-ग़लत की पहचान नहीं कर पाता और जाने-अनजाने अपराध की गिरफ्त में फंसता जा रहा है. यह अंधविश्वास समाज को खोखला कर रहा है और लोगों में भय पैदा कर रहा है. शिक्षा के व्यापक प्रचार-प्रसार के बावजूद ओझाओं, गुनियों एवं तांत्रिकों की पौ बारह है. वे अशिक्षित जनता के खून-पसीने की कमाई लूटकर मालामाल हो रहे हैं और लोग आपस में एक-दूसरे की जान के दुश्मन बने घूम रहे हैं.

अगस्त माह के पहले पखवाड़े में झारखंड एक बार फिर शर्मसार हुआ, जहां डायन होने और जादू-टोना करने के आरोप में सात महिलाओं समेत नौ लोग मौत के घाट उतार दिए गए. बीते 14 अगस्त की रात लोहरदगा ज़िले के हुदु गांव निवासी मना मुंडा एवं बुधराम उरांव नामक वृद्धों को आठ वर्षीय बालक सूरज उरांव का इलाज झाड़-फूंक के ज़रिये कर पाने में नाकाम रहने पर पंचायत ने उन्हें पीट-पीटकर मार डालने की सजा सुनाई. इससे पहले सात अगस्त की रात राजधानी रांची से 37 किलोमीटर दूर मांडर थाना अंतर्गत दक्षिण कंजिया मराय टोली नामक गांव में अंधविश्वासी जनता ने ओझा-गुनी के कहने पर पांच महिलाओं को पहले निर्वस्त्र किया, फिर पत्थरों एवं लाठी-डंडों से पिटाई कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया. पलामू एवं गुमला ज़िलों से भी डायन करार देकर दो महिलाओं की हत्या कर देने की खबर है. दक्षिण कंजिया मराय टोली की घटना में पुलिस ने 25 लोगों को गिरफ्तार किया है. हुआ यह कि दो अगस्त को गांव के इस्तानिस जलहा खलखो के 13 वर्षीय बेटे विपिन की असामयिक मौत हो गई. ओझा-गुनी ने बताया कि इसके पीछे गांव की एतवारिया खलखो का हाथ है. गांव में पहले हुई कुछ अन्य मौतों के लिए भी ओझा-गुनी मारी गई महिलाओं को दोषी करार दे चुके थे. नतीजतन, पंचायत बुलाकर एतवारिया, जसिंता, तेतरी, रकिया एवं मदनी को यह सजा दी गई. जसिंता एवं मदनी की उम्र क़रीब 60 वर्ष बताई जाती है. राज्य में ऐसी यह पहली घटना नहीं है. बीते 12 मई की रात नक्सल प्रभावित ज़िले सिमडेगा के कोलेबिरा थाना अंतर्गत गांव सरईपानी में दो वृद्धाओं रतनी एवं विमला को डायन बताकर मार दिया गया. रतनी के पति हौड़ा प्रधान के अनुसार, मौक़े पर बड़ी संख्या में तीर-कमान से लैस पुरुष-महिलाएं एवं बच्चे मौजूद थे. रतनी एवं विमला को सबने पहले लात-घूंसों एवं लाठी-डंडों से पीटा और फिर चट्टानों से नीचे फेंक दिया. पुलिस भी दोनों वृद्धाओं के शव बरामद नहीं कर सकी.

डायन अथवा डाकन का यह अभिशाप केवल झारखंड को नहीं डस रहा है, बल्कि इसकी गिरफ्त में देश का एक बड़ा हिस्सा है. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, तमिलनाडु, असम, पश्चिम बंगाल एवं राजस्थान के पिछड़े इलाकों से ऐसी ़खबरें आएदिन सुनने को मिलती हैं. बीती 21 जुलाई को असम के सोनितपुर ज़िले के विमाजुली गांव में 63 वर्षीय मोनी ओरांग नामक वृद्धा को दो सौ से ज़्यादा लोगों की भीड़ ने घर से बाहर निकाल कर पहले उसके कपड़े फाड़े, फिर पीटने के बाद धारदार हथियार से उसका सिर कलम कर दिया. इससे पहले बीती 11-12 जुलाई को ओडिशा के क्योंझर ज़िले में एक ही परिवार के पांच सदस्यों को अंधविश्वासी लोगों ने कुल्हाड़ी से काट डाला. मरने वालों में तीन बच्चे भी शामिल थे. हत्यारों का मानना था कि उक्त परिवार जादू-टोने में लिप्त था, जिसके चलते इलाके के बच्चे बीमार हो जाते हैं. इसी तरह बीती दो फरवरी को बिहार के बांका ज़िले के बौंसी थाना अंतर्गत सांगा पंचायत के आदिवासी बाहुल्य गांव पथरिया में एक वृद्धा और उसकी 40 वर्षीय बेटी को डायन करार देकर पहले गर्म सलाखों से दागा गया, फिर मल-मूत्र पिलाया गया और अर्द्धनग्न कर पीटा गया. बीते वर्ष 29-30 नवंबर को मध्य प्रदेश के बैतूल ज़िले के गांव रायसेड़ा में एक दलित महिला को जादू-टोने के शक में न स़िर्फ लाठियों से पीटा गया, बल्कि उसे निर्वस्त्र करके गले में जूतों-चप्पलों की माला पहना कर पूरे इलाके में घुमाया गया. उसे गांव के बाहर स्थित तालाब में तीन घंटे तक खड़ा भी रखा गया.

एक जनवरी, 2011 लेकर मार्च 2014 तक देश भर में कुल 527 महिलाएं इस अंधविश्वास का शिकार बनीं. 2011 में 240, 2012 में 119, 2013 में 160 एवं 2014 के मार्च माह तक आठ महिलाएं डायन होने और जादू-टोने के आरोप में अपनी ज़िंदगी से हाथ धो बैठीं. यह कड़वा सच स्वयं केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 25 जुलाई, 2014 को संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में उद्घाटित किया. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के सहारे मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट तो पेश कर दी, लेकिन महिलाओं पर हो रहे इस अत्याचार को रोकने के लिए उसके पास कोई ठोस योजना नहीं है. उसने इसे राज्य के तहत क़ानून व्यवस्था का मामला बताते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया. दरअसल, अशिक्षा एवं ग़रीबी के चलते लोग कोई बीमारी होने पर पहले ओझा-गुनी के पास भागते हैं. बाद में हालत बिगड़ने पर डॉक्टर या अस्पताल की शरण लेते हैं. अगर कहीं मरीज की मौत हो जाए, तो ऐसे में ओझा-गुनी जिसकी तऱफ इशारा कर दे, उसे डायन-टोटकेबाज कहकर सजा देना आम बात है. उसके बाल काटना, मल-मूत्र पिलाना, मुंह काला करके घुमाना, निर्वस्त्र कर पीटना समाज के लोग अपना धर्म-हक़ समझ लेते हैं. कभी-कभी तो सामूहिक दुराचार तक अंजाम दिया जाता है. बिहार के खगड़िया ज़िले में बेलदौर थाना क्षेत्र के गांव भरना में दबंगों ने 65 वर्षीय कौशल्या को लाठी-डंडों से पीटा और उसके आगे एक महिला का शव रखकर उसे ज़िंदा करने के लिए कहा. पीड़िता की पुत्री के मुताबिक, गांव के जंग बहादुर सिंह की बहू काफी दिनों से बीमार थी, जिसकी मौत हो गई. इसके लिए कौशल्या को ज़िम्मेदार ठहराते हुए डायन करार देकर उसकी जमकर पिटाई की गई. मा़ैके पर पहुंची पुलिस ने पीड़िता को किसी तरह मुक्त कराया. खगड़िया में एक महिला पंचायत सदस्य भी ऐसे अंधविश्वासी लोगों का शिकार बन गई. पांच लोगों ने डायन-टोनहिन कहकर पहले उसे जमकर पीटा और फिर उसकी नाक काट ली.

मुजफ्फरपुर के हथौड़ी थाना अंतर्गत गांव सिमरी में 65 वर्षीय सुशीला को उसके पड़ोसियों ने डायन बताते हुए लाठियों से इतना पीटा कि वह अधमरी हो गई. पड़ोसी की 20 वर्षीय बेटी की तबियत खराब होने का खामियाजा सुशीला को भुगतना पड़ा. दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह कि पुलिस ने सुशीला की पीड़ा सुनने के बजाय उसे दुत्कारते हुए थाने से भगा दिया. झारखंड के रांची के लापुंग इलाके में दो आदिवासी महिलाओं को डायन बताकर मौत के घाट उतार दिया गया. पुलिस ने उनमें से एक महिला की लाश बेलारी नदी के किनारे बरामद की. बंधनी मुंडाइन नामक यह महिला कई दिनों से गायब थी. पश्चिमी सिंहभूम ज़िले के झींकपानी थाना अंतर्गत गांव सोनापासी में निराशो गोप नामक महिला को डायन बताते हुए जान से मारने की कोशिश की गई. उसके भाई को भी लोहे की राड से पीटा गया. राजस्थान के उदयपुर के सलंबूर थाना अंतर्गत गांव कराकली में केशीबाई नामक वृद्धा को उसके भतीजे ने इस कदर पीटा कि अगले दिन उसकी मौत हो गई. इसी उदयपुर के गोगुंदा थाना अंतर्गत गांव सेलू निवासी 65 वर्षीय वृद्धा हगामी पर डायन होने का आरोप लगाकर उसके निकट संबंधियों ने उस पर थूका और मुंह में जूता ठूंसने का प्रयास किया. कुछ दिनों पहले उक्त वृद्धा के जेठ ओमकार के पुत्र मांगी लाल की मृत्यु हो गई थी. ओमकार का मानना था कि उसके बेटे की मौत हगामी की वजह से हुई, क्योंकि वह डायन है. राष्ट्रीय महिला आयोग केे अनुसार, देश के 50 से ज़्यादा ज़िलों में डायन प्रथा का प्रकोप है. बहुत छोटी-छोटी बातों पर किसी भी महिला को डायन या डाकन बता दिया जाता है, जैसे कुएं का पानी सूख जाना, गाय दूध देना बंद दे अथवा पड़ोस में किसी का बीमार हो जाना आदि. सवाल यह है कि डायन होने और जादू-टोने का आरोप चस्पां कर असहाय महिलाओं और वृद्धों के साथ अत्याचार का यह सिलसिला आ़िखर कब रुकेगा?

 

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