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क्या इन 40,000 मुसलमानों को भारत से निकल फेकना चाहिए?

भारत में मौजूद रोहिंग्या मुसलमानों को वापस भेजने की कवायद चल रही है. केंद्र पिछले 5-7 सालों में म्यांमार से भारत में आए और गैरकानूनी ढंग से रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों की पहचान कर रहा है. जम्मू समेत भारत के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले ऐसे लोगों को गिरफ्तार करके फॉरेनर्स एक्ट के तहत डिपोर्ट करने की योजना बन रही है. इस वक़्त लगभग 40,000 रोहिंग्या मुसलमान भारत में मौजूद हैं. टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी ख़बर के मुताबिक़ होम मिनिस्ट्री के एक सीनियर अधिकारी ने ये बताया है. ये सब लोग तीन अलग-अलग रूट से भारत में एंट्री कर गए हैं. समंदर के रास्ते, बांग्लादेश सीमा से और म्यांमार बॉर्डर के चिन एरिया से.

क्या इन 40,000 मुसलमानों को भारत से निकल फेकना चाहिए?लगभग 5500 रोहिंग्या अप्रवासी सिर्फ जम्मू में मौजूद हैं. होम मिनिस्ट्री को लगता है कि ये 10 से 11 हज़ार तक हो सकते हैं अगर सही से गिनती हो. ये एक असामान्य आंकड़ा है. यूनियन होम सेक्रेटरी राजीव महर्षि ने एक मीटिंग की जिसमें उनकी पहचान, गिरफ्तारी और डिपोर्टेशन पर चर्चा हुई. हालांकि यूनाइटेड नेशंस ह्यूमन राइट्स कमीशन ने 14,000 रोहिंग्या ‘शरणार्थी’ भारत में होने की बात कही है लेकिन एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि भारत उन्हें शरणार्थी नहीं मानता. ऐसे विदेशी मानता है, जो गैरकानूनी ढंग से भारत में रह रहे हैं.

अभी रोहिंग्या मुसलमानों को चिह्नित करने की और डिपोर्ट करने की पॉलिसी निर्धारित हो रही है. इसी बीच ये डर भी है कि इन लोगों को वापस डिपोर्ट करना आसान काम नहीं साबित होगा. क्योंकि म्यांमार इन्हें अपना नागरिक नहीं मानता. अनधिकृत बांग्लादेशी मानता है. एक तथ्य ये भी है कि रोहिंग्या मुसलमानों का किसी भी आतंकी घटना से लिंक होने की कोई बात अभी तक सामने नहीं आई है. बावजूद इसके कि लश्कर-ए-तैयबा चीफ हाफिज़ सईद ने उन्हें अपना ‘भाई’ कहा था. म्यांमार में हुई घटनाओं पर उनका समर्थन किया था.

फिर भी सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि रोहिंग्या मुसलमान भारतीय मुसलमानों से ज़्यादा आसानी से कट्टरता की तरफ आकर्षित हो सकते हैं और भारत के लिए ख़तरा साबित हो सकते हैं.

रोहिंग्या मुसलमान दुनिया में सबसे ज़्यादा सताए गए माइनॉरिटी समुदायों में से एक हैं. यूनाइटेड नेशंस के मुताबिक़ रोहिंग्या मुसलमानों के साथ हुई मानवाधिकार के उल्लंघन की घटनाओं को आसानी से ‘मानवता के खिलाफ़ गुनाह’ कहा जा सकता है. म्यांमार के राखाइन राज्य में ये लोग 15वीं सदी से रह रहे हैं. पूरे देश में करीब 8 लाख रोहिंग्या मुस्लिम हैं. बर्मा के लोग और वहां की सरकार इन लोगों को अपना नागरिक नहीं मानती है. 2015 के बाद से उनका अपने ही मुल्क में रहना मुहाल हो गया है. उन्हें भगाया जा रहा है. लाखों लोग अपने ही देश में रिफ्यूजी बन कर रह रहे हैं. कितने ही देश छोड़ के भाग गए. जहां मुमकिन हुआ शरण ले ली. भारत में भी इसी तरह से मौजूद हैं रोहिंग्या मुसलमान. 

पिछले कुछ दिनों में शरणार्थियों का मसला इंटरनेशनली चर्चा में रहा है. अमेरिका में ट्रंप की शरणार्थियों से एलर्जी तो पूरी दुनिया देख रही है. डोनाल्ड ट्रंप ने ऐलानिया तौर पर अपने मुल्क के दरवाज़े बंद कर दिए थे शरणार्थियों के लिए. वहीं सीरिया के शरणार्थियों के लिए यूरोप के अपने दरवाज़े खोल देने की मिसाल भी है सामने. देखना होगा कि भारत क्या रुख अपनाता है. उनको अधर में छोड़ देना क्रूरता होगी. ख़ास तौर से तब जब उनके जाने के लिए कोई जगह उपलब्ध नहीं. वसुधैव कुटुम्बकम का नारा देने वाला भारत क्या कर पाएगा ऐसा?

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