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क्या पाक चुनाव में महिलाओं की हुंकार से बदलेगी पाकिस्तान की तस्वीर?

पाकिस्तान चुनाव में इस बार कई तरह के बदलाव देखने को मिल रहे हैं। इसबार यह चुनाव कई मामलों में रोचक होने जा रहा है। यही नहीं महिलाओं की भागीदारी ने इसे रोमांचक बना दिया है। चुनाव आयोग ने मतदान कराने, मतदान केंद्रों तक लाने और सभी राजनीतिक दलों महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने के लिए कई कड़े कदम उठाए हैं। इसबार पाकिस्तानी नेशनल असेंबली की 272 सामान्य सीटों पर 171 महिला उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रही हैं।क्या पाक चुनाव में महिलाओं की हुंकार से बदलेगी पाकिस्तान की तस्वीर?

पिछले कुछ सालों से पाकिस्तान की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी तेजी से बढ़ी है दो साल पहले देश में हुए निकाय चुनाव में भी काफी संख्या में महिलाओं ने चुनाव में जीत दर्ज की थी। निकाय चुनावों की बदली तस्वीर ने पाकिस्तानी महिलाओं में जोश भर दिया है। यही वजह है कि इस बार के आम चुनाव इतिहास में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में महिला प्रत्याशी मैदान हैं।

यही नहीं महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए चुनाव आयोग ने सभी दलों के लिए महिला प्रत्याशियों का कोटा पांच फीसदी कर दिया है। यानी किसी भी राजनीतिक पार्टी में कम से कम 5 फीसदी महिला प्रत्याशियों को टिकट देना ही होगा। लेकिन राजनीतिक दलों ने चुनाव प्रक्रिया से महिलाओं को दूर रखने का भी काट निकाल लिया है। अपना कोटा पूरा करने के लिए सभी राजनीतिक पार्टियों ने महिला उम्मीदवार मैदान में उतारी तो हैं लेकिन बहुत चालाकी से ऐसा क्षेत्र दिया है जहां उनका कोई अस्तित्व ही नहीं है।

नवाज शरीफ की पीएमएल -एन ने 37, इमरान की पीटीआई और भुट्टो की पीपीपी ने सर्वाधिक 42 महिला उम्मीदवार उतारी हैं। चुनाव में बाहर होने से बचने के लिए अल्लाह-ओ-अकबर तहरीक जैसे कट्टरपंथी राजनीतिक दलों को भी महिलाओं को टिकट देना पड़ा है।

महिला उम्मीदवारों को टिकट दिए जाने से पाकिस्तान की तस्वीर में बदलाव जरूर दिख रहा है। इस बार रिकॉर्ड नंबर में महिलाएं चुनाव लड़ रही हैं, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या वो चुनाव जीत सकती हैं?

पाकिस्तान में मुट्ठीभर महिला प्रत्याशी ही हैं, जो चुनाव में अपने पुरुष प्रतिद्वंद्वियों को टक्कर देती हुई दिखाई दे रही। जैसे कि पीएमएल (नवाज) की प्रतिद्वंद्वी साइरा अफजल तरार, शेजरा मैनसाब और पीटीआई की गुलाम बीबी भारवाना। हालांकि इनका वजूद अपने पुरुष रिश्तेदारों की वजह से ही है। जैसे कि मेहनाज अकबर अजीज, जो पीएमएल-एन नेता दनियाल अजील की पत्नी हैं।

लेकिन महिला प्रत्याशियों के लिए चुनाव इतना आसान नहीं होने जा रहा है। सियासी दलों ने महिलाओं को ऐसी जगह से टिकट दिया है, जहां उनके सामने बड़ी बाधाएं हैं। जिन सीटों से ये महिला प्रत्याशी मैदान में हैं वहां महिला मतदाता अपने मन से मतदान तो क्या घर से बाह भी नहीं निकल सकती हैं। जैसे कि उपेर डीर सीट से पीटीआई ने हमीदा शाहिद का टिकट दिया है। इस सीट पर पिछली बार महिलाओं को एक वोट तक डालने नहीं दिया गया था। जबकि इस सीट से हमीदा को उतार कर पार्टी अपनी उपलब्धि बता रही है। पार्टी कार्यकर्ता हमीदा का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि महिला प्रत्याशी को उतारने का मतलब पार्टी का हार जाना है।

अगर पाकिस्तान के पुराने आंकड़ों पर नजर डालें तो 2013 में 272 सीटों में सिर्फ 9 महिलाएं यानी महज तीन फीसदी महिलाएं चुनाव जीतकर संसद पहुंची थीं। जबकि 61 महिलाएं रिजर्व कोटे से संसद की दहलीज पार कर पाईं थीं।

हाशिये पर महिलाओं को रखने वाले देश में 1988 में बेनजीर भुट्टो को प्रधानमंत्री बना दिया था। दो बार बेनजीर भुट्टो के प्रधानमंत्री बनने के बावजूद देश के चुनाव में महिलाओं की हिस्सेदारी न के बराबर रही है।

पिछले तीस सालों में पाकिस्तान की तस्वीर तो बदली है। महिला मतदाताओं की तादाद में भी बढ़ोतरी हुई है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार इस बार 44% महिला वोटर्स हैं। पर इनके वोट काफी कम पड़ते हैं।

दरअसल पाकिस्तान आज भी रूढ़िवादी है और यहां का समाज महिलाओं को घर से निकलने नहीं देता है। पीएमएल (एन) में ज्यादातर वरिष्ठ नेताओं जैसे कि पूर्व गृहमंत्री चौधरी निसार अली खान को भी मरियम नवाज शरीफ की लीडरशिप से परेशानी है। यहां तक की वो उन्हें नेता मानने को तैयार नहीं हैं। इस मामले में पीपीपी का नजरिया उदारवादी है। यहां फैसले लेने से लेकर टिकट देने तक में महिलाओं को सम्मान मिलता रहा है। इस बार पीटीआई भी महिलाओं को तवज्जो दे रही है।

ह्यूमन राइट्स वॉच की स्वरूप इजाज कहती हैं कि देश में महिला मतदाताओं की तुलना में 1.2 करोड़ पुरुष मतदाता अधिक हैं। 2013 के चुनाव में 1.1 करोड़ पुरुष ज्यादा थे। यह गैप बढ़ रहा है। नेशनल कमीशन स्टेटस के मुताबिक अगर 5000 महिलाओं को रोजाना नए कार्ड दिए जाएं तो भी यह गैप खत्म होने में 18 साल लगेंगे। इस तरह 49% महिला आबादी देश के सिस्टम से बाहर है।
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में मुलतान से 60 किमी दूर एक गांव है मोहरीपुर। यहां 1970 से आम चुनाव शुरू होने के बाद से अब तक महिलाओं को वोट नहीं डालने दिया गया है। रूढिवादी पाकिस्तान में महिलाओं पर ये पाबंदी पुरुषों ने लगाई थी। महिलाएं तब से आज तक इस आदेश को मानती आई हैं। लेकिन इसबार पहली बार गांव की महिलाएं मतदान के लिए निकलेंगी।

वैसे यह अतिश्योक्ति नहीं होगी अगर यह कहा जाए कि महिलाएं पिछले तीन संसदीय चुनावों में महिला सांसदों ने बेहतर प्रदर्शन किया है। पुरुष सांसदों की तुलना में महिला सांसदों ने अधिक काम किया है।
आवाम महिला उम्मीदवारों को पसंद करती है लेकिन राजनीतिक दल उन्हें आगे बढ़ने नहीं देते हैं। अभी पाकिस्तान की आबादी करीब 20.8 करोड़ है। इनमें 10.6 करोड़ पुरुष और 10.1 करोड़ महिला हैं। लेकिन रजिस्टर्ड वोटर के मामले में यह अनुपात 44:56 का है। इनमें 5.92 करोड़ पुरुष वोटर और 4.67 करोड़ महिला हैं।

महिलाओं से पुरुष मतदाता 1.25 करोड़ ज्यादा हैं। 2013 के चुनाव में यह आंकड़ा 1.1 करोड़ था। यह एक बड़ा फर्क है। और यह हाल पाकिस्तान के गांव से लेकर मॉर्डन कहे जाने वाले शहरों तक में व्याप्त है। पाकिस्तान के कराची, लाहौर फैसलाबाद जैसे शहर विकसित इलाकों में गिने जाते हैं लेकिन यहां भी महिला वोटरों के मामले में करीब पांच लाख तक का फर्क हैं।

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