चार राज्यों के चुनाव में मात्र 10 फीसद महिलाएं आजमा रही हैं भाग्य
एंजेंसी/ नई दिल्ली। भले ही पिछले कई वर्षों में भारतीय राजनीति में महिलाओं को पर्याप्त स्थान देने की बात कही जा रही हो लेकिन धरातल पर सच्चाई कुछ और ही है। अभी जिन राज्यों के विधानसभा चुनाव हो रहे हैं उनमें सिर्फ 10 फीसद महिलाएं ही चुनाव मैदान में अपनी किस्मत आजमा रही हैं।
एक तरफ जहां पश्चिम बंगाल, असम और केरल में महिला प्रत्याशियों की संख्या कमोबेश वहीं है जो पिछली बार के चुनाव में थी तो वहीं दूसरी तरफ तमिलनाडु विधानसभा चुना के अंदर इस बार महिलाओं उम्मीदवार दोगुनी यानि 6 फीसद से बढ़कर इस बार 11 फीसद है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, बंगाल में मुख्यमंत्री एक महिला है उसके बावजूद 2016 के विधानसभा चुनाव में वहां पर केवल 10 फीसद महिलाओं को ही टिकट दिया गया। जबकि, केरल में 8 फीसद महिला उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे गए थे। पिछले विधानसभा चुनाव 2011 में भी दोनों ही राज्यों में इतनी ही महिलाओं को टिकट दिया गया था, जितना अबकी बार दिया गया। जबकि, असम असम में 2011 में 8 फीसद महिलाओं को टिकट दिया गया था तो इस बार ये 9 फीसद है।
जबकि, चुनाव में महिलाओं के जीतने की बात करें तो 2011 में ये आंकड़ा बेहद निराशाजनक रहा। नेशनल एलेक्शन वॉच के मुताबिक, 2011 के विधानसभा चुनाव में इन चारों राज्यों में केवल 9 फीसद महिला उम्मीदवार ही चुनावी मैदान में सफल हो पाई।
बंगाल में 285 विधानसभा सीटों में से 33 सीटों पर महिला विजयी रही यानी 12 फीसद। जबकि, असम की कुल 126 सीटों में 14 महिला प्रत्याशी ने अपना कब्जा जमाया यानी 11 फीसद। तो वहीं तमिलनाडु की 225 विधानसभा सीटों में 16 पर महिला उम्मीदवार सफल रही यानी 7 फीसद तो केरल की 126 सीटों में 7 पर महिला प्रत्याशियों ने अपने जीत के झंडे बुलंद किए यानी 6 फीसद।
इतनी कम महिलाओं को टिकट दिया जाना वो भी तब जबकि सभी पार्टियों की तरफ से महिला मतदाताओं के महत्व को जानकर उन्हें लुभाने की पार्टियों की तरफ से जी-जान से सारी कोशिशें की जा रही है। 2014 में पहली बार महिला वोटर के महत्व को तब देखा गया जब 2009 में इनके वोटिंग 55.8 से 2014 में बढ़कर इनकी तादाद 65.6 हो गई थी। जबकि, कुल मतदाताओं की तादाद 58.2 फीसद से बढ़कर 66.4 फीसद हो गया था।