दस्तक-विशेषराष्ट्रीय

चिल्लरों की बन आई…

व्यंग्य

वीना सिंह
वीना सिंह

ट्रेन से उतरते ही उन्होने इधर – उधर नजर दौड़ाई, प्यास से गला सूखा जा रहा था। सामने से बास्केट में पानी की बोतले सजाए एक लड़का आते दिखा वे जोर देकर पानी – पानी चिल्लाए लड़के ने दौड़ कर उन्हे बोतल थमाई। वे जल्दी से बोतल का ढ़क्कन खोलकर पानी गटकने वाले ही थे कि लड़के ने कहा रुकिए साहब! पहले पैसे दीजिए फिर पानी पीजिए। वे झुंझलाएए जल्दी से पाकेट से पांच सौ का नोट निकाल कर उसे पकड़ाते हुए बड़े रौब से बोले ले रख पैसे। अब तो पानी पीने दे। वह बोला नहीं साहब यह पांच सौ आप ही रखो हमें तो बस खुले पन्द्रह रुपए ही दीजिए। उन्होने जेेबें खंगाली और कहा वो तो नहीं हैं। लड़के ने बड़ी ही बेरुखी से कहा तो पानी पीने को रहने दीजिए और उसने उनके हाथ से पानी बोतल झपट ली। क्या करते वे प्यासे के प्यासे ही रह गये।
 अचानक बड़े नोट क्या बन्द हो गए आम जिन्दगी में अफरा – तफरी मच गई। लगता है जैसे धरती हिल गई हो भूचाल आ गया हो। भई ! हमने तो केवल सत्यनारायण जी की कथा में सुना था कि नाव में भरा धन प्रभु के एक इशारे पर लता पत्रा हो गया था।  आज अपनी आंखों से देख लियाए मोदी जी के एक इशारे से देश की असीम संपदा लता पत्रा हो गई। अमीर गरीब बराबर हो गये। भई ! कब किसके दिन बहुर जाएं कुछ कहा नहीं जी सकता। बहुत कह लिया छोटू पतलू। बहुत हंस लिया छुटके नाम पर। अब देखो छुटके का जल्वा। अब छुटभइयों के दिन आ गये हैं। छुटके मुस्करा रहे है बड़के मुंह छुपा रहे हैं।  जहां काम आवै सुईए कहा करै तलवार। अब तो सुई का महत्तव पहचान लो भैया। चिंता का विषय है दुख दर्द सहना इन बड़े लोगों के बस की बात नहीं है। यह अमीरजन कम में कैसे समझौता करेंगे। कुछ के तो सोच -सोच कर हार्ड अटैक  ही हो जायेंगे। लाल – लाल नोटों के भरे गरम गद्दे पर सोते थे क्या मस्त नींद आती थी वही गद्दा अब खुरदरा लगने लगा है पीठ में खटमलों सा काटने लगा है। हाय रब्बा यह अचानक क्या हो गया ? पहले जब कभी छापा पड़ जाता था तो दीवारें नोंटों को बचा लेती थी अपने अन्दर छुपा लेती थीं पर अब क्या करे ं लगता है दीवारों में दीमक लग गया है नींब हिल गई है।
chillarजिधर देखो उघर लोग बेहाल हैं बेचारे जेब कतरे उदास हैं। एक झटके में ही बड़ी मछली फांस लेते थे। अब यह छोटी मछलियां पकड़नी पड़ेंगीए बोझा भर को तो सम्हालना ही मुश्किल हो जायेगा। पकड़े जाने का पूरा खतरा रहेगा। भई सरकार ने कुछ ज्यादा ही जल्दी कर दीए सोचने समझने का मौका ही नहीं दिया। उदास तो बाजार भी है। सजा हैए संवरा है पर खरीददार नदारद हैं। क्या करें किसी के पास चिल्लर नहीं है। सबसे बड़ा ग्रहण तो चुनाव पर लगा है।चुनाव तो इन्हे लड़ना है और उन्हे भी लड़ना है तो क्या यह चिल्ल्रों के सहारे चुनाव जीत सकेंगे। क्या यह छुटभइये चुनाव जिता पायेंगे। अब तो रामइ जानेए आगे कैसे कैसे दिन हैं आने। दिन तो अच्छे सड़क किनारे कथरी ओढ़े बैठे  भिखारियों के आ गए हैं अब वे ही पैसे वाले है। क्योकि वे छुट्टे पैसों के स्वामी हैं। सरकार ने सबकी हीरा जड़ित कथरी उतार दी है पर इनकी कथरी लाख पेबन्दों  के बावजूद भी मजबूत है। राजा खुद को रंक समझने लगे हैं और रंक राजा के रुतबे में आ गये हैं। घरों त्योहार हैं शादी मुंड़नए जनमदिन मनाना अनिवार्य है पर अकूत धन होने के बाद भी हाथ खाली हैं। घरों में नोटों की रद्दी की भरमार है। सामने वाले चुन्नू – मुन्नू बहुत खुश हैं पहले रुई वाली तकिया फेंक खेलने में रुई कमरे में फैलने पर मां की फटकार थी, अब नोटो की रद्दी भरी तकिया से खेलने में खुशी अपरंपार है।
बड़े नोट क्या बन्द हुए हर कोई यही सोच रहा है कि मेरे पास तो इतने ही हैं जिनके पास बहुत हैं उन पर क्या बीती होगी। सच है दूसरे के दुख को देख कर ही इंसान सबर  करता है। ऐसे में लोग इसी गाने को गुनगुनाते है- दुनियां में कितना गम है मेरा गम कितना कम है। भइया हम तो सबके बारे में सोच – सोच कर आधे हुए जा रहे हैं। कोई हमारे बारे में भी तो सोचो। हमारे पास तो सौ सौ के दो ही नोट है आखिर कब तक काम चलाएंगे।

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