उत्तर प्रदेशलखनऊ

जनवरी से पहले नहीं हो पाएगा यूपी के भाजपा अध्यक्ष का चुनाव

lakshmikant-55d8bc1a8ef20_exlstग्राम प्रधानी चुनाव की दिलचस्पी ने भाजपा के संगठनात्मक चुनाव को भंवर में उलझा दिया है। इसके चलते संगठनात्मक चुनाव निर्धारित समय सारिणी से काफी पिछड़ गए हैं।

स्वाभाविक है कि प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव अब जनवरी से पहले हो पाना मुश्किल है। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार, भाजपा की बूथ कमेटियों के चुनाव अब तक हो जाने चाहिए थे। पर, स्थिति यह है कि 25 प्रतिशत कमेटियों का भी चुनाव नहीं हो पाया है।

बूथ कमेटियों के चुनाव में देरी स्वाभाविक रूप से मंडल और जिला कमेटियों के चुनाव को प्रभावित किए बिना नहीं रहेगी। प्रदेश में लगभग 1.40 लाख बूथ हैं। भाजपा ने लगभग 1.12 लाख बूथों पर पार्टी की सदस्यता कराई है।

पार्टी के चुनाव अधिकारी डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय ने बूथ कमेटियों के चुनाव 20 नवंबर तक करा लेने का लक्ष्य रखा था, पर प्रधानी के चुनाव के रंग में डूबे पार्टी कार्यकर्ताओं ने संगठन से पहले ग्राम पंचायत चुनाव को तवज्जो दी। इसके चलते ज्यादातर जगहों पर बूथ कमेटियों के चुनाव की प्रक्रिया शुरू ही नहीं हो पाई है।

मंडल व जिला चुनाव पर भी ग्रहण : जब बूथ कमेटियों के ही चुनाव नहीं हो पाए हैं तो मंडल (ब्लॉक या वार्डों के समूह पर बनी इकाई) अध्यक्षों और जिला अध्यक्षों के चुनाव होना तो दूर की बात है। मंडल कमेटियों के चुनाव 30 नवंबर तक पूरे हो जाने थे।

संगठनात्मक लिहाज से प्रदेश में भाजपा की लगभग डेढ़ हजार मंडल इकाइयां हैं। इतनी जल्दी इन सभी स्थानों पर चुनाव हो पाना मुश्किल है। भाजपा नेता भी मानते हैं कि जब तक ग्राम प्रधान के चुनाव नहीं हो जाते, तब तक संगठन के चुनाव की रफ्तार तेज हो पाना काफी मुश्किल है।

पार्टी संविधान की औपचारिकता भी पूरी होनी मुश्किल : पार्टी ने 10 दिसंबर तक प्रदेश में जिलाध्यक्षों का चुनाव करा लेने का फैसला किया था, पर मंडल कमेटियों के चुनाव में देरी जिलाध्यक्षों के चुनाव को भी प्रभावित करेगी।

पार्टी संविधान के अनुसार, जब तक किसी जिले में आधे से अधिक मंडल नहीं गठित हो जाएंगे, तब तक उस जिला के अध्यक्ष का चुनाव नहीं हो सकता। कारण, मंडल कमेटियों के सदस्य ही जिला अध्यक्ष के चुनाव में मतदाता होते हैं।

इसी तरह जिला अध्यक्षों का चुनाव हुए बगैर प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकती क्योंकि जिला अध्यक्षों के चुनाव के साथ ही प्रांतीय परिषद के सदस्यों का चुनाव होता है।

यही प्रांतीय परिषद के सदस्य प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव करते हैं। प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव तभी हो सकता है जब आधे से अधिक जिलों के अध्यक्षों का चुनाव हो जाए। साफ है कि प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव जनवरी से पहले हो पाना काफी मुश्किल है।

 

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