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जब नाना पाटेकर ने धीरे से बोलकर भी सबके बीच ‘दहशत’ फैला दी…

nana630एजेन्सी/ थ्री डी का चश्मा पहनकर ‘जंगल बुक’ देखते वक्त जब शेर ख़ान पहली बार पर्दे पर आता है और नाना पाटेकर की आवाज़ कानों में पड़ती है तब थोड़ी देर के लिए ही सही आप दहशत में आ जाते हैं। शेरख़ान के रूप में नाना की आवाज़ उतनी ही दमदार लगती है जितनी 80 के दशक में टीवी पर आने वाली ‘जंगल बुक’ सीरिज़ में लगती थी। उन्हें सुनकर लगता है कि वाकई में शेर कभी बूढ़ा नहीं होता। सिर्फ नाना ही नहीं, 8 अप्रैल को रिलीज़ हुई जंगल बुक के हिंदी वर्ज़न में सभी कलाकारों की आवाज़ों ने फिल्म में इतनी जान डाल दी है कि फिल्म की बॉक्स ऑफिस कमाई में मूल अंग्रेज़ी संस्करण से ज्यादा बड़ा योगदान डबिंग वर्ज़न का है।

फिल्म समीक्षक कोमल नाहटा ने अपनी एक समीक्षा में बताया है कि पिछले शुक्रवार रिलीज़ हुई जंगल बुक ने शुरूआती तीन दिन में कुल 40.19 करोड़ की कमाई की है। इस कलेक्शन में जहां 48 प्रतिशत योगदान मूल अंग्रेजी संस्करण का रहा है, वहीं 52 प्रतिशत हिस्सा डबिंग वर्ज़न से आया। कोमल के मुताबिक ऐसा कम ही होता है कि हॉलीवुड फिल्मों के मामले में अंग्रेज़ी से ज्यादा कमाई उसका हिंदी संस्करण करे।


पंजाबी भालू और गंभीर बघीरा
फिल्म के हिंदी संस्करण में जिस तरह अलग अलग कलाकारों की आवाज़ों ने रंग बिखेरा है, उससे वाकई में नाहटा के इस दावे को बल मिलता है। शेरख़ान के अलावा पंजाबी ‘बल्लु’ भालू की आवाज़ में इरफान ख़ान जो मस्ती लेकर आए हैं, उसे सुनकर एक बार फिर आप ख़ान की कला के मुरीद हो जाएंगें। बघीरा की आवाज़ में गंभीरता लाने का काम ओम पुरी ने बखूबी निभाया हैं, वहीं चंद मिनटों के लिए ‘का’ नाम की पायथन की आवाज़ में प्रियंका चोपड़ा सम्मोहित कर देती हैं। जंगल बुक के हिंदी संस्करण की डबिंग निर्देशक मोना शेट्टी ने एनडीटीवी से बातचीत में इस सफलता का श्रेय फिल्म के हिंदी वर्ज़न के लिए संवाद लेखक मयूर पुरी को दिया। शेट्टी कहती हैं ‘मयूर ने जिस तरह किरदारों का, जोक्स को, परिस्थितियों को भारतीय परिवेश में बदला, उससे डबिंग के बावजूद फिल्म का कलेवर बरक़रार रहा।’

बॉलीवुड फिल्मों के लिए गीत और संवाद लिखने वाले मयूर पुरी ने अंग्रेजी वेबसाइट फर्स्ट पोस्ट से एक बातचीत में कहा था कि वह फिल्म को दर्शकों के लिए एकदम साधारण और दिलचस्प बनान चाहते थे। मयूर ने बल्लू भालू का उदाहरण देते हुए कहा ‘बल्लू को शहद बहुत पसंद है। किसी भी पंजाबी की तरह उसे भी अच्छे खाने और अच्छी जिंदगी से प्यार है। उसके इसी लहज़े और सोच को अनुवाद के दौरान भी जिंदा रखना जरूरी था। इसलिए हिंदी वर्ज़न एक तरह से ट्रांस-क्रिएशन है, महज़ ट्रांसलेशन नहीं।’


हिंदी वर्ज़न की सफलता के बाद मोना के पास बधाई संदेशों की लाइन लगी हुई है। मुंबई में अपना डबिंग स्टूडियो चलाने वाली मोना इस सफलता का श्रेय कलाकारों को भी देती हैं। मोना के मुताबिक फिल्म इंडस्ट्री के इन दिग्गजों से डबिंग करवाना उनके लिए मुश्किल नहीं रहा क्योंकि इरफान से लेकर प्रियंका तक सभी कलाकार इस डबिंग को बेहतर बनाने की कोशिश में लगे थे। बल्लू भालू का उदाहरण देते हुए शेट्टी बताती हैं कि किस तरह इरफान ने कई पंजाबी संवादों को रिकॉर्डिंग के दौरान बिना किसी तैयारी के ही बोल दिया। हालांकि शुरूआत में एक पंजाबी भालू का किरदार निभाने से इरफान थोड़ा हिचकिचा रहे थे क्योंकि फिल्मों में उन्हें किसी पंजाबी किरदार में कम ही देखा गया है। लेकिन इरफान ने साफ कर दिया था कि वह बल्लू की आवाज़ देंगे और अगर पंजाबी अंदाज़ नहीं जमा तो फिर कुछ और ट्राय करेंगे।


‘मुझे चिल्लाने की जरूरत नहीं..’
सबसे चुनौतीपूर्ण किरदार का ज़िक्र करते हुए मोना बताती हैं कि किस तरह शेरख़ान की आवाज़ के लिए नाना पाटेकर किसी तरह की कमी नहीं छोड़ना चाहते थे। मोना कहती हैं ‘नाना ने शेरख़ान की आवाज़ के लिए इतना तफ़सील से काम किया कि जानवर के गहरी सांस लेने से लेकर उसके करवट लेने तक उसकी बारीक़ से बारीक़ हरकत को अपनी आवाज़ में ढालने की कोशिश करते थे।’ एक वाक्ये का ज़िक्र करते हुए मोना ने कहा ‘मैं हमेशा चाहती थी कि शेरख़ान बहुत ही ताकतवर होकर सामने आना चाहिए लेकिन नाना कहते थे कि इसकी जरूरत नहीं है, मैं धीरे बोलकर भी दहशत ला सकता हूं, मुझे चिल्लाने की जरूरत नहीं है।’

फिल्म में सभी कलाकारों की आवाज़ अपने अपने किरदार में इतना फिट बैठ रही है कि यह सोचना मुश्किल है कि क्या बघीरा के लिए ओमपुरी की जगह किसी और की आवाज़ जम पाती। भारत में फिल्म के डिस्ट्रीब्यूटर डिज़नी स्टूडियो के मुताबिक इस काम के लिए उन्होंने किसी कास्टिंग निर्देशक को नहीं चुना था और पूरी टीम ने मिलकर तय किया था कि किस जानवर के लिए कौन से कलाकार की आवाज़ उचित रहेगी। संयोगवश पहली बार बनाई गई लिस्ट में जिन कलाकारों के नाम थे, वे सभी डबिंग के लिए राज़ी हो गए और किसी और कलाकार से संपर्क करने की जरूरत ही नहीं पड़ी। यहां तक की प्रियंका चोपड़ा जो इन दिनों अमेरिका में अपनी फिल्म और टीवी शो में व्यस्त हैं, उन्होंने वहीं से अपने किरदार की डबिंग की जबकि मोना मुंबई के स्टूडियो में बैठकर उन्हें डायरेक्ट करती थीं।

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