हिंदू धर्म में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन एक त्योहार की तरह मनाया जाता है। पूरे विधि-विधान से भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन मनाया जाता है। इस उत्सव की धूम ना केवल भारत में होती है बल्कि विदेशों में भी खूब होती है। इस त्योहार को मनाने की शुरुआत लोग बहुत पहले सी ही शुरू कर देते हैं। पुरानी कथाओं के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था। इस बार जन्माष्टमी 23 अगस्त को मनाया जा रहा है तो वहीं कई जगहों पर 24 अगस्त को मनाया जा रहा है। आइए जानते हैं कृष्ण जन्माष्टमी का क्या महत्व है।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में अष्टमी तिथि में हुआ था। इस दिन चंद्रमा वृष राशि और सूर्य सिंह राशि में था। इसलिए श्रीकृष्ण का जन्म उत्सव भी इसी काल में मनाया जाता है। लोग पूरी रात गाते-बजाते रहते हैं। लोग इस खास दिन पर व्रत रखते हैं और पूजा-पाठ करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस त्योहार को मनाने पर हर मनोकामना पूरी होती है। जिन लोगों का चंद्रमा कमजोर होता है वो लोग भी इस दिन खास पूजा करके लाभ की प्राप्ति कर सकते हैं। इस दिन पूजा करने से संतान प्राप्ति का संयोग बनता है।
शास्त्रों में जन्माष्टमी को सभी व्रत का राजा यानी व्रतराज कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान कृष्ण को झूला झूलाना काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि कोई व्यक्ति पालने में भगवान को झुला दे तो उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। लोगों में कृष्ण भगवान को झूला झूलाने का बहुत उत्साह रहता है।
भारत के साथ-साथ विदेशों में भी रहने वाले भारतीय मूल के लोग जन्माष्टमी को पूरी आस्था व उल्लास से म नाते हैं। विदेशों में भी इस दिन तरह-तरह के भव्य आयोजन किए जाते हैं। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर ब्रज की पूरी नगरी मथुरा ही कृष्णमय हो जाती है। इसलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों में सराबोर हो जाता है।
चूंकि तिथि के अनुसार भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद की कृष्ण का जन्म भाद्रपद की कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि में हुआ था इसलिए घरों और मंदिरों में मध्यरात्रि 12 बजे कृष्ण भगवान का जन्म उत्सव मनाते हैं। रात में जन्म के बाद दूध से लड्डू गोपाल की मूर्ति को स्नानादि कराने के बाद नए-नए कपड़े पहनाए जाते हैं और उनका श्रृंगार किया जाता है।