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देवानंद के प्रेम पुजारी से अभिनय की शुरुआत करने वाले अमरीश पुरी की अमर गाथा

स्मृतियों के झरोखे से : जन्मदिन पर विशेष

विमल अनुराग

स्तम्भ : साल था 1970, देवानंद कई हिंदी फ़िल्मों को एक के बाद एक प्रोड्यूस करने के बाद एक फिल्म को लिख कर उसे डायरेक्ट करने के लिए तैयार थे। फिल्म बनकर तैयार हुई नाम था उसका प्रेम पुजारी। देवानंद ने इस फिल्म में ही पहली बार एक शख्स को रोल दिया जो उस शख्स की पहली फिल्म बनी। वह शख्स और कोई नहीं अमरीश पुरी थे। वही अमरीश पुरी जिन्होंने बाद में नायक और खलनायक के अभिनय की गुणवत्ता को एक समान स्तर पर पहुंचा दिया। देवानंद अमरीश पुरी को स्वामी दादा फिल्म में भी लेना चाहते थे, लेकिन किन्हीं कारणों से जब वो इस फिल्म से नहीं जुड़े तो यह रोल कुलभूषण खरबंदा को दे दिया गया था।

1960 और 70 के दशक में खलनायकों से दर्शकों का बहुत गहरा कनेक्ट नहीं हुआ करता था। मुनीम साहूकार के रूप में बहू, बेटियों की इज्ज़त पर हाथ डालने वाले एक्टर्स को तीखी निगाह से देखा जाता था, लेकिन प्राण, प्रेमनाथ, जीवन, प्रेम चोपड़ा के क्लब में शामिल होकर अमरीश पुरी ने जीवंत अभिनय से हर वर्ग का दिल जीत लिया।

22 जून, 1932 को पंजाब के नवांशहर में जन्मे अमरीश पुरी ने अपने भाई मदन पुरी के साथ हिंदी सिनेमा के नकारात्मक चरित्र अभिनय को एक नया आयाम दिया। लाला निहाल चाँद पुरी और वेद कौर के बेटे अमरीश पुरी ने भारतीय सिनेमा को अपने अमर अभिनय से सींचा था। अमरीश पुरी तीन भाई और एक बहन थे। उनके बड़े भाई, चमन पुरी और मदन पुरी दोनों अभिनेता थे और उनकी एक ही बहन ‘चंद्रकांता’ हैं। गायक के.एल सहगल अमरीश पुरी के चचेरे भाई थे।

पद्म विभूषण रंगकर्मी अब्राहम अल्काजी से 1961 में हुई ऐतिहासिक मुलाकात ने उनके जीवन की दिशा बदल दी और वे बाद में भारतीय रंगमंच के प्रख्यात कलाकार बन गए। अमरीश पुरी को रंगमंच से बहुत लगाव था और उनके हर एक नाटक को स्व.इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे प्रधानमंत्रियों ने देखा।

बॉलीवुड में हीरो बनने का ख्वाब लेकर मुंबई आए अमरीश पुरी को उनकी किस्मत ने विलेन बना दिया। अमरीश के बड़े भाई मदन पुरी पहले से ही फिल्म इंडस्ट्री में थे और उन्होंने ही अमरीश को मुंबई बुलाया था। पहली बार एक एक्टर के रूप में उनका स्क्रीन टेस्ट 1954 में हुआ था, हालांकि प्रोड्यूसर्स को वे पसंद नहीं आए थे। तुम्हारा चेहरा हीरो बनने लायक नहीं यह कह कर रिजेक्ट कर दिए गए थे अमरीश पुरी।

1971 में डायरेक्टर सुखदेव ने उन्हें ‘रेशमा और शेरा’ के लिए साइन किया, लेकिन उस वक्त तक उनकी उम्र 40 साल के करीब हो चुकी थी। हालांकि, फिल्म में अमरीश को ज्यादा रोल नहीं दिया गया, जिस वजह से उन्हें अपनी पहचान बनाने में और समय लगा। इसके बाद उन्होंने ‘निशांत’, ‘मंथन’, ‘भूमिका’, ईमान-धरम, पापी, अलीबाबा मरजीना, जानी दुश्मन, सावन को आने दो, आक्रोश और कुर्बानी जैसी फिल्मों में काम किया। अभिनेता के रूप निशांत, मंथन और भूमिका जैसी फिल्मों से अपनी पहचान बनाने वाले श्री पुरी ने बाद में खलनायक के रूप में काफी प्रसिद्धी पायी।

उन्होंने 1984 में बनी स्टीवेन स्पीलबर्ग की फ़िल्म “इंडियाना जोन्स एंड द टेम्पल ऑफ़ डूम” (अंग्रेज़ी- Indiana Jones and the Temple of Doom) में मोलाराम की भूमिका निभाई जो काफी चर्चित रही। इस भूमिका का ऐसा असर हुआ कि उन्होंने हमेशा अपना सिर मुँडा कर रहने का फैसला किया। इस कारण खलनायक की भूमिका भी उन्हें काफ़ी मिली।

अभिनेता के रूप निशांत, मंथन और भूमिका जैसी फ़िल्मों से अपनी पहचान बनाने वाले श्री पुरी ने बाद में खलनायक के रूप में काफी प्रसिद्धी पायी। बाद में गांधी, कुली, नगीना, राम लखन, त्रिदेव, फूल और कांटे, विश्वात्मा, दामिनी, करण अर्जुन, कोयला, दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे जैसे फिल्मों में उन्होंने बेहतरीन अदाकारी की।


मोगैम्बो खुश हुआ
आओ कभी हवेली पर
जवानी में अक्सर ब्रेक फ्रेल हो जाया करते हैं
डोंग कभी रॉंग नहीं होता
जा सिमरन जा, जी ले अपनी जिंदगी
जब भी मैं किसी गोरी हसीना को देखता हूं, मेरे दिल में सैकड़ों काले कुत्ते दौड़ने लगते हैं… तब मैं ब्लैक डॉग व्हिस्की पीता हूं।
ऐसे संवादों के लिए आज भी अमरीश पुरी अपने चाहने वालों के लिए जिंदा हैं।
दस्तक परिवार की ओर से ऐसे महान अभिनेता को विनम्र श्रद्धांजलि।

( लेखक संगीत, साहित्य, कला संबंधी मामलों के जानकार हैं )

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