देहरादून: किसी भूखे को खाना खिलाना बड़ा नेक काम है, खासकर हमारे देश में जहां कि हर रात करोड़ों लोग भूखे पेट सोने को मजबूर हैं। दो दोस्त अश्वनी नेगी व राधेश्याम जोशी भी दून में सैकड़ों जरूरतमंद लोगों को रोजाना पेट भर खाना खिला रहे हैं। अभी पांच माह पूर्व ही उन्होंने फ्री फूड फाउंडेशन की स्थापना की। यह मुहिम शुरुआती चरण में ही खासी लोकप्रिय हो गई है। जिसे अब प्रदेश स्तर पर ले जाने की तैयारी है।
ऐसे हुई शुरुआत
देहरादून के टर्नर रोड निवासी अश्वनी नेगी कारोबारी हैं। उन्होंने काफी वक्त दुबई में नौकरी की और फिर वतन लौट आए। वह अब फायर सेफ्टी उपकरण का काम करते हैं। गुरबत से निकले अश्वनी सफलता के फलक तक पहुंचने के बाद भी अपने पुराने दिनों को नहीं भूले। उन्होंने गरीबी देखी थी, लिहाजा उन्हें लगा कि गरीबों के लिए कुछ किया जाए। इसी बीच ख्याल आया कि क्यों न गरीबों को भर पेट खाना खिलाकर ही सेवा की शुरुआत की जाए। इस काम में उनका साथ दिया उनके दोस्त राधेश्याम जोशी ने। मूल रूप से अल्मोड़ा के रहने वाले राधेश्याम उनके साथ दुबई में नौकरी करते थे और वह भी अब दून में बस गए हैं। दोनों दोस्तों ने मिलकर फ्री फूड फाउंडेशन की स्थापना की और शुरू हो गई गरीबों की सेवा।
दून अस्पताल व नगर निगम में लंगर
फ्री फूड फाउंडेशन के सामने समस्या यह थी कि वाकई में जरूरतमंद व्यक्ति की पहचान कैसे की जाए। कम समय में अधिकाधिक लोगों तक पहुंचने की भी चुनौती थी। काफी तलाश के बाद उन्होंने दून अस्पताल व नगर निगम परिसर में लंगर शुरू करने की ठानी। प्रदेश के प्रमुख सरकारी अस्पतालों में शुमार दून अस्पताल में न केवल शहर बल्कि पहाड़ के दूरस्थ क्षेत्र व यूपी-हिमाचल के सीमावर्ती क्षेत्रों से भी लोग उपचार के लिए आते हैं। इसके अलावा नगर निगम के आसपास भी कई गरीब व जरूरतमंद लोग मिल जाते हैं। ऐसे में अस्पताल व नगर निगम प्रशासन की अनुमति से लोगों को खाना खिलाना शुरू किया।
हर दिन कुछ अलग, ताजा खाना
फ्री फूड फाउंडेशन की कोशिश थी कि लोगों को खाना दिया जाए तो उन्हें यह न लगे कि खाना मुफ्त बांटा जा रहा है। इसके लिए काफी सोच विचार कर मेन्यू बनाया। हर दिन वह कुछ अलग बनाते हैं। जिन लोगों को खाना बनाने के लिए रखा गया है, उन्हें कहा गया है कि खाना बिल्कुल घर जैसा ही लगे। जो भी खाना खाता है बदले में उन्हें दुआएं देता है।
मदद के लिए आने लगे प्रस्ताव
फ्री फूड फाउंडेशन की इस मुहिम को अब कई लोगों का समर्थन मिलने लगा है। छोटी-छोटी मदद लोग भी करने लगे हैं। मसलन कोई चावल दे जाता है, तो कोई दाल आदि। हालांकि ज्यादा रकम अश्वनी व राधेश्याम अपनी जेब से ही खर्च कर रहे हैं। वह बताते हैं कि इस मुहिम को अब पर्वतीय क्षेत्रों में भी ले जाने की इच्छा है। जिसके लिए वह प्रयास कर रहे हैं।